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________________ २५२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पुजारी गांवमें रहता है। वह प्रातःकाल मन्दिरमें आकर पूजा-प्रक्षाल कर जाता है। दर्शनार्थियोंको गांवमें जाकर पुजारीसे मन्दिरको चाबी लानी पड़ती है। रेल-मार्गसे कुडुवाड़ी-लातूर शाखा लाइन ( एस. सी. रेलवे ) पर तेर स्टेशन है। स्टेशनसे लगभग ३ कि. मी. गांव है। किन्तु यहां ठहरने आदिकी कोई व्यवस्था नहीं है। उस्मानाबादमें ठहरनेमें सुविधा है। इस क्षेत्रके निकट तेरणा नदी बहती है तथा यहाँसे ६ कि. मी. दूर नवनिर्मित हवाई अड्डा है। अतिशय क्षेत्र यह एक अतिशय क्षेत्र है। क्षेत्रपर अहातेके बाहर एक बावड़ी है। उसके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि प्राचीन कालमें इस क्षेत्रपर यात्री बहुसंख्यामें आते थे। उन्हें भोजन पकाने या अन्य किसी कामके लिए बर्तनोंकी जब आवश्यकता होती थी तो वे एक कागजपर अपेक्षित बर्तनोंके नाम लिखकर उस बावड़ीमें डाल देते थे। थोड़ी देरके पश्चात् सूचीवाले बर्तन बावड़ीके जलपर बहते हुए आ जाते थे। यात्री उन्हें निकाल लेते थे। काम हो जानेपर वे पुनः बर्तनोंको बावड़ीमें डाल देते थे और बर्तन थोड़ी देर बाद जलमें अदृश्य हो जाते थे। एक बार एक यात्रीने किसी बड़े बर्तनका नाम पर्चीपर लिखकर पर्ची बावड़ीमें डाल दी। थोड़ी देर बाद वह बर्तन जलसे बाहर आ गया। यात्री उसे निकालकर ले गया। किन्तु उसने काम हो जानेपर बर्तन बावड़ीको नहीं लौटाया। एक व्यक्तिकी इस बदनीयतीके कारण बावड़ी नाराज हो गयी। तबसे उसने बर्तन देना बन्द कर दिया। उत्तरप्रदेशके मदनपुर क्षेत्रपर भी वहाँकी बावड़ीके सम्बन्धमें बिलकुल इसी प्रकारकी किंवदन्ती प्रचलित है। तेरकी बावड़ीके सम्बन्धमें एक अन्य महत्त्वपूर्ण सूचना मिली कि इस बावड़ीका जल पहले बड़ा स्वादिष्ट और आरोग्यप्रद था। दूर-दूरसे रुग्ण व्यक्ति यहां आते थे और बावड़ीका जल तथा यहांकी वायुका सेवन करके वे स्वस्थ हो जाते थे। क्षेत्रपर एक अद्भुत बात और सुननेमें आयी है जिसका उल्लेख करना आवश्यक है। कहते हैं, इस मन्दिरमें ऐसी ईंटोंका उपयोग किया गया है जो जलमें तैरती हैं। कुछ वर्ष पूर्व मन्दिरकी दीवारमें खिड़कियां बनायी गयी थीं। दीवार तोडनेसे जो ईंटें निकलीं वे जलमें डालनेपर डूबती नहीं हैं, बल्कि तैरती रहती हैं। इस आश्चर्यजनक बातकी भनक अनेक लोगोंके कानों तक पहुंची तो वे उन इंटोंको उठा ले गये। किन्तु वहाँ पड़े हुए मलवे में अब भी कुछ ईंटें या उनके खण्ड तलाश करनेपर मिल जाते हैं। इस घटनामें सचाई कहाँ तक है यह एक अलग विचारणीय बात है लेकिन इससे रामायणकी उस घटनाका समर्थन हो जाता है जब लंकापर आक्रमण करनेके लिए रामचन्द्रजीकी आज्ञासे उस कालके प्रसिद्ध वास्तु विद्या विशारद नल और नीलने समुद्रके ऊपर ऐसे सेतुका निर्माण किया, जिसमें स्तम्भ या आधार नहीं थे। अवश्य ही उन्होंने तेरके इस मन्दिरमें प्रयुक्त इन ईंटोंके समान ही किन्हीं विशेष प्रकारकी ईंटों या पत्थरोंका प्रयोग किया होगा। सिरपूर ( अन्तरीक्ष पाश्र्वनाथ ) के निकटस्थ पवली ग्रामके प्राचीन जैन मन्दिर में भी ऐसी ईंटें मिलनेका उल्लेख है। इतिहास तेर नगरका इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। पौराणिक दृष्टिसे इसका इतिहास नल और नीलके काल तक जा पहुंचता है । उस समय तेर बहुत बड़ा नगर था। नल और नील इस नगरमें
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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