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________________ २१८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ लेते हैं। इस मन्दिरमें मूलनायक भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा है । यह श्वेत वर्णं है और अवगाहना ढाई फुट है। मूर्तिलेखसे ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठा वि. संवत् १२९२ फाल्गुन शुक्ला १२ को भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति तच्छिष्य श्री विशालकीर्तिने करायी थी । यह प्रतिमा किस स्थानके मन्दिरसे लायी गयी है, यह ज्ञात नहीं हो सका । 1 मूलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त यहाँपर पार्श्वनाथकी २ प्रतिमाएँ, ऋषभदेवकी १, महावीर स्वामीकी १, नन्दीश्वरजीकी १, चौबीसीकी १ और शासनदेवी पद्मावतीकी १ प्रतिमा है । इन प्रतिमाओं में २ पाषाणकी तथा ५ पीतलकी हैं । मूलनायक के अतिरिक्त शेष प्रतिमाएँ आधुनिक हैं । गुफा मन्दिरपर अथवा पहाड़पर दिगम्बर समाजका अधिकार है । ग्राममें श्वेताम्बर समाजके भी दो मन्दिर हैं- चन्द्रनाथ भगवान्‌का मन्दिर तथा नेमिनाथ ब्रह्मचर्याश्रममें स्थित आदिनाथ मन्दिर । धर्मशाला मेला यात्रियों को ठहरने के लिए ग्रामके बाजार में एक विशाल दिगम्बर जैन धर्मशाला है । क्षेत्रपर कोई वार्षिक मेला नहीं होता। हां, स्थानीय और निकटवर्ती नगरोंके जैन भाद्रपद शुक्ला १४ को यहाँ अवश्य एकत्रित होते हैं । उस दिन यहाँ समारोह पूर्वक महाभिषेक होता है । बोरीवली (बम्बई) मार्ग और अवस्थिति श्री आदिनाथ बाहुबली दिगम्बर जैन मन्दिर ( क्षेत्र ) पोदनपुर बोरीवलीके नेशनल पार्क में अवस्थित है । बोरीवली बम्बई नगरका उपनगर है । यह बम्बई सेण्ट्रल रेलवे जंक्शन से ३० कि. मी. है। बम्बई सेण्ट्रल स्टेशन ( वेस्टर्न रेलवे ) से बराबर लोकल ट्रेन चलती रहती है । बोरीवली स्टेशनसे नेशनल पार्क, जहाँ मन्दिर अवस्थित है, २ कि. मी. है। यहाँ स्कूटर, घोड़ागाड़ी आदि सवारी मिलती है । मन्दिर नेशनल पार्कंमें गान्धी स्मारकसे कुछ आगे जानेपर दायीं ओर मुख्य सड़कसे कुछ हटकर है और बोलचाल में 'तीनमूर्ति' कहा जाता है । क्षेत्र-दर्शन एक विशाल मैदानके मध्य में ऊँची चौकीपर एक विशाल पक्का संगमरमरका चबूतरा बना हुआ है। उसके ऊपर सामने तोन खड्गासन मूर्तियाँ श्वेत मकराने की विराजमान हैं। मध्यमें आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव, बायीं ओर भगवान् भरत और दायीं ओर भगवान् बाहुबली स्वामीकी अति भव्य और मनोज्ञ मूर्तियां हैं। मध्य मूर्ति ( भगवान् ऋषभदेव ) की अवगाहना ३१ फीकी है तथा दोनों पाश्ववर्ती मूर्तियोंकी ऊँचाई २९-२९ फीटकी है। उनके चरणों में जाकर हम संसारी जन उनके समक्ष कितने हीन और लघु लगते हैं किन्तु करुणा के स्वामी आदिप्रभु हमें अपने चरणों में शरण देकर हमारे ऊपर अपार करुणाकी वर्षा करते हुए हमें मानो मूक सन्देश देते हैं, "तुम न हीन हो, न दीन हो। तुम्हारे अन्दर भी मेरे समान अनन्त आत्मवैभव
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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