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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २४३ ५. अजितनाथ मन्दिर-आदिनाथ मन्दिरके निकट यह मन्दिर बना हुआ है। इसमें वेदीपर ३ फुट ४ इंच ऊंची श्वेत वर्णवाली अजितनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिष्ठाकाल संवत् १९३२ है । इसके अतिरिक्त यहाँ ३४ मूर्तियां और हैं जिनमें बाहुबली स्वामीकी ३ तथा चौबीसीकी २ प्रतिमाएं हैं। इन मन्दिरोंसे आगे बढ़नेपर सीढ़ियोंके सामने ५३ फुट उन्नत और संवत् २००१ में प्रतिष्ठित मानस्तम्भ खड़ा हुआ है। ६. चैत्य-मानस्तम्भके आगे एक छतरीमें चैत्य विराजमान है जिसमें चारों दिशाओंमें चार प्रतिमाएं हैं तथा इसके पीछे दो स्तम्भोंमें विदेह क्षेत्रके २० तीर्थंकरोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। ७. नन्दीश्वर जिनालय-जहां पर्वतकी सीढ़ियां समाप्त होती हैं, वहां नन्दीश्वर जिनालय बना हुआ है। इसमें पीतलका एक नन्दीश्वर है। यह तीन कटनीवाली वेदीमें सबसे ऊपर विराजमान है। शेष दो कटनियोंपर पाषाणकी १३ मूर्तियां हैं। इस मन्दिरको प्रतिष्ठा क्षेत्रके एक मुनीम श्री निहालचन्दने संवत् १९५२ में करायी थी। इस मन्दिरके आगे एक चबूतरेपर लगभग १० फुट ऊंचा एक मानस्तम्भ बना हुआ है। तलहटीके मन्दिर १. नेमिनाथ मन्दिर-पर्वतसे उतरनेपर दायीं ओर नेमिनाथ मन्दिर बना हुआ है। इसमें मूलनायक नेमिनाथ भगवानकी संवत् १९५८ में प्रतिष्ठित २ फूट १० इंच ऊंची श्वेत पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पावों में महावीर और आदिनाथकी २ फूट ४ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमाएं हैं। वेदीके नीचे आदिनाथकी १ फुट ८ इंच और नेमिनाथकी १ फुट ४ इंच उन्नत प्रतिमाएँ हैं। नीचे भोयरेमें सम्भवनाथकी संवत् १९५८ में प्रतिष्ठित २ फुट ४ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। इसके दोनों पावों में कुन्थुनाथ और मुनिसुव्रतनाथकी दो श्वेत प्रतिमाएं हैं। ऊपर शिखर वेदीमें १ फुट ८ इंचको संवत् १९५८ में प्रतिष्ठित पाश्वनाथकी ९ फणयुक्त श्वेत पद्मासन प्रतिमा है। २. महावीर मन्दिर-यह मन्दिर नेमिनाथ मन्दिरके सामने है। इसमें संवत् १९५८ में प्रतिष्ठित महावीर भगवान्की २ फुट ८ इंच ऊँची श्वेत प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें आसीन है। इसके इधर-उधर हाथी रखे हैं। बायीं ओर चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेत और श्याम वर्णकी दो प्रतिमाएं हैं। दायीं ओर श्वेत शान्तिनाथ और गेहुंआ अरहनाथकी प्रतिमाएं हैं। इसके आगे खुला मण्डप है । फिर सामने एक वेदीपर मध्यमें मल्लिनाथकी ३ फुट २ इंच, बायीं ओर मुनिसुव्रतनाथकी २ फुट १० इंच और दायीं ओर अरनाथकी २ फुट १० इंचकी प्रतिमाएँ हैं। यह रत्नत्रय मूर्ति कहलाती है । इनका प्रतिष्ठा-काल संवत् २००८ है। सीढ़ियोंसे ऊपर जाकर शिखर-वेदीमें १ फुट ७ इंच को श्वेत पाश्वनाथ प्रतिमा है । प्रतिष्ठाकाल संवत् १९३२ है। ३. रत्नत्रय मन्दिर-शिखर-मन्दिरके वगल में यह मन्दिर है। वेदीपर शान्तिनाथकी २ फुट ९ इंच और कुन्थुनाथ-अरनाथकी २ फुटकी प्रतिमाएं हैं। ये श्वेत पाषाणकी और खड्गासन हैं । इनका प्रतिष्ठा-काल संवत् १९६१ है। इनके दोनों ओर ३-३ मूर्तियां विराजमान हैं। ऊपर शिखर-वेदीमें मूंगा वर्णकी २ फुट ६ इंच ऊँची बाहुबली स्वामीको संवत् २००८ में प्रतिष्ठित खड्गासन प्रतिमा विराजमान है । इस गर्भगृहमें चारों ओर कांच जड़े हुए हैं । अतः यह कांच-मन्दिर कहलाता है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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