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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसके पश्चात् फिर एक अन्य आदिवासी युवकने मांगीकी चोटीपर चढ़नेका साहस किया। वह युवक प्रतिवर्ष कार्तिक सुदी १४ को मांगीकी चोटीपर चढ़ता है और वहाँ नयी ध्वज फहराता है । वह तीन वर्षसे इसी प्रकार ध्वजारोहण कर रहा है।
उल्लेख योग्य बात यह है कि इन दोनों चोटियोंपर जानेका कोई मार्ग नहीं है। यहाँ अनगढ़ शिलाओंके सहारे ही जाया जा सकता है। जरा-सी ही चूक प्राणघातक सिद्ध हो सकती है। इनमें तुंगोकी चोटी तो एकदम सपाट सीधी है। कहा जाता है कि इसके ऊपर तो बन्दर तक नहीं चढ़ सकता।
मुछ आदिवासियोंकी सूचनाके आधारपर यह भी ज्ञात हुआ है कि मांगी और तुंगी शिखरोंके पृष्ठ भागमें जंगलमें कुछ जैन मूर्तियां पड़ी हैं। इन शिखरोंके चारों ओर पर्वतों और जंगलोंमें शोध-खोजकी आवश्यकता है। सम्भव है, यहां कुछ पुरातत्त्व और नवीन रहस्योंपर प्रकाश पड़ सके। व्यवस्था
विक्रम संवत् १९०४ से संवत् १९४६ तक क्षेत्रको व्यवस्था कारंजाके भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिजीके शिष्य ब्र. रतनसागरजीके हाथमें रही। इसके पश्चात् वे अस्वस्थ हो गये और नागपुरकी ओर विहार कर गये। तब स्थिति यहाँ तक जा पहुंची कि मन्दिरोंपर कई दिन तक ताले लगे रहे। यह समाचार प्राप्त होनेपर भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिजीके शिष्य क्षुल्लक धर्मदासजी यहाँ पधारे। संवत् १९४७ के वार्षिक मेलेपर आपकी अध्यक्षतामें सभा हई। आपकी सम्मतिसे क्षेत्रकी व्यवस्थाके लिए एक पंच कमेटीका निर्वाचन किया गया। तबसे 'पंच कमेटी श्री मांगीतुंगी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र' ही इस क्षेत्रकी सम्पूर्ण व्यवस्था करती आ रही है। धर्मशाला
यहाँ एक धर्मशाला है जिसमें ३५ कमरे हैं। यात्रियोंको सुविधाके लिए कुएंमें मोटर लगाकर टंकी और पाइपकी व्यवस्था की गयी है। बिजली है। गद्दे, तकियोंकी व्यवस्था है। बर्तनोंका काफी बड़ा संग्रह है। यहाँ दुकानपर आवश्यक सामान मिल जाता है। धर्मशालामें बहुत बड़ा मैदान है। यहीं मन्दिर बने हुए हैं। वार्षिक मेला
क्षेत्रपर प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला १३ से १५ तक वार्षिक मेला होता है। कार्तिक शुक्ला १४ को गिरिराजपर पंचामृताभिषेक होता है। पूर्णिमाको प्रातःकाल तलहटीके मन्दिरोंमें अभिषेक होता है । मध्याह्नमें रथयात्राका जलूस निकलता है। रथ धर्मशालाके बाहर एक बटवृक्ष तक जाता है। वहाँ १०८ कलशोंसे भगवानका अभिषेक होता है। इस अवसरपर लगभग २०-२५ हजार व्यक्ति मेलेमें सम्मिलित होते हैं जिनमें जैनेतर अधिक संख्यामें आते हैं। मेलेकी व्यवस्था ग्राम पंचायत करती है।
एक उल्लेखनीय धार्मिक मेला फाल्गुन शुक्ला १२ संवत् १९९७ को हआ था। उस दिन मानस्तम्भकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी। उस समय मुनिराज श्री वीरसागरजीका संघ एक माहसे क्षेत्रपर ठहरा हआ था। प्रतिष्ठाके अवसरपर परम पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी भी संघ सहित पधारे थे।