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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ
२१७ मार्ग और अवस्थिति
नासिक एण्ड वैस्ट खानदेश डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्टके अनुसार मांगीतुंगी पवंत गालना हिल्स कहलाता है तथा तलहटीके गांवका नाम भिलवाड़ा है। मांगी शिखर समुद्रतलसे ४१४३ फुट ऊँचा है तथा तुंगी शिखर ४३६६ फुट ऊंचाईपर है।।
__ वहां जानेका मार्ग इस प्रकार है-बम्बईकी ओरसे आनेवालोंको नासिकसे सटाणा (८८ कि. मी. ) तथा सटाणासे ताराबाद ( २७ कि. मी. ) बस द्वारा जाना चाहिए। मनमाड़ स्टेशनसे सटाणा होते हुए ताराबाद ८६ कि. मी., गुजरातसे आनेवालोंको नवापुर होते हुए ताराबाद ८० कि. मी. तथा धूलियासे पिपलनेर होकर ताराबाद ८८ कि. मी. है। सभी स्थानोंसे बसें मिलती हैं। ताराबादसे बैलगाड़ी करनी पड़ती है। लगभग ४ कि. मी. पक्की सड़क है और ६ कि. मी. कच्ची सड़क है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है
मन्त्री, श्री मांगीतुंगी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पो. मुल्हेड़ ( तालुका सटाणा, जिला नासिक ) महाराष्ट्र
चाँदवड़ गुफा मन्दिर अवस्थिति और मार्ग
श्री दिगम्बर जैन गुफा मन्दिर चांदवड़ जिला नासिक ( महाराष्ट्र ) में है। चांदवड़में पोस्ट-ऑफिस भी है। मध्य रेलवेके मनमाड़ और लासलगांव स्टेशनोंसे चांदवड़ जानेके लिए बसें मिलती हैं । मनमाड़से मांगीतुंगी जाते समय चांदवड़ ग्राम मिलता है। ग्रामसे गुफा थोड़ी दूरपर है। इसी प्रकार गजपन्था क्षेत्रसे मांगीतुंगी क्षेत्रको जाते समय सटाणा पड़ता है। वहांसे चांदवड़ ४० कि. मी. है । बसें जाती हैं। गुहा-मन्दिर
___चांदवड़ ग्रामसे पूर्वकी ओर पर्वतके मध्यमें श्री चन्द्रनाथ दिगम्बर जैन गुफाके नामसे एक प्राचीन गुफा है । इसमें जैन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । मूलनायक प्रतिमा भगवान् चन्द्रनाथ ( चन्द्रप्रभ ) की है । वणं श्याम है, अवगाहना आसन सहित साढ़े तीन फुट है। पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। इसकी चरण-चौकीपर कोई लेख नहीं है। इस प्रतिमाकी दायीं ओर भगवान पाश्वनाथकी फणावलीयुक्त श्यामवर्ण पद्मासन ढाई फुट उन्नत प्रतिमा है। इससे आगे दो खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियां हैं जो दोनों ही ४-४ फुट ऊंची हैं। और आगे पाश्र्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। अवगाहना लगभग २ फुट है। मूलनायककी बायीं ओर एक तीर्थंकर प्रतिमा, शिलाफलकोंपर दो चौबीसी तथा लगभग ३५ छोटी-बड़ी अन्य प्रतिमाएं हैं। इनमें एक यक्ष-यक्षीकी मूर्ति है, १ चरणचिह्न है तथा शेष तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं। सभी प्रतिमाएँ श्यामवणं हैं। किसी भी प्रतिमापर लेख नहीं है, किन्तु उनकी रचना शैलीसे ये ८वीं शताब्दीकी प्रतीत होती हैं। यक्ष-यक्षीको मूर्तियोंपर सिन्दूर लगाकर कुछ लोग अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं।
पहले तो ग्रामके सभी दिगम्बर जैन प्रतिदिन पहाड़पर दर्शनार्थं जाते थे किन्तु कुछ वर्ष पूर्व ग्राममें एक दिगम्बर जैन मन्दिर बन जानेसे अब प्रायः इसी नवीन मन्दिरमें ही दर्शन कर
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