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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ संसार और भोगोंसे विराग उत्पन्न हो गया। उसने अपने पुत्र मयूरवर्माका अभिषेक करके उसे राज्य सौंप दिया और मुनि-दीक्षा ले ली।
___ एक बार गिरनार पर्वतपर रहनेवाली अम्बिका देवी दक्षिण दिशामें आयी और कराड़ नगरकी वायव्य दिशामें स्थित पहाडपर रहनेवाले चन्द्रगप्त मनिके प्रभावसे पहाडके नीचे उत्तर दिशामें एक वृक्षके ऊपर रहने लगी। लोग उसकी पूजा करने लगे। निकटवर्ती गांवोंके नाम उस देवीके नामपर रखे गये । कराड़का राजा हैयवनवंशी हरिश्चन्द्र देवीकी आराधना करने लगा। देवीने प्रसन्न होकर राजाको वरदान दिया, जिससे उसका मनोरथ पूर्ण हुआ। इसे देखकर मयुरवर्माने अपने धर्माध्यक्ष विष्णुमित्रके पुत्र भद्र हरिवर्माको धामिक विधि-विधान करने के लिए नियुक्त किया। उसने देवीसे अपने राजाके लिए पुत्र मांगा तथा यह वचन दिया कि पुत्र होनेपर राजा रयवल्ली गांव देवीके लिए दानमें देगा। यथासमय राजाको पुत्र-प्राप्ति हुई। राजा नवजात पुत्रको लेकर देवीके मन्दिरमें पहुंचा, मन्दिरकी प्रदक्षिणा देकर देवीके दर्शन किये। मन्दिरके मण्डपमें आचार्य श्रीपाल विराजमान थे। राजाने उन्हें नमस्कार किया और उनसे निवेदन
या कि आप अपना एक शिष्य हमें दे दीजिए । आचार्यने गणपाल नामक शिष्य राजाको दिया। राजाने रयवल्ली देशका दान उन्हें किया। देवीने कहा कि मुझे इतने बड़े देशकी क्या आवश्यकता है। तब राजाने कराड़ देशके अनेक ब्राह्मणोंकी साक्षीमें चैत्र शुक्ला १० को उदम्बर गाँवका दान किया। यह गांव कृष्णावेणा नदीके तटपर है। आचार्य श्रीपालके शिष्य भल्लंकी गणके गुणदेवने यह दान संभाला।
इस ताम्रपत्रमें यापनीय संघकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें विस्तृत जानकारी दी गयी है।
१६वीं शताब्दीके रत्ननन्दी मुनिके मतानुसार कराड़ नरेश भूपाल दिगम्बर मतानुयायी था और उसकी रानी नकूलदेवी श्वेताम्बर थी। दोनोंकी सम्मिलित भक्तिके कारण यापनीय संघकी उत्पत्ति हुई।
इस लेखमें एक स्थानपर बताया है कि १०वीं शताब्दीके एक आचार्यके मतानुसार इस संघकी स्थापना कल्याणी नगरमें द्वितीय शताब्दीमें हुई थी। चालुक्य नरेशोंकी चार राजधानियोंमें एक राजधानी कल्याणी नगरमें थी। ५वीं शताब्दीके लगभग जब मूल दिगम्बर जैन संघसे पृथक् होकर श्वेताम्बर सम्प्रदाय अस्तित्व में आया, तब कुछ समन्वयवादी जैनोंने यापनीय संघ स्थापित किया। ताम्रपत्रमें यह भी उल्लेख है कि चालुक्य नरेश विजयादित्यने सातवीं शताब्दीमें कुण्डल नामक ग्राममें स्थित यापनीय संघके किसी विद्यापीठको कई गांव दानमें दिये। इस यापनीय संघकी स्थापना इसी राजाने की थी। इस मतके अनुसार भूपाल नरेश ७वीं शताब्दीसे पूर्व कराड़ देशमें हुआ होगा। सम्भवतः इस राजाने दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायोंके मतभेद दूर करनेका बहुत प्रयत्न किया था।
१३वीं शताब्दोके आचार्य श्रीमाल और १६वीं शताब्दीके रत्ननन्दी आदि आचा के साथ इस देशमें विहार करते थे। क्षेत्र-दर्शन
— कुण्डलनगरमें एक मन्दिर है। यह कलिकुण्ड पाश्र्वनाथ मन्दिर कहलाता है । इसके गर्भगृहमें वेदीपर ५ फीट ४ इंच ऊंची भगवान् पार्श्वनाथको कृष्णवर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है। अभी कुछ वर्ष पूर्व मूर्तिपर लेप किया गया है। अतः लेख दब गया है। यह मूर्ति बालुकामय
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