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________________ - - महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २२१ वेदोपर ब्रह्मचारी महतीसागरजीकी चरण-पादुकाएं हैं। ये ही पादुकाएँ अतिशयसम्पन्न कहलाती हैं। उक्त वेदीकी बायीं ओर एक गर्भगृहमें ३ फुट २ इंच ऊंचे एक शिलाफलकमें भगवान् पाश्वनाथकी सप्तफणावलियुक्त श्यामवर्णवाली खड्गासन प्रतिमा है। पादपीठपर लेख नहीं है। प्रतिमाके दोनों पार्यों में यक्ष-यक्षी बने हुए हैं। यह फलक एक किसानको खेत जोतते समय भूगर्भसे प्राप्त हुई थी। मुख्य वेदीके सामने जो सभा-मण्डप बना हुआ है, उसके नीचे उतना ही बड़ा तलघर है। आचार्य शान्तिसागरजी महाराजके उपदेशसे यहाँ विदेह क्षेत्रमें वर्तमान २० तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएं विराजमान की गयी थीं। इनमें सीमन्धर भगवान्की ४ फुट ४ इंच ऊंची श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा संवत २००२ में हुई थी। अन्य तीर्थंकर प्रतिमाएं भी वर्ण. आकार आदिकी दृष्टिसे लगभग इसके समान हैं। ये इस तल-प्रकोष्ठमें दीवारोंसे संलग्न चारों ओरकी वेदियोंमें विराजमान हैं। इस प्रकोष्ठके मध्यमें एक चबूतरेपर ५ फुट ऊँचा पीतलका सहस्रकूट जिनालय है। ऊपर एक ऊँचा शिखर है। जिनालयमें चारों दिशाओंमें १०८८ प्रतिमाएं बनी हुई हैं। यह जिनालय संवत् १६६५ में प्रतिष्ठित हुआ है। ___ इस प्रकोष्ठमें से एक कमरेमें जाते हैं। इसमें एक वेदीपर ५ फुट ४ इंच अवगाहनावाली संवत् १९२१ में प्रतिष्ठित भगवान् आदिनाथको कृष्ण पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पाश्ॉमें शिलाफलकमें उत्कीर्ण भगवान् पाश्र्वनाथकी श्वेत वर्णवाली पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इस कमरेमें-से दूसरे कमरेमें जाते हैं जहां वेदीपर भगवान् पार्श्वनाथकी ९ फणावलिमण्डित कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। अवगाहना ५ फुट ८ इंच है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९४९ में हुई थी। यहां एक दीवार वेदीमें भगवान् आदिनाथकी ३ फुट ८ इंच उन्नत तथा संवत् १९२९ में प्रतिष्ठित कृष्ण वर्णवाली पद्मासन प्रतिमा आसीन है। यहांसे घूमकर एक अन्य तलघरमें पहुंचते हैं जहां पाषाणकी २८ तीर्थंकर प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनमें तीन मूर्तियां पाश्वनाथकी हैं। ये श्वेत वर्णकी हैं और सहस्र फणावलियुक्त हैं । मूलनायक प्रतिमा भगवान नेमिनाथकी है जो ३ फुट उत्तुंग है, कृष्णवर्णकी है, पद्मासन है और संवत् १९१९ की प्रतिष्ठित है। ___इससे आगे बढ़नेपर एक अन्य कमरा मिलता है। इसमें २ फुट ऊंची संवत् १७४५ में प्रतिष्ठित भगवान पाश्वनाथकी सप्तफणवाली श्वेत पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके अतिरिक्त यहाँ ६ श्वेत पाषाण-मूर्तियाँ और हैं । यहाँ क्षेत्रपालकी भी एक मूर्ति है। इस कमरेमें-से निकलकर तलघरसे ऊपर जाते हैं। वहां मुख्य वेदीके दायीं ओर गर्भगृहमें ३ फुट ४ इंच ऊँचा एक रत्नत्रय स्तम्भ है। इसकी चारों दिशाओंमें श्याम वर्णवाली ३-३ खड्गासन मूर्तियां बनी हुई हैं। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९२९ में हुई थी। इसीके कारण यह रत्नत्रय मन्दिर कहलाता है। इसके पीछे दालान जाकर दायीं ओर कमरेमें पाश्वनाथकी एक खड्गासन प्रतिमा श्वेत पाषाणकी है। उसके दायीं ओर एक शिलाफलकमें पाश्वनाथ खड्गासन मुद्रामें हैं। परिकरमें भामण्डल, छत्र, गजलक्ष्मी, दोनों ओर ३-३ पद्मासन मूर्तियां और उनसे नीचे चमरेन्द्र हैं। इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् १९१९ है । बायीं ओर आदिनाथकी श्वेतवर्णवाली पद्मासन प्रतिमा है जो संवत् १९६१ की प्रतिष्ठित है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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