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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बायीं ओर एक आलेमें भगवान महावीरकी श्वेत वर्णकी संवत् १९४९ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा है। इसके बायीं ओर दो श्वेत पार्श्वनाथ मूर्तियाँ खड्गासन मुद्रा में हैं। इन पार्श्वनाथ मूर्तियोंमें फणावलि नहीं है। पादपीठपर सर्प लांछन अंकित है।
इससे आगेके बरामदेमें दायीं ओर संवत् १९३९ में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण और नौ फणमण्डित पाश्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। बायीं ओर कृष्ण वर्णकी पार्श्वनाथ प्रतिमा संवत १९५७ में प्रतिष्ठित पद्मासन मुद्रामें आसीन है। तथा दायीं ओर एक पाषाणफलकमें पद्मावती देवीकी चतुर्भुजी मूर्ति है। इसके शीर्ष भागपर ७ तीर्थंकर प्रतिमाएं बनी हुई हैं। अधोभागमें एक ओर धरणेन्द्र है तथा दूसरी ओर भैरव अपने वाहन श्वानपर आसीन है।
बायीं ओर एक कमरे में संवत् १९३९ में प्रतिष्ठित श्वेतवर्ण आदिनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। उसके बायीं ओर खड्गासन कृष्णवर्ण ऋषभदेवकी दो मूर्तियां हैं। तथा दायों ओर सुपार्श्वनाथकी कृष्ण पद्मासन प्रतिमा है । कमरेके मध्यमें एक चैत्य विराजमान है। ___मुख्य वेदीवाले गर्भगृहके सामने २४ स्तम्भोंपर आधारित सभामण्डप बना हुआ है। उसके मध्यमें एक खेला-मण्डप है। सभामण्डपके सामने देशी श्याम पाषाणका बना हुआ ५३ फुट उत्तुंग मानस्तम्भ है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५७ में हुई थी। मध्य मण्डपके दोनों ओर भी मण्डप बने हुए हैं।
यहां एक कमरेमें शास्त्र-भण्डार है। एक अन्य कमरेमें संग्रहालय बना हुआ है। इसमें ब्रह्मचारी महतीसागरजीकी सभी वस्तुएँ-शास्त्र, ऐनक आदि संग्रहीत हैं। क्षेत्रके मुख्य द्वारके बगलमें क्षेत्र कार्यालय है।
इस क्षेत्रसे लगभग ३ फलांग दूर जंगलमें आचार्य धर्मसागरजीके समाधि-स्थानपर छतरी बनी हुई है।
धर्मशाला
क्षेत्रपर ३ धर्मशालाएँ हैं। इनमें ५० कमरे हैं। यात्रियोंको यहाँ भोजन, नल, बिजली और बिस्तरोंकी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
मेला
यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक वदी ५ से ७ तक रथयात्रा महोत्सव होता है। इस अवसरपर यहाँ १०-१५ हजार व्यक्ति बाहरसे आते हैं। प्रति पांच वर्ष बाद मानस्तम्भका अभिषेक होता है। जैन गुरुकुल
क्षेत्रपर एक जैन गुरुकुल चल रहा है, जिसमें लगभग २५ छात्र विद्याध्ययन करते हैं। छात्रावासमें रहकर वे सरकारी स्कूलमें भी शिक्षा पाते हैं। क्षेत्रका पता इस प्रकार है
मन्त्री, श्री महावीर स्वामी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, दहीगांव ( वाया-नातेपुत्ते ), तालुका-मालशिरस जिला शोलापुर ( महाराष्ट्र)