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________________ महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ २१५ है। इसकी प्रतिष्ठा माघ शुक्ला ८ संवत् १९२७ को भट्टारक रत्नकीर्तिके उपदेशसे हुई थी। इसके अतिरिक्त वेदीपर श्वेत पाषाणकी ६ पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। मन्दिरके बरामदेमें द्वारके दोनों ओर क्षेत्रपाल विराजमान हैं। अतिशय यह क्षेत्र ९९ कोटि मुनियोंकी निर्वाण-भूमि है । लोगोंका विश्वास है कि इस पावन तीर्थपर देवगण दर्शन-पूजनके लिए आते रहते हैं। कहा जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व जयपुर, ग्वालियर और दुर्गके यात्रा-संघोंने तुंगी शिखरकी ओर जाते समय नाना प्रकारके अश्रुतपूर्व वाद्योंकी तुमुल मधुर ध्वनि तीन दिन तक यात्राके समय सुनो थी। अन्य लोगोंने तुंगी शिखरपर नृत्य और वाद्योंकी ध्वनियां अनेक बार सुनी हैं। दुस्साध्य साधन ऊपर जिन मांगी और तुंगी शिखरोंका वर्णन किया गया है, वस्तुतः वहाँ गुफाएं और मूर्तियां पर्वतकी चोटियोंपर नहीं हैं । चोटियां वहाँसे सम्भवतः दो-ढाई सौ फुट ऊपर होंगी। उन चोटियोंपर जानेका कोई सुगम मार्ग नहीं है। शायद इन चोटियोंपर जानेका किसीने प्रयत्न भी नहीं किया । ऐसी दशामें यह जिज्ञासा और कुतूहल होना स्वाभाविक था कि इन दुर्गम चोटियोंके ऊपर क्या है । सम्भवतः इसी जिज्ञासावश कुछ वर्ष पूर्व कार्तिक सुदी १५ को क्षेत्रके मेलेपर एक साहसी आदिवासी युवक मांगी शिखरकी चोटीपर गया। उसने ऊपरसे विविध वर्णके पुष्प तोड़कर बरसाये । थोड़ी देर बाद वह वहाँसे उतर आया। आकर उसने बड़ी अद्भुत बातें बतायीं। उसने बताया कि चोटीपर अनेक वृक्ष और पुष्पवाले पौधे हैं। वहाँ गुफाएं हैं, निर्मल जलके कुण्ड बने हुए हैं तथा वहां चरण बने हुए हैं। उससे चोटीपर अधिक शोध-खोज करनेका आग्रह किया गया तो उसने पंचमीके प्रातःकाल चोटीपर चढ़कर वहां ध्वजा फहरानेका वचन दिया। तदनुसार वह चतुर्थीको आकर पंचमीको प्रातःकाल चोटीपर चढ़ा। वह अपने साथ जैन ध्वज, रस्सी, इंचीटेप ले गया। ऊपर जाकर उसने अपनी रस्सी द्वारा मोटे रस्सेको खींचा। तब उस मोटे रस्सेके द्वारा एक अन्य यवर्ककी सहायतासे, जो बादमें ऊपर चढा था, २२ फट लम्बे लोहेके पाइपको खींचा। उन्होंने पाइपको रस्सी द्वारा एक ऊंचे पेड़से बांधकर उसपर जैन ध्वज लहराया। उस समय पवंतपर तथा तलहटीमें सैकड़ों दर्शक मौजूद थे। फिर उन्होंने मांगी शिखरकी पैमाइश की। उन्होंने नीचे आकर बताया कि मांगीकी चोटी उत्तरसे दक्षिणकी ओर ३०० फुट लम्बी तथा पूर्वसे पश्चिमकी ओर ७५ फुट चौड़ी है। इसके पश्चात् ढींगड़ा ग्रामवासी पवल्या नामक एक आदिवासी युवक कई वर्ष तक मेलेके अवसरपर मांगी और तुंगीकी चोटियोंपर चढ़ता रहा। वह प्रायः रात्रिके समय चढ़ता था। वह कार्तिक सुदी १४ को ऊपर चढ़ता था। वह अपने साथ १०-१५ किलो घी, रुई और सात बड़े दीपक ले जाता था। वह मांगीकी चोटीपर दीपक जलाता था। तुंगीकी चोटोपर वह ध्वजा फहराता था। कभी-कभी तो वह इन चोटियोंपर ८-८ दिन रहता था। उससे कई बार आग्रह किया गया कि तुंगीकी चोटीकी शोध-खोज करके बताये कि चोटीपर क्या है। किन्तु सदा ही वह रहस्यपूर्ण उत्तर देता था कि अभी मुझे बतानेका आदेश नहीं है, जब आदेश मिल जायेगा तो मैं स्वयं बता दूंगा। किन्तु यह अवसर कभी नहीं आया क्योंकि जो तीन युवक डोंगरिया देवकी गुफामें जाकर पुनः कभी नहीं लौटे, उनमें यह पवल्या भी था।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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