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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ :
से पूर्वको ओर लगभग ९ कि. मी. दूर १०९ गुफाओंका समूह), एलीफैंटा या धारापुरीकी गुफाएँ (शहरसे उत्तर-पूर्वमें ११ कि. मी.)।
दहीगाँव मार्ग और अवस्थिति
'श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र दहीगांव' महाराष्ट्र प्रान्तके शोलापुर जिलेके मालशिरस तालुकामें अवस्थित है। लोणन्दसे पंढरपुर जानेवाली सड़कपर नातेपुत्ते है । नातेपुत्तेसे बालचन्दनगरको जानेवाली सड़कपर ६ कि. मी. दूर दहीगांव है। बालचन्दनगर यहांसे केवल १३ कि. मी. है। सड़कसे क्षेत्रके मन्दिर दिखाई पड़ते हैं । दक्षिण-मध्य रेलवेके वारामतीसे यह ३५ कि. मी., पंढरपुर-नीरा और लोणन्दसे ६५ कि. मी. है। फलटण, अकलूज, सतारासे एस. टी. की बसें मिलती हैं। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि इस प्रदेश में दहीगाँव नामके दो गाँव है तथा एक गांव दहीवड़ी नामसे है । जैन क्षेत्र उस दहीगांवमें है जो नातेपुत्तेके निकट है तथा नातेपुत्तेसे बालचन्दनगरको जानेवाली सड़क किनारेपर है। अतिशय क्षेत्र
आजसे प्रायः डेढ़ शताब्दी पूर्व इस स्थानपर कोई जिनालय नहीं था। यहाँके जैन उस समय धर्मके प्रति उदासीन थे। अज्ञान और मिथ्यारूढ़ियां प्रचलित थीं। लगभग १२५ वर्ष पूर्व यहाँपर कारंजाके निकटवर्ती सेन्दुरजना ग्रामके निवासी ब्रह्मचारी महतीसागरजी पधारे। वे एक विद्वान् और शासन प्रभावक त्यागी थे। इस प्रदेशमें उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। उन्होंने कई स्थानोंपर जिनालयोंका निर्माण कराया था। उनके उपदेशोंसे यहांकी समाजमें जागृति आयी और कुरूढ़ियोंका नाश हुआ। यहांपर एक विशाल और कलापूर्ण मन्दिर बनवानेकी उनकी हार्दिक इच्छा थी, किन्तु वे असमयमें ही विक्रम संवत् १८८९ में दिवंगत हो गये । ब्रह्मचारीजीकी इस अन्तिम अभिलाषाकी पूर्तिका दायित्व उनके शिष्य पण्डित गुणचन्द्र और गृहस्थशिष्योंने अपने ऊपर लिया और विशाल जिनालयका निर्माण कराया। विक्रम संवत् १८९३ में उनके एक गृहस्थशिष्य फलटण निवासी सेठ जयचन्द गान्धी और उनके पुत्रोंने ब्रह्मचारीजीकी समाधिका निर्माण कराके उसमें उनकी चरण-पादुका विराजमान करायीं। इन चरण-पादुकाओंके दर्शन करनेसे लोगोंकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, इस प्रकार जनतामें विश्वास व्याप्त है। इसी मान्यताको लेकर धीरे-धीरे यह स्थान अतिशय क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध हो गया है। क्षेत्र-दर्शन
यहां मुख्य वेदीमें ५ फुट ५ इंच अवगाहनावाली भगवान् महावीरकी श्याम वर्ण पद्मासन प्रतिमा मूलनायकके रूपमें विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९१० माघ शुक्ला ४ रविवार
हई थी। बायीं ओर आदिनाथ भगवानकी श्वेत पद्मासन तथा दायों ओर पाश्र्वनाथकी कृष्ण पद्मासन प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त इस वेदीपर धातुकी ५० मूर्तियां विराजमान हैं।
यहाँसे निकलकर बायीं ओर मण्डपमें-से जाते हैं और ३-४ सीढ़ियां उतरनेपर एक गर्भगृह मिलता है जिसमें वेदीपर भगवान महावीरकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा आसीन है। इसी
को हुई थी। बायीं ओर