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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ
२४५ हिंसा और शिकारपर प्रतिबन्ध
निजाम सरकारने एक लिखित आदेश प्रचारित किया था, जिसके अनुसार क्षेत्र-भूमिके चारों ओर ३ मील पर्यन्त किसी भी प्रकारकी जीव-हिंसा और शिकारपर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। उस आदेशमें इसकी सीमा निश्चित की गयी थी और उस सीमाका नाम 'अहिंसा मैदान' रखा गया । उक्त आदेश व्यवहारतः आज भी इस क्षेत्रमें लागू है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है
मन्त्री, श्री देशभूषण-कुलभूषण दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र ___ पो. कुन्थलगिरि ( जिला उस्मानाबाद ) महाराष्ट्र
धाराशिवकी गुफाएँ मार्ग और अवस्थिति
धाराशिवकी गुफाएँ लयण कहलाती हैं। ये उस्मानाबाद शहर ( महाराष्ट्र प्रदेश ) से केवल ५ कि. मी. दूर हैं। शहरकी कोतवालीके बगलसे ईशान कोणसे एक सड़क इन गुफाओंको जाती है । ४ कि. मी. तक तो सड़क है और १ कि. मी. पहाड़ी मार्गसे होकर जाना पड़ता है। जहां तक सड़क है, वहां तक तांगा और रिक्शा चले जाते हैं। उस्मानाबादके लिए शोलापुर, औरंगाबाद अथवा कुडुवाड़ी-लातूर रेल मार्गके येडसी स्टेशनसे सरकारी बसें जाती हैं। गुहा मन्दिरोंका इतिहास
इन गुहामन्दिरोंका इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। भगवान् पाश्वनाथसे कुछ वर्षोंके पश्चात् हए कलिकण्ड नरेशने यहां तीन लयणों अथवा गुहा-मन्दिरोंका निर्माण कराया था और उनमें पार्श्वनाथ भगवान्की प्रतिमाएं विराजमान करायी थीं। इन लयणोंका इतिहास आचार्य हरिषेणने 'बृहत्कथाकोष' ग्रन्थमें दिया है। मुनि कनकामर कृत 'करकण्डुचरिउ' नामक अपभ्रंश ग्रन्थमें विस्तारपूर्वक इसकी कथा दी गयी है । कथाका सारांश इस प्रकार है
चम्पानगरीमें दधिवाहन नामक राजा राज्य करते थे। उनकी रानीका नाम पद्मावती था। एक बार जब रानी गर्भवती थी, उसके मनमें दोहला उत्पन्न हुआ-"मैं मर्दाने वस्त्र धारण करके गजराजपर आरूढ होकर वन-विहारके लिए जाऊँ।' उसने अपनी यह इच्छा अपने पतिको बतायी। राजा अपनी रानीकी इच्छा-पूर्ति के लिए झट तैयार हो गया। गजशालासे मुख्य गजको मँगाकर, रानीको मनुष्यों जैसे वस्त्र धारण कराके, गजके ऊपर रानीको अपने साथ आरूढ़ कराकर वहांसे चल दिया। नगरसे बाहर निकलते ही वनको मादक वायुके शीतल झकोरोंके लगते ही गज मदोन्मत्त हो उठा और बड़ी द्रुत गतिसे वनकी ओर भागने लगा। महावतने अंकुशोंके प्रहारों द्वारा गजको वशमें करनेकी बहुत चेष्टा की, किन्तु गज नहीं रुका। वह मार्गमें वृक्षों और लताओंको उखाड़कर फेंकने लगा, महावतको सूंडसे पकड़कर पैरों तले रौंद दिया। राहमें जो पशु या मनुष्य उसकी चपेटमें आ गये, उन सबको रौंद दिया। गज अनेक नगरों, गांवों और पर्वतोंको लांघता हुआ तीव्र वेगसे चलता गया।
राजाने इस भयानक संकटसे बचनेका उपाय सोचा। तभी उसे एक वक्षकी लटकती हई शाखा दिखाई पड़ी। राजा उसे पकड़कर लटक गया, किन्तु रानी भयाक्रान्त होकर जड़ बनी बैठी