SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं लगी हुई है। दोनों शिखरोंके परिक्रमा पथ कच्चे हैं। यदि ये पक्के बना दिये जायें तो सुरक्षाकी दृष्टिसे अधिक सुविधाजनक हो जायें । दोनों शिखरों और शुद्ध-बुद्धजीकी गुफाओंमें मूर्तियाँ बहुत प्राचीन हैं। अनुमानतः इनका निर्माण काल ७-८वीं शताब्दी प्रतीत होता है । इन मूर्तियोंमें सुडौलता नहीं है, छातीपर श्रीवत्स नहीं है, उनके पादपीठपर लेख और लांछन भी नहीं है । मूर्तियोंकी यह विधा गुप्तकालके पूर्वमें प्रचलित रही थी । इस दृष्टिसे यदि इनका काल गुप्त युगसे भी पूर्ववर्ती हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी । यहाँकी गुफाएँ प्राकृतिक हैं । किन्तु भक्तजनोंने पलस्तर द्वारा इन्हें कमरोंका रूप दे दिया है। इसी प्रकार उन्होंने कुछ मूर्तियोंपर पालिश करवा दी है । सम्भवतः उनका उद्देश्य गुफाओं और मूर्तियों की सुरक्षा करना रहा होगा। एक सीमा तक वे अपने उस उद्देश्य में सफल 'हुए हैं क्योंकि जिन मूर्तियोंके ऊपर लेप नहीं किया गया, वे खिरकर विरूप हो गयी हैं । इसी प्रकार गुफाएँ भी सुन्दर लगने लगी हैं । किन्तु गुफाओंका अपने प्राकृतिक रूपमें जो महत्त्व था, वह पलस्तर करने और टाइल्स लगानेसे जाता रहा । गुफाओंकी तरह पालिश की हुई प्रतिमाओं में प्राचीनताका आभास भी नहीं मिलता। सांस्कृतिक, पुरातात्त्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टिसे प्राचीनताका विशेष महत्त्व है । तलहटीके मन्दिर तलहटी में धर्मंशालाओंके मध्यमें तीन मन्दिर बने हुए हैं - १. पार्श्वनाथ मन्दिर, २. आदिनाथ मन्दिर और ३. पार्श्वनाथ मन्दिर । १. पार्श्वनाथ मन्दिर - मन्दिर में गर्भगृह, सभामण्डप और बरामदा बना हुआ है । वेदीमें मूलनायक पार्श्वनाथकी ३ फुट ८ इंच ऊंची कृष्ण वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है । प्रतिमाके सिरपर नौ फणावलीका मण्डप । इसकी प्रतिष्ठा माघ शुक्ला ५ सोमवार संवत् १९१५ को हुई थी । वेदीके समवसरणमें १२ पाषाणकी ( ३ कृष्ण वर्णं और ९ श्वेतवर्णं पद्मासन ) तथा ३३ धातुकी (जिनमें ३ चौबीसीकी, २ चेत्य और १ सिद्ध भगवान्‌ की प्रतिमा सम्मिलित हैं) प्रतिमाएँ हैं । इस वेदीके अतिरिक्त दो वेदिय और हैं जिनमें पद्मावती देवीको मूर्तियां हैं । एक कमरे में क्षेत्रपालकी मूर्ति है । इस मन्दिर के सामने एक मानस्तम्भ था । वह १४ जून १९६८ को भयंकर तूफान में गिर पड़ा और खण्ड-खण्ड हो गया, किन्तु शीषं वेदीकी चारों प्रतिमाएँ सुरक्षित रहीं । वे प्रतिमाएँ भी इस मन्दिर में रखी हुई हैं । २. आदिनाथ मन्दिर - इस मन्दिर में केवल गर्भगृह और बरामदा है । वेदीपर मूलनायक भगवान् आदिनाथकी २ फुट ५ इंच ऊँची श्वेत वर्णंकी पद्मासन प्रतिमा है । इसकी प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ला १३ वीर संवत् २४४६ को भट्टारक विजयकीर्तिके उपदेशसे हुई थी। इस प्रतिमा वाम पार्श्वमें २ फुट १ इंच ऊँची भगवान् विमलनाथकी संवत् १९७६ में प्रतिष्ठित श्वेतवर्णं प्रतिमा विराजमान है तथा दक्षिण पाश्वमें भगवान् चन्द्रप्रभको इसी कालकी और इसी वर्णकी एक प्रतिमा है । दायीं ओर एक वेदीमें ऋषभदेवकी २ फुट २ इंच ऊँची श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है तथा बायीं ओरकी वेदीमें आचार्यं शान्तिसागरजी के चरण बने हुए हैं । ३. पार्श्वनाथ मन्दिर - यह मन्दिर आदिनाथ मन्दिरसे मिला हुआ है। इसमें मूलनायक पार्श्वनाथकी ग्यारह फणवाली ३ फुट ६ इंच अवगाहनामें श्वेत वर्णं पद्मासन प्रतिमा विराजमान
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy