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भारतके दिगम्बर जैन तीर्य दक्षिण कोशल अभिप्रेत लगता है । (२) पाण्डवोंके कालमें उस गिरिका नाम रामगिरि प्रचलित था और वह उन जिनालयोंके कारण तीर्थ बन गया था।
हरिवंश पुराण और पद्मपुराणके रामगिरि एक ही लगते हैं अर्थात् जिस वंशस्थल या वंशगिरिपर पद्मपुराणके अनुसार कुलभूषण-देशभूषण नामक मुनियोंपर असुरने उपसर्ग किया था, उसी पर्वतपर रामने जिनालय निर्मित कराये थे, पद्मपुराणके अनुसार उसी वंशगिरिपर दोनों मुनियोंको केवलज्ञान हुआ था। उसी पर्वतका उल्लेख दोनों पुराणकारोंने किया है। किन्तु प्राकृत निर्वाण-काण्डके अनुसार दोनों मुनियोंका निर्वाण कुन्थुगिरिके ऊपर हुआ था जो वंशगिरिके निकट पश्चिममें था। पद्मपुराणने वंशगिरिका उल्लेख करके भी उनकी निर्वाण-भूमिका उल्लेख नहीं किया। अतः उक्त अवतरणोंसे दो बातें फलित होती हैं-(१) दोनों मुनियोंका निर्वाण कुन्थुगिरि या कुन्थलगिरिपर हुआ था, वंशगिरिपर नहीं। (२) वंशगिरि कुन्थुगिरिसे भिन्न था और वह उसके पश्चिममें था । रामने वंशगिरिपर जिनालयोंका निर्माण कराया था, न कि कुन्थुगिरिपर।
____ इन फलितार्थों के प्रकाशमें कुन्थलगिरिको रामगिरि नहीं माना जा सकता। कुन्थलगिरि उक्त दोनों मुनियोंको निर्वाण-भूमि था, इसमें किसीको आपत्ति नहीं। उत्तरकालीन कई भट्टारकोंने भ्रमवश इन मुनियोंकी निर्वाण-भूमिका नाम वंशनयर, वांसीनयर, वंशगिरि दिया है। ये सभी नाम समानार्थक हैं। सभीका एक ही आशय है-बांसोंका नगर या पर्वत अर्थात् जहाँ बाँस अधिक होते थे। कोई विद्वान् वासीनयर वार्शीको बताते हैं। यह भो भ्रमजनित धारणा है। चूंकि वंशगिरिका नाम ही राम द्वारा जिनालयोंका निर्माण करानेके कारण रामगिरि हो गया, उसके पश्चात् वंशगिरि नाम लुप्त हो गया, व्यवहारमें रामगिरि ही प्रचलित हो गया। - रामगिरिकी अवस्थिति कहां है, इस सम्बन्धमें विद्वानोंमें बड़ा मतभेद है। कोई विद्वान् कहता है कि मध्यप्रदेशके सरगुजा जिलेका रामगढ़ ही रामगिरि है। दूसरे मतके अनुसार आन्ध्रप्रदेशके विजयानगरम्का समीपवर्ती रामकौण्ड रामगिरि है। तीसरी मान्यता नागपुरके समीपस्थ रामटेकके पक्षमें है। इनमें रामटेकके पक्षमें अधिक पुष्ट प्रमाण मिलते हैं।
____ अब केवल यह सिद्ध करना शेष रह जाता है कि कुन्थलगिरि वंशस्थलके निकट था। वर्तमान रामटेक और कुन्थलगिरिके मध्य कर्णरवा (महानदी ) थी तथा वंशस्थल ( रामटेक ) के दक्षिणमें दण्डकारण्य था। ये सब आज भी मिलते हैं। गोदावरी और कृष्णाका तटवर्ती वन ही दण्डकारण्य कहलाता था।
- कुन्थलगिरिमें प्राचीन कालमें दोनों मुनियोंके चरण-चिह्न विराजमान थे। जो अब भी विद्यमान हैं। निर्वाण-क्षेत्रोंपर प्रायः चरण-चिह्न ही रहते थे, प्राचीन परम्परा यही थो। उक्त चरण-चिह्न बहुत प्राचीन लगते हैं । क्षेत्र-दर्शन
दोनों मुनियोंका निर्वाण कुन्थलगिरिके ऊपर हुआ था, अतः वही निर्वाण-भूमि है। पर्वतके ऊपर जानेके लिए पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं। सीढ़ियोंकी कुल संख्या २५० है। पहाड़पर कुल ७ जिनालय बने हुए हैं । यह पहाड़ दक्षिण उत्तरमें फैला हुआ है और १७५ फोट ऊंचा है।
(१) कुलभूषण-देशभूषण मन्दिर-यह यहाँका मुख्य मन्दिर है। गर्भगृहमें वेदीपर दोनों मुनियोंके प्राचीन चरण विराजमान हैं। इन चरणोंकी प्राप्तिके सम्बन्धमें एक अनुश्रुति प्रचलित
१. इस सम्बन्धमें विस्तारके साथ रामटेक सम्बन्धी लेखमें ऊहापोह किया गया है।