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________________ २०८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ रहे थे। कहते हैं, यहींपर लक्ष्मणने सूर्पणखाको नाक काटी थी। उसीके कारण इस स्थानका नाम नासिका पड़ गया और उससे नासिक हो गया। गोदावरीके बांयें तटपर आधा मील दूरपर वटवृक्ष है । हिन्दू लोग इसीको पंचवटी कहते हैं। यहाँसे पांच मील दूर पाण्डव गुफा तथा २१ अन्य गुफाएं हैं। इनका निर्माण काल ईसाकी चौथी शताब्दी माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग नासिकको काशीके समान पवित्र नगरी मानते हैं। जब १२ वर्ष बाद बृहस्पति सिंहराशिमें होता है, तब यहां विशाल कुम्भका मेला भरता है। ___ नासिकमें देखने योग्य वस्तुओंमें गोदावरीसे पांच मील दूर श्री रामचन्द्रजीका भव्य मन्दिर है। मन्दिरके पासका मण्डप बहुत ही सुन्दर है। कहते हैं, इस मन्दिरके बनवानेमें सात लाख रुपया खर्च हआ था। गजपन्था क्षेत्रका पता इस प्रकार है मन्त्री, श्री गजपन्था दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पो० म्हसरूल, (जिला नासिक) महाराष्ट्र मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी परम पावन सिद्धक्षेत्र है। यहांसे राम, हनुमान्, सुग्रीव, गवय, गवाक्ष, नील, महानील आदि ९९ कोटि मुनियोंको निर्वाण प्राप्त हुआ था। अतः यहाँका कण-कण पवित्र है। प्राकृत निर्वाण-काण्डमें इस तीर्थक सम्बन्ध में निम्नलिखित उल्लेख मिलता है "राम हणू सुग्गीवोगवय गवक्खो य नील महनीलो। णव णवदी कोडीओ तुंगीगिरि णिव्वुदे वंदे ॥८॥" अर्थात् राम, हनुमान्, सुग्रीव, गवय, गवाक्ष, नील और महानील आदि ९९ कोटि मुनियोंने तूंगीगिरिसे निर्वाण प्राप्त किया। उन्हें मैं वन्दना करता है। संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें पूज्यपाद आचार्यने 'तुंग्यां तु संगरहितो बलभद्र नामा' इस श्लोकचरणमें बलभद्र (राम) का निर्वाण तुंगीगिरिसे बतलाया है। उदयकीर्ति, श्रुतसागर, अभयचन्द्र, गुणकीर्ति, मेघराज, ज्ञानसागर, जयसागर, चिमणा पण्डित, देवेन्द्रकीर्ति, पण्डित दिलसुख आदि उत्तरकालीन भाषा-कवियोंने तीर्थ-वन्दना सम्बन्धी अपनी रचनाओंमें राम आदि मुनियोंकी निर्वाण-भूमिके रूपमें मांगीतुंगीका उल्लेख किया है। गंगादास, कमल, मेरुचन्द्र, गुणकीर्ति और अभयचन्द्र आदि कवियोंने बलभद्र अष्टक अथवा तुंगी गीतकी रचना करके बलराम द्वारा अपने अनुज नारायण कृष्णका दाह-संस्कार करने, विरक्त होकर दीक्षा लेने एवं यहींसे स्वर्ग गमन करनेका भावपूर्ण चित्रण किया है। इन कवियोंने भी अपनी इन रचनाओंमें तुंगीगिरिसे रामको मुक्ति प्राप्त होनेका उल्लेख करके इसको निर्वाण-भूमि माना है। ___ यहां एक महत्त्वपूर्ण बातका उल्लेख करना आवश्यक है। आचार्योंने राम आदिको निर्वाण भूमिका नाम तुंगीगिरि दिया है, कहीं भी मांगीतुंगी नाम नहीं दिया। इससे प्रतीत होता है कि प्राचीन कालमें इस पर्वतका नाम तुंगीगिरि ही था। किन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि मांगी और तुंगी दो भिन्न पर्वत हैं और मांगी शिखर सिद्धक्षेत्र नहीं है। वस्तुतः मांगी और तुंगी
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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