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________________ २२६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उसके अन्दर एक छोटी गुफा है। छोटी गुफाकी सामनेकी भित्तिमें मध्यमें हनुमान्, बायीं ओर राम और दायीं ओर सीताकी अनाम मूर्तियां बनी हुई हैं । एक अन्य गुफा इस गुफाके बगल में है। यह गुहा मन्दिर दक्षिणाभिमुखी है। इस पहाड़के सामने २-२।। मील दूरपर कृष्णा नदी बहती है। पहाड़के सामने चौरस मैदान है। गिरि पार्श्वनाथ-पहले पहाड़से लगभग ४ कि. मी. पहाड़पर चलनेपर दूसरा पहाड़ आता है । पहाड़के ऊपर सपाट मैदानमें एक छतरीमें दो चरण-चिह्न बने हए हैं। इनके सम्बन्धमें अनुश्रुति है कि यहाँ भगवान् महावीरका समवसरण आया था। उनकी स्मृतिमें ये चरण-चिह्न बनाये गये हैं। यहाँसे थोड़ी दूर आगे बढ़नेपर एक मन्दिर मिलता है। मन्दिर ८ फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा है । यहाँ ३ फीट २ इंच ऊंची कृष्ण वर्णकी पद्मासन मुद्रामें सप्तफणी पार्श्वनाथ प्रतिमा विराजमान है। कन्धेके दोनों पार्यों में फलकमें चमरेन्द्र बने हुए हैं। ये ही गिरि पाश्वनाथ कहलाते हैं। मूर्तिके ऊपर लेप किया हुआ है। इसमें शैली आदि दब गयी है । अतः इसका रचनाकाल ज्ञात नहीं हो पाता। इसके निकट क्षेत्रपालकी मूर्ति है। __ मन्दिरके चारों ओर बाहर प्रदक्षिणापथ है और ऊंचा पक्का अहाता है। यह मन्दिर पूर्वाभिमुखी है। यहाँसे गांवके लिए सीधा मार्ग जाता है। धर्मशाला गांवमें एक धर्मशाला है। क्षेत्रपर २० अगस्त सन् १९६३ को आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज संघ सहित पधारे थे। उस समय क्षेत्रपर कोई धर्मशाला नहीं थी। क्षेत्र बहुत पिछड़ी हुई दशामें था। गांवमें जैनोंके केवल २-४ घर हैं। वे चाहते हुए भी क्षेत्रकी दशा सुधारने में असमर्थ थे। यह दशा देखकर पूज्य आचार्य महाराजने बाहरसे आये हुए जैन बन्धुओंको क्षेत्रकी दशा सुधारनेकी प्रेरणा की। आपकी प्रेरणासे क्षेत्रके जीर्णोद्धारका निश्चय किया गया और क्षेत्रपर आवश्यक निर्माण कार्य हुआ। सेठ शिवलाल भाई प्रेमचन्द लेंगरेकर वारामतीने २९ दिसम्बर १९५२ को क्षेत्रका ट्रस्ट किया और कुण्डल ग्राममें स्थित अपना मकान क्षेत्रको दान कर दिया। वही भवन आवश्यक परिवर्तन करके धर्मशाला बना दिया गया। धर्मशालामें तीन ओर खुले बरामदे तथा कई कमरे हैं। बाथरूम, नल और बिजलीकी व्यवस्था है। वार्षिक मेला यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण मासके अन्तिम सोमवारको जलयात्रा होती है। इसमें लगभग ६-७ हजार व्यक्ति सम्मिलित हो जाते हैं। नगरके मन्दिरसे जलयात्राका जलूस निकलकर तालके घाटपर जाता है। वहाँ मण्डपमें भगवान्का अभिषेक होकर जलूस वापस लौटता है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है मन्त्री, श्री कलिकूण्ड पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कुण्डल, तालुका तासगांव जिला सांगली (महाराष्ट्र)
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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