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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
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पहाड़के मन्दिर
तलहटीके इन मन्दिरोंके बगलसे पहाड़पर जानेके लिए सोपान मार्ग बना हुआ है । कुल सीढ़ियोंकी संख्या ३८६ है । कुछ सीढ़ियाँ चढ़नेपर दायीं ओर एक चबूतरेपर क्षुल्लिका पार्श्वमती अम्माके चरण बने हुए हैं। इससे थोड़ा आगे बढ़नेपर बायीं ओर एक छतरी में मुनि श्री वर्धमानसागरजी महाराजके चरण बने हुए हैं । आचार्य शान्तिसागरजी महाराजके संसारी दशा के अग्रज थे । उन्हींसे आपने दीक्षा ली थी और मुनि-व्रतों का निरतिचार पालन करते हुए इस क्षेत्रपर आपने समाधिमरण किया था। इनकी समाधिके सामने एक अन्य मुनिके चरण एक चबूतरेपर बने हुए हैं। सीढ़ियाँ समाप्त होनेपर धर्मशाला मिलती है ।
पहले यहाँ ४ दिगम्बर जैन मन्दिर थे, जिन्हें गिरा दिया गया है । उनके स्थानपर नवीन मन्दिरोंका निर्माण हो रहा है। इन मन्दिरोंकी मूर्तियाँ १६ स्तम्भोंपर आधारित एक मण्डपमें रख दी गयी हैं । यह बाहुबली मन्दिर कहलाता है । इसी मन्दिरमें मुनि बाहुबली के चरण विराजमान हैं। इन मुनिराजके कारण ही यह क्षेत्र बाहुबली क्षेत्र कहलाता है । इन संग्रहीत मूर्तियों में ३ देवी- मूर्तियां हैं - चारभुजी पद्मावती, चतुर्भुजी सरस्वती और षोडशभुजी ज्वालामालिनी । ये मूर्तियाँ श्याम पाषाणकी हैं। ३ मन्दिरोंको मूलनायक प्रतिमाएँ और उनकी अवगाहना इस प्रकार है -५ फीट २ इंच ऊँची शान्तिनाथकी, ६ फोट ऊँची चन्द्रप्रभको और ४ फीट ३ इंच ऊँची आदिनाथकी मूर्ति । तीनों मूर्तियोंके दोनों पावोंमें उनके सेवक यक्ष-यक्षी हैं । इनके अतिरिक्त यहाँ पाषाणकी १९, धातुकी ४ मूर्तियां हैं और १ चैत्य है । भग्न मन्दिरोंके सामने मानस्तम्भ बना हुआ है । मन्दिरोंके निकट एक बड़ा कुआँ है ।
दिगम्बर मन्दिरों के उत्तरकी ओर श्वेताम्बर मन्दिर बना हुआ है। इस पहाड़के ऊपर ४ एकड़ भूमिपर दिगम्बर समाजका अधिकार है । श्वेताम्बर मन्दिरका निर्माण इस दिगम्बर जैन क्षेत्र और दिगम्बरोंकी भूमिपर किस प्रकार हुआ, इसका एक इतिहास है । कुछ वर्ष पूर्व कुछ श्वेताम्बर जैन बाहुबली दिगम्बर जैन क्षेत्रके अधिकारियोंके पास आये और उनसे निवेदन किया कि आप हमें अपने मन्दिरोंके निकट कुछ भूमि देनेकी कृपा करें। हमारी भावना यहाँ एक जिनालय बनाने की है । दिगम्बर समाज सदासे उदार और सहृदय रही है । क्षेत्रके अधिकारियोंने इसी सहज उदारतावश श्वेताम्बर समाजने जितनी भूमि माँगी, उतनी दे दी। इस सम्बन्ध में दोनों पक्षों में लिखित अनुबन्ध हुआ कि (१) श्वेताम्बर मन्दिर में जो चढ़ावा आवेगा, उसका आधा भाग उक्त दिगम्बर क्षेत्रको दिया जायेगा । (२) श्वेताम्बर मन्दिर के निकट जो धर्मशाला बनेगी, उसके आधे भागपर दिगम्बर समाजका अधिकार रहेगा । तथा जब आवश्यकता होगी, तब सारी धर्मशाला में दिगम्बर यात्री ठहर सकेंगे । ( ३ ) श्वेताम्बर समाज दी हुई भूमिसे अधिक भूमिपर अधिकार नहीं करेगा ।
उदारतावश दिगम्बर जैन क्षेत्रके अधिकारियोंने श्वेताम्बर समाजसे भूमिका कोई मूल्य या मुआवजा नहीं लिया । जब मन्दिर और धर्मशालाका निर्माण हो गया, तो श्वेताम्बर भाइयोंने दिगम्बर जैन क्षेत्रके अधिकारियोंके विरुद्ध अदालत में मुकदमा दायर कर दिया । उसमें उन्होंने दिगम्बर मन्दिरसे लगी हुई डेढ़ फुट भूमिपर अपना अधिकार सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है । अदालत में यह मुकदमा अभी चल रहा है । दक्षिणको ओर कोल्हापुर नरेश द्वारा बनवाया हुआ दुर्गादेवीका एक छोटा मन्दिर है ।
क्षेत्र पर देशी काले पाषाणको सात फीट ऊँची बाहुबली स्वामीकी एक प्राचीन भव्य प्रतिमा