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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २२५ इस कहलाती है । वक्षपर श्रीवत्स नहीं है । इसके पीछे दीवारमें हाथ जोड़े हुए देवियाँ बनी हुई हैं । यही मूर्ति कलिकुण्ड पार्श्वनाथ कहलाती है । अनेक भक्तजन यहाँ मनौती मनाने आते हैं । मूर्ति के सामने पार्श्वनाथ भगवान्की एक और मूर्ति कृष्ण वर्णकी पद्मासन मुद्रामें आसीन है । इसकी अवगाहना १ फुट ३ इंच है । यह सप्तफणमण्डित है । वक्षपर श्रीवत्स नहीं है । पादपीठपर सर्पका लांछन अंकित है । मूर्तिलेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् ९६४ में हुई थी । इस वेदीपर विधिनायक पार्श्वनाथकी एक धातु प्रतिमा संवत् १९३६ की प्रतिष्ठित है । यहाँ धातुका एक शिखराकार चैत्य भी है । दायीं ओर पद्मावतीदेवीकी श्वेत मार्बलकी मूर्ति है । वेदीके नीचे शिखराकृति बनी हुई है जिससे लगता है कि नीचे भोयरा है । गर्भगृह के बाहर सभा मण्डपमें दायीं ओर दीवार में धरणेन्द्र और बायीं ओर की दीवार में पद्मावती की मूर्तियां हैं। इन दोनोंको अज्ञानतावश सिन्दूर पोत दिया गया है । धरणेन्द्र मुकुट, गलहार, जनेऊ, कड़ा और भुजबन्द धारण किये हुए हैं । पद्मावती मुकुट और हार धारण किये है। दोनोंके साथ सर्प बना जिससे इनकी पहचान धरणेन्द्र और पद्मावती के रूप में की जाती है। मन्दिर के बाहर प्रांगण और एक लम्बा बरामदा है । यह यात्रियोंके ठहरनेके उद्देश्यसे बनाया गया है । मन्दिरके बाह्य परिक्रमापथमें एक शिलाफलकमें तीर्थंकर मूर्ति बनी हुई है । इसमें एक ओर हाथ जोड़े हुए स्त्री बैठी है, दूसरे पाश्वमें एक पुरुष खड़ा है । सम्भवतः यह प्रतिष्ठाकारक दम्पती है। अधोभागमें एक दूसरेके नीचे दो कोष्ठक बने हैं। सम्भवतः इनमें भरत - बाहुबलीका युद्ध प्रदर्शित है । झरी पार्श्वनाथ - कुण्डल गाँवसे २ कि. मी. दूर पहाड़पर एक प्राकृतिक गुफा बनी हुई है । यह २६ फीट २ इंच लम्बी तथा १३ फीट ८ इंच चौड़ी है । गुफाके दो भाग हैं । दायीं ओरके भाग में पार्श्वनाथ प्रतिमा है । यह ३ फीट ८ इंच अवगाहनाकी कृष्णवर्णवाली पद्मासन प्रतिमा है । शिरोभागपर नो फण सुशोभित हैं । दायीं ओर पद्मावती देवीकी २ फीट ७ इंच ऊँची कृष्णant चतुर्भुजी मूर्ति है । देवीके दो हाथ वरद मुद्रामें हैं । बायें हाथमें कमल और दायें हाथ में त्रिशूल है । देवीके सिरपर सप्तफण हैं। देवी कानोंमें कर्णफूल, गलेमें हार, भुजाओंमें भुजबन्द और हाथोंमें कंकण धारण किये हुए है। फणके ऊपर पार्श्वनाथकी लघु प्रतिमा बनी हुई है । उसके ऊपर फण और शिखर हैं । यह देवी - मूर्ति स्वतन्त्र कोष्ठक में है । पार्श्वनाथ प्रतिमाके सामने ६ स्तम्भोंका एक मण्डप बना हुआ है । मण्डपके ऊपर गुफाकी छतमें दायीं ओर काले पाषाण हैं तथा बायें भागमें ताम्बुष पाषाण हैं । गुफामें, मण्डपमें और मूर्तिके ऊपर निरन्तर जल झरता रहता है । इसलिए इस प्रतिमाको झरी पार्श्वनाथ कहते हैं । गुफाका बायाँ भाग १२ फीट लम्बा है । इसकी चौड़ाई पूर्ववत् है । इसमें आधे भाग में ४ फीट ऊँचा चबूतरा है तथा आगे भागमें कुण्ड बना हुआ है जिसमें ५ फीट गहरा जल है । कुण्ड में जल निरन्तर आता रहता है । गुफाके द्वारपर दीवार बनाकर उसमें दो द्वार निकाले गये हैं । इस गुफा के दायीं ओर कुछ ऊपर चढ़कर एक अन्य प्राकृतिक गुफा है । गुफाके बाह्य कुण्ड बना हुआ है जिसमें जल बराबर आता रहता है । गुफाके अन्दर एक हॉल है तथा भाग में २९
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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