SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २२९ बढ़नेपर एक कमरे में १०पेटिकाओंमें भगवान महावीरके जीवनसे सम्बन्धित १० चित्रांकन मिलते हैं। इसके बगल में एक अन्य कमरे में कांचका समवसरण बना हुआ है। इसके दायीं ओर बाहुबली मन्दिर है। इसमें बाहुबली स्वामीकी हेम वर्णको ६ फीट उत्तुंग और वीर संवत् २४७५ में प्रतिष्ठित खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इसके आगे ३ धातु प्रतिमाएं हैं । बाहुबली मन्दिरके शिखरमें एक छोटे कमरेमें ऋषभदेवकी भूरे वर्णकी १ फुट १० इंच ऊँची संवत् १९७६ में प्रतिष्ठित पदमासन प्रतिमा है। इस मन्दिरके सामने छतकी मंडेरपर एक लघु मानस्तम्भ बना हुआ है। इस गर्भगृहके आगे विशाल सभामण्डप बना हुआ है । इस मन्दिरके आगे ३२ फीट ऊंचा मानस्तम्भ बना हुआ है। मानस्तम्भके बगलमें सिंहद्वार है । अर्थात् प्रवेश मार्गके दोनों ओर दो स्तम्भोंपर सिंह आसीन हैं। उसके सामने मुख्य प्रवेश-द्वार बना हुआ है। बड़ी प्रतिमाकी सीढ़ियोंके दायीं ओर एक कमरेमें श्वेत संगमरमरका ८ फीट ६ इंच ऊंचा सहस्रकूट जिनालय अवस्थित है। इसके सामने एक हॉलमें समवसरणकी भव्य रचना है। रचना कांच द्वारा निर्मित है। विद्यत् प्रकाशमें इसकी शोभा दगनी हो जाती है। इससे मिले हए हॉलमें शास्त्र भण्डार है। समवसरण मन्दिरके ऊपर नन्दीश्वर जिनालय बना हुआ है। इस मन्दिरके मध्यमें पंचमेरु हैं। इस मन्दिरके सामने छतको मुंडेरपर पूर्ववत् लघु मानस्तम्भ बना हुआ है। दीवारपर छतरियाँ बनी हुई हैं जिनमें मुनियोंके चरण-चिह्न हैं। सहस्रकूट जिनालयके शिखर वेदीमें गन्धकुटी जिनालय है। तीन कटनियोंवाली इस गन्धकुटीमें ८ प्रतिमाएं विराजमान हैं। _____ समवसरण मन्दिरसे आगे बढ़नेपर स्वयम्भू मन्दिर है । इसकी वेदीपर ३ फीट २ इंच ऊँची ऋषभदेवकी कृष्णवर्णकी पदमासन प्रतिमा विराजमान है। सिरपर घुघराले कन्तल हैं। स्कन्धों पर केशगुच्छक पड़ा हुआ है। श्रीवत्स नहीं है। लेख और लांछन अंकित हैं। मूर्तिके आकारके अनुपातसे मूर्तिका सिर समानुपातिक नहीं लगता। इस मन्दिरमें गर्भगृह, अर्धमण्डप और लघु प्रांगण हैं । प्रांगण ऊंची दीवारसे घिरा हुआ है। दीवारोंमें भीतर और बाह्य भागमें तीन पंक्तियोंमें लघु-स्तम्भों और द्वारोंपर महराब और उनके भीतर लघु कक्ष बने हुए हैं। यहाँ तीन दिशाओंमें द्वार बने हैं । ९२ लघु कक्षोंमें मूर्तियां विराजमान हैं। इन ९२ मूर्तियोंमें भूत-भविष्य-वर्तमानके ७२ तीर्थंकर तथा विदेह क्षेत्रके २० तीर्थकर सम्मिलित हैं। इन लघु कक्षोंमें बहुत-से खाली हैं। ऊपरके प्रत्येक कक्षके ऊपर लघु शिखर बना हुआ है। __ जिस चबूतरेपर बड़ी मूर्ति विराजमान है, उस चबूतरेपर तीन कटनियां हैं। बड़ी मूर्तिकी सीढ़ियोंके दायीं ओर अर्थात् स्वयम्भू मन्दिरके सामने प्रथम कटनीपर चम्पापुरी मन्दिरको रचना की गयी है। इसमें वासुपूज्य भगवान्की हलके गुलाबी वर्णकी १ फुट २ इंच ऊँची वीर संवत् २४९६ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके आगे चरण-चिह्न है। इस मन्दिरके चारों कोनोंपर चार लघु मानस्तम्भ बने हुए हैं। प्रत्येक मानस्तम्भमें ४-४ प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ___ इन मन्दिरोंकी बगलमें कई कमरे बने हुए हैं। यहीं आचार्य समन्तभद्रजी महाराज विराजमान हैं। जिनका चमत्कारी व्यक्तित्व और कृतित्व इस सम्पूर्ण परिसरके अणु-अणुमें परिलक्षित होता है। उनके तप और ज्ञानसे प्रदीप्त व्यक्तित्वमें प्राचीन ऋषि-मुनियोंके दर्शन होते हैं। वस्तुतः वे मूर्तिमान् जंगम तीर्थं हैं। अनेक गुरुकुल, हाईस्कूल और कॉलेज उनके कल्पनाशील मस्तिष्क, प्रभावक व्यक्तित्व और अमोघ आशीर्वादके परिणाम हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy