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________________ महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थं बाहुबली २२७ मार्ग जौर अवस्थिति श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बाहुबली (कुम्भोज ) दक्षिण मध्य रेलवेके मिरज स्टेशनसे कोल्हापुर जानेवाले रेलमार्गपर है । हातकलंगणे उसका स्टेशन है । उस स्टेशनसे ६ कि. मी. दूर बाहुबली क्षेत्र महाराष्ट्रके कोल्हापुर जिलेमें है । यहाँका पोस्ट ऑफिस बाहुबली है । यहाँसे पश्चिम की ओर २ कि. मी. दूर कुम्भोज नामक नगर है । स्टेशनसे क्षेत्र तक पक्की सड़क है । बस, तांगा और स्कूटरों की सुविधा है । अतिशय क्षेत्र अनुश्रुति है कि कई शताब्दी पूर्वं दिगम्बर मुनि बाहुबली विहार करते हुए बाहुबली ( कुम्भोजगिरिपर ) पधारे । यहाँ ध्यान और तपस्याके योग्य एकान्त और शान्ति देखकर तथा यहाँके प्राकृतिक सौन्दर्यं से आकृष्ट होकर वे यहाँकी एक गुफामें ठहर गये और तपस्या करने लगे । वे तपस्या में अत्यधिक निरत रहने लगे । वे आहारको भी अपनी तपस्या में अन्तराय या बाधा मानते थे, अत: वे आहारके लिए कई-कई दिन बाद उठते थे । उन्हें आहारके लिए गाँव में जाना भी रुचिकर नहीं लगता था, अतः वे कई बार नियम कर लेते थे कि अगर जंगलमें आहार विधिके अनुकूल मिल जायेगा तो ले लूँगा, अन्यथा उपवास करूंगा । इस प्रदेशके जैनोंमें कृषक समुदायकी संख्या अधिक है। स्त्रियां पुरुषोंको भोजन देनेके लिए खेतोंपर जाती हैं । सुनते हैं, मुनि बाहुबलि आहारके लिए जाते थे । यदि मार्ग में कोई जैन स्त्री भोजन ले जाती हुई मिल जाती तो वे वहीं मुद्रा धारण करके खड़े हो जाते थे और आहार लेकर पुनः गुफा में लोट आते थे । तपस्यासे उन्हें दिव्य शक्तियां भी प्राप्त हो गयी थीं। एक बार वे आहारके निमित्त कुम्भोज ग्राममें पधारे। उनके नग्न रूप और मलिन वेषको देखकर कुछ शरारती मुस्लिम युवकों ने आवाजकशी करना प्रारम्भ कर दिया। किन्तु वे वीतराग साधु इससे मनमें कोई विकार लाये बिना ईर्यापथशुद्धिपूर्वक चलते रहे । किन्तु वे युवक उनके पीछे उपसगं करते हुए लगे रहे । मुनिराज अन्तराय समझकर वापस पहाड़ीपर लौट गये। तभी वहाँ एक व्याघ्र आया और मुनिराज के सम्मुख सिर झुकाकर बैठ गया । शरारती युवक भी अश्लील बकते हुए वहाँ आ पहुँचे । किन्तु जैसे ही उनकी दृष्टि व्याघ्रपर पड़ी, उनका शरीर भयसे काँपने लगा, उनकी वाणी जड़ हो गयी । मुनिराजने उनकी यह दशा देखी तो वे दयार्द्र उठे । उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया, "आप लोग भय न करें, व्याघ्र आप लोगोंसे कुछ नहीं कहेगा ।" वे लोग शंकित कम्पित मनसे वहाँसे धीरे-धीरे खिसक गये । किन्तु उस दिनसे उन्होंने उपद्रव करना बन्द कर दिया और मुनिराज भक्त बन गये । तबसे वे कहने लगे - "ये तो पहुँचे हुए फकीर हैं, इनमें खुदाई जलवा है, ये तो वाकई पैगम्बर है ।" इनकी स्मृति सुरक्षित रखनेके लिए एक मन्दिर में उनके चरण-चिह्न विराजमान हैं। इन मुनिराज के चमत्कारोंके सम्बन्धमें इस प्रदेशमें अनेक किंवदन्तियां प्रचलित हैं। इन्हींके कारण यह स्थान अतिशयक्षेत्र कहा जाने लगा ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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