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________________ २३२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ व्यक्तियोंने गुरुकुल खोले, किन्तु जैन समाज इन गुरुकुलोंसे अपेक्षित लाभ नहीं उठा सकी। इसमें अपवाद रहे कारंजा और उसके शाखा गुरुकुल। क्षुल्लक समन्तभद्र ( जो अब आचार्य समन्तभद्र हैं ) विद्वान् और रचनात्मक कार्योंके प्रति दृढ़ आस्थावान् त्यागी थे। यशोलिप्सा और प्रचारतन्त्रसे दूर और मौन साधक । उन्होंने कारंजामें एक गुरुकूल स्थापित किया। छात्रोंको सम्पूर्ण व्यवस्था निःशुल्क रखी। उन्होंने एक आदर्श परम्परा स्थापित की जो छात्र विद्वान् बनकर यहाँसे निकलेंगे, उनमें से कुछ आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करेंगे और अपनी संस्था की सेवा करेंगे। फलतः वहाँके निकले हुए स्नातक ही संस्थाकी व्यवस्था और संचालन करने लगे । ज्यों-ज्यों स्नातक निकलते गये, क्षुल्लकजी विभिन्न स्थानोंपर शाखा गुरुकुल खोलते गये। उन्होंने एलोरा, खुरई, शोलापुर, कुंथलगिरि, वागेवाड़ी, बाहुबली, तेरडाल, कारकलमें गुरुकुलोंकी स्थापना की। इतने स्थानोंपर शाखा गुरुकुलोंकी स्थापनाका अर्थ यही था कि वे अपने मिशनमें सफल हो रहे हैं और जनता उनका समर्थन कर रही है। आज उनके द्वारा स्थापित ११ गुरुकुल और ४ हाईस्कूल एवं कालेज सफलतापूर्वक चल रहे हैं । प्रस्तुत गुरुकुल बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रमकी स्थापना सन् १९३४ आषाढ़ शुक्ला २ को हुई थी। इस गुरुकुलका नाम श्री बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम ( जैन गुरुकुल ) है। यहां लगभग ७०० विद्यार्थी विद्याध्ययन करते हैं। उनके आवास, भोजनकी सुन्दर व्यवस्था है। छात्रोंके स्वास्थ्य, ब्रह्मचर्य और शिक्षापर विशेष ध्यान दिया जाता है । यहाँ धार्मिक शिक्षाका उत्तम प्रबन्ध है। विद्यालयमें कला, विज्ञान और वाणिज्य तीनों विषयोंके शिक्षणको व्यवस्था है। इनके अतिरिक्त यहाँ टैक्निकल स्कूल भी है । विद्यालयमें छात्रोंकी संख्या बारह सौके लगभग है। अब यह हाईस्कूलसे जूनियर कालेज हो गया है। अध्ययनके अतिरिक्त यहाँके छात्र धान्य संग्रह, पुस्तक बैंक, बचत संचयिका, सहकारी विविध-वस्तु-भण्डार आदि अनेक सार्वजनिक और स्वावलम्बी प्रवृत्तियोंमें योगदान करते हैं । इसके ट्रस्टकी ओरसे 'सन्मति' नामक एक मासिक पत्र कनड़ी और मराठी भाषाओंमें प्रकाशित होता है। व्यवस्था तीर्थक्षेत्र, गुरुकुल, औषधालय आदि विविध अंगों और प्रवृत्तियोंके संचालनके लिए (१) बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम ट्रस्ट और (२) बाहुबली विद्यापीठ नामक दो ट्रस्ट स्थापित हैं। प्रथ ट्रस्ट गरुकूलके विद्यालय विभाग और औषधालय आदिकी व्यवस्था करता है तथा द्वितीय ट्रस्ट क्षेत्र, छात्रावास, धर्मशाला आदिके कार्योंकी देखभाल करता है। दोनों ही ट्रस्टोंकी स्थिति सुदृढ़ है। धर्मशाला यात्रियोंके ठहरनेके लिए तलहटीमें दो विशाल धर्मशालाएं, अतिथि निवास, पर्वतपर दिगम्बर धर्मशाला और दिगम्बर-श्वेताम्बरोंको सम्मिलित धर्मशाला बनी हुई हैं। इनमें नल, बिजलीकी सुविधा है। क्षेत्रपर अन्य भी आवश्यक सामग्री उपलब्ध हो जाती है। वार्षिक मेला क्षेत्रपर प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला पूर्णमासी और मगशिर कृष्णा १ को वार्षिक मेला होता है। प्रथम दिवस गुरुकुलका उत्सव होता है तथा द्वितीय दिवस रथयात्रा। इस अवसरपर बाहरसे कई हजार व्यक्ति आते हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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