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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ
२०५ दिशाओंमें श्वेवर्णकी पद्मासन मूर्तियाँ हैं तथा १२-१२ मूर्तियां और बनी हैं। दायीं ओर दीवारवेदीमें २ फीट ऊंची पाश्वनाथकी श्वेतवर्ण पद्मासन मूर्ति है। इस मन्दिरके पाससे ही पर्वतपर चढ़नेके लिए सीढ़ियां बनी हैं । पर्वतकी ऊंचाई केवल ४०० फीट है। सीढ़ियाँ प्रायः एक फुट ऊँची और खड़ी हैं।
पर्वतपर चढ़नेके पश्चात् सर्वप्रथम एक फाटक मिलता है। इसमें घुसते ही दायीं ओरको १३ सीढ़ियाँ चढ़कर एक लघु शिखरके नीचे तीन श्वेत चरण सुदर्शन, नन्दि और नन्दीमित्र बलभद्रके विराजमान हैं। शिखरके अधोभागमें सुप्रभ, सुधर्म, गजकुमार, अचल और विजय बलभद्रके चरण हैं । फिर एक नवनिर्मित जिनालय और पाश्वनाथ गुफाके दर्शन होते हैं। इस गुफा मन्दिरको प्रतिमाको पुनः प्रतिष्ठा (लेप चढ़ानेके कारण) पूनाके सेठ शोभाराम भगवानदास द्वारा निर्मित की गयी। इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी श्यामवर्ण १० फुट ४ इंच अवगाहनावाली नौ फणावलियुक्त पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। आचार्य शान्तिसागरजीके उपदेशसे इस विशाल प्रतिमाकी पुनः प्रतिष्ठा करायी गयी। इसकी प्रतिष्ठा मार्गशीर्ष शुक्ला १० संवत् १९९४ में की गयी। दूसरा मन्दिर ब्र. जीवराज गौतमचन्दजी शोलापुरने निर्माण कराया। यह वीर सं. २४६० में निर्मित हुआ था। बायीं ओर १ फुट ५ इंच ऊंची कत्थई वर्णकी पद्मप्रभकी और दायीं ओर वासुपूज्यको प्रतिमा है। उपर्युक्त गुफा और पार्श्वनाथ प्रतिमा अत्यन्त प्राचीन हैं।
इन मन्दिरोंके बगलमें ही अत्यन्त प्राचीन दो गुफा मन्दिर हैं। इन गुहामन्दिरोंका निर्माण कब किसके द्वारा किया गया, यह ज्ञात नहीं होता। प्रतिमाओंपर लेप चढ़ा दिया गया है, इसलिए उनकी कला और संरचनासे भी निर्माण-कालका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। गुफाको भी पलस्तर और रंग-रोगन करके कमरेका रूप दे दिया है।
सामने वेदीपर एक शिलाफलकमें तीन श्यामवर्णकी ४ फुट ५ इंच ऊंची खड्गासन प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। प्रत्येक प्रतिमाके दोनों ओर स्तम्भ हैं। इस प्रकार कुल ४ स्तम्भ हैं। स्तम्भोंपर ऊपर पद्मासन प्रतिमा, मध्यमें जंजीर और अधोभागमें खड्गासन प्रतिमाओंका अंकन है। प्रतिमाओंके सिरके ऊपर छत्र, छत्रके दोनों पार्यो में तूर्य वाद्य । छत्रके ऊपर एक हाथमें चमर तथा दूसरे हाथमें फल लिये हुए देवी तथा उसके ऊपर कीचक है। बायीं ओर आलेमें एक भक्त हाथ जोड़े बैठा है।
बायीं ओरकी दीवारमें पैनल बने हुए हैं। बायीं ओरसे-१० इंच ऊंची तीन खड्गासन मूर्तियां, आगे २ फुट ऊंची एक पद्मासन, उसके दोनों ओर खड्गासन मूर्तियां, इनसे आगे पुनः इसी प्रकार मध्यमें पद्मासन और दोनों ओर खड्गान मूर्तियां, पुनः १० इंच ऊंची तीन खड्गासन मूर्तियां । मध्यवर्ती दो मूर्तियोंके परिकरमें पुष्पमाला लिये हुए देव दिखाई पड़ते हैं।
___ इसी प्रकार दायीं ओरकी दीवारमें भी पैनल बने हुए हैं। बायीं ओरसे दायीं ओर कोमध्यमें पद्मासन मूर्ति, उसके दोनों पावोंमें खड्गासन मूर्तियां। मध्यमें मूर्तिके ऊपर छत्र, तूर्यवादक देव तथा ऊपर पुष्पनाल पकड़े हुए देवी। आगे इसी प्रकारका पैनल है। इससे आगेके पैनलमें सिंहपर द्विभुजी देवी ललितासनमें आसीन है। देवीका दायां हाथ जंघापर रखा है तथा बायें हाथमें गदा है।
बाहरी कक्षमें बायीं ओरकी दीवारमें साढ़े छह फीट अवगाहनावाली खड्गासन मूर्ति है। एक द्विभुजी गजारुढ़ा पद्मावती देवी भी है। उसके शीर्ष भागपर पाश्वनाथ विराजमान हैं । दायीं ओरकी दोवारमें भी इसी प्रकार पैनल हैं । अन्तर इतना है कि देवी सिंहारूढ़ा है।
इस गुफासे आगे बढ़नेपर एक दूसरी गुफा मिलती है। इसे भी पलस्तर करके कमरेका