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________________ २४८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ दधिवाहन और करकण्डु दोनों विस्मित होकर उस स्त्रोको देखने लगे । दधिवाहनने पूछा"भद्रे ! तुम कौन हो?" वह स्त्री और कोई नहीं पद्मावती थी। वह बोली-"इस मलिन वेषमें मुझे आप नहीं पहचान सके । मैं पद्मावती हूँ और यह आपका पुत्र करकण्डु है ।" तब दधिवाहनने उसे पहचान लिया और उसे अपने अंकमें भर लिया। बीस वर्षके बिछुड़े पति-पत्नीका यह अप्रत्याशित संयोग कितना रोमांच, हर्ष और विस्मयसे भरा हुआ था। ____दधिवाहन पद्मावतीको छोड़कर अपने पुत्रकी ओर दौड़ा और उसे भी अपने आलिंगनमें लपेट लिया। करकण्डु अत्यन्त चकित विस्मित हुआ कुछ समझ नहीं पा रहा था। तब पद्मावतीने अपने दुर्भाग्यकी कथा सुनाते हुए उसके जन्मका वृत्तान्त सुनाया। तभी उसके माता-पिता विद्याधर दम्पती भी आ गये। उन्होंने भी पद्मावतीके कथनका समर्थन किया। करकण्डुको अब विश्वास हुआ कि मेरे माता-पिता ये विद्याधर नहीं, अपितु दधिवाहन और पद्मावती हैं। उसने अपने वास्तविक माता-पिताके चरण छुए । दधिवाहनने वहीं करकण्डुको अंगका राजा बना दिया। इस प्रकार करकण्डु भारतके बहुत विशाल भूभागका स्वामी हो गया। धाराशिवकी तीन गुफाएँ और उनकी पाश्वनाथ मूर्तियां इसी करकण्डु नरेश द्वारा निर्मित करायी गयी थीं। यह नरेश पार्श्वनाथ और महावीरके मध्यवर्तीकालमें हुआ था। नल और नील नामक विद्याधर भी पाश्र्वनाथके पश्चाद्वर्ती कालमें हुए थे, ऐसा लगता है। ये नील-महानील रामचन्द्रके समकालीन नल-नीलसे भिन्न प्रतीत होते हैं क्योंकि रामचन्द्रके कालमें सपंफणवाली पाश्वनाथकी कोई मूर्ति थी, ऐसा उल्लेख किसी शास्त्र या पुराणमें नहीं मिलता। पाश्वनाथकी सर्पफणावलियुक्त प्रतिमा पाश्वनाथके पश्चात् ही बनना प्रारम्भ हआ था। अतः लगता है, नलनील पाश्वनाथके १००-५० वर्ष पश्चात् हुए थे। पार्श्वनाथ प्रतिमा उनसे कुछ पूर्वकालकी थी। नल-नीलने जो लयण बनाया था, वह निरन्तर जल-धारा गिरनेके कारण गिर पड़ा। ऐसा प्रतीत होता है, करकण्डु नरेश नल-नीलसे लगभग १०० वर्ष पश्चात् हआ था। इस प्रकार धाराशिवकी ये गुफाएं २५५० या २६०० वर्ष प्राचीन हैं। कुछ पुरातत्त्व वेत्ताओंके मतमें ये गुफाएँ ईसाकी तीसरी शताब्दीकी हो सकती हैं तथा वहांकी पाश्वनाथ-मूर्तियोंका आनुमानिक काल ईसाकी पाँचवोंसे आठवीं शताब्दी मानते हैं। प्रचलित इतिहासमें करकण्डु नामक किसी राजाका नाम उपलब्ध नहीं होता। अतः ये पुरातत्त्ववेत्ता करकण्डुका ऐतिहासिक व्यक्तित्व स्वीकार करनेके लिए सम्भवतः तैयार नहीं हैं। किन्तु महावीरसे पूर्वकालीन इतिहासकी शोध-खोजका अभी तक कोई गम्भीर प्रयत्न नहीं हुआ। ऐसी दशामें साहित्यिक साक्ष्योंको एकदम उपेक्षणीय अथवा अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता। दूसरी ओर तीसरीसे आठवीं शताब्दी तकका उपर्यक्त काल-निर्धारण नितान्त काल्पनिक एवं आनमानिक आधारपर किया गया लगता है। उसके लिए कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किया गया। बिना किसी पूर्वाग्रहके हमारा अब भी विश्वास है कि धाराशिवकी गुफाएँ एवं मूर्तियां महावीरसे पूर्वकालीन हैं। यदि यह मान्यता पुरातत्त्व जगत्में स्वीकार कर ली जाती है तो भारतमें मूर्तिनिर्माणका इतिहास वर्तमान मान्यतासे २-३ शताब्दी पूर्व तक जा पहुंचता है। हमें विश्वास है, हमारी इस मान्यताको गम्भीरताके साथ लिया जायेगा। उस्मानाबादका प्राचीन नाम धाराशिव था। अतः गुफाओंका नाम इस नगरके नामपर १. Jain Art and Artitecture, editor Amlanand Ghosh,
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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