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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २३७ ३५. न्धरा ( राम् ) । षष्टि वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥ ॥४|| न विषं विषमि३६. त्याहुर्देवस्वं विषमुच्यते । विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पु३७. त्रपौत्रकं ( कम् ) //५// अपि च । सवत्सां कपिलां शस्च्या हत्त्वास्या ३८. मांसशोणिते। गंगायां सोत्ति यो गृह्णात्यमूं धर्मोर्वरां ३९. नरः //६// तत्पातकफलेनासो यावच्चन्द्रदिवाकरं ( रम् ) । तावद् घोरतरं दुःख४०. मश्नुते नरकावनी //७// अन्यच्च । मातुस्साङ्घकपालेन सोत्ति मा४१. तंगवैश्मसु । श्वमांसं भिक्षया लब्धं गये (?) यो धर्मभूहरः ||८|| ४२. भद्रमस्तु जिनशासनाय | संपद्यतां प्रतिविधानहेतवे । अन्य४३. वादिमदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसे । अक्कसाले वं४४. म्योजनपुत्र । अभिनंददेवर गुड्ड गोव्योजन खडरणे ॥ पत्र-व्यवहारका पता इस प्रकार है स्वस्ति श्री पट्टाचार्य भट्टारक लक्ष्मीसेन स्वामी जैन मठ, शुक्रवार पेठ कोल्हापुर ( महाराष्ट्र) कुन्थलगिरि सिद्धक्षेत्र कुन्थलगिरि या कुन्थुगिरि सिद्धक्षेत्र या निर्वाणक्षेत्र है। यहाँसे कुलभूषण और देशभूषण नामक दो मुनि मुक्त हुए थे। इस सम्बन्धमें प्राकृत निर्वाणकाण्डमें इस प्रकार उल्लेख प्राप्त होता है "सत्थलवरणियडे पच्छिमभायम्मिकुंथुगिरि सिहरे । कुलदेशभूषणमुणी णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥१७॥" अर्थात् वंशस्थलके निकट पश्चिमकी ओर कुन्थुगिरिके शिखरपर कुलभूषण और देशभूषण मुनि निर्वाणको प्राप्त हुए। उन्हें नमस्कार हो । भट्टारक मेघराज (समय १६वीं शताब्दी) ने प्राकृत निर्वाणका मराठी अनुवाद किया है । उसमें उन्होंने प्राकृत मूलपाठसे अधिक एक विशेष सूचना भी दी है। मराठी अनुवाद इस प्रकार है "कुंथलगिरिवरसार देसभूषण कुलभूषणए । उपसर्ग टाले राम सिद्ध हवा जगमंडणए ॥१२॥" इसमें उन्होंने यह भी सूचित किया है कि रामने दोनों मुनियोंका उपसर्ग दूर किया। ___ अन्य अनेक लेखकोंने-जैसे ज्ञानसागर, गुणकीर्ति, सोमसेन, जयसागर, चिमणा पण्डित, सुमतिसागर, दिलसुख आदिने भी इसे सिद्धक्षेत्र माना है, किन्तु उन्होंने कुन्थलगिरि नाम न देकर वांसिनयर, वंशगिरि, वंशाचल आदि नाम दिये हैं जो निर्वाणकाण्डके 'वंसत्थल से मिलते-जुलते हैं अथवा समानार्थक हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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