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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित हुई थी। इसके प्रतिष्ठाकारक जीवराज पापड़ीवाल थे। इसके निकट धातुको एक चौबीसी है। * दायीं ओर पद्मप्रभ भगवान्की २ फुट ७ इंच उन्नत श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। लेख न होनेसे प्रतिष्ठाकाल ज्ञात नहीं हो सका। सामने कृष्ण पाषाणकी साढ़े छह इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है जो सम्भवतः नेमिनाथ भगवान्की है। इसके अतिरिक्त धातुका एक चैत्य, पाश्वनाथ और सिद्ध भगवान्की प्रतिमाएं हैं। सीढ़ीके पास एक वेदीमें मूलनायक पार्श्वनाथ की १ फुट २ इंच ऊंची नो-फणावलीयुक्त श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिष्ठाकाल संवत् १५४८ है। बायीं ओर १ फुट ८ इंच ऊंची पद्मप्रभ भगवान्की श्वेत वर्णवाली पद्मासन प्रतिमा है । लेख नहीं है। इसके बगल में १ फुट ऊंची पद्मप्रभ भगवान्की एक और प्रतिमा है। दायीं ओर श्वेत पाषाणकी १ फुट ७ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। किन्तु इसके पादपीठपर लेख और लांछन नहीं हैं। इसके पार्श्वमें आदिनाथ भगवानकी १० इंच अवगाहनावाली श्वेत वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। आगेकी पंक्तिमें १ फुट ८ इंच ऊंचे शिलाफलकमें कायोत्सर्गासनमें मुनि-प्रतिमा उत्कीणं है। इसके दायें हाथमें पीछी है और बायें हाथमें कमण्डलु है। इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा संवत् १४६५ में हुई थी। विश्वास किया जाता है कि यह प्रतिमा महामहिमान्वित धरसेनाचार्यकी है। दायीं ओर चलनेपर नेमिनाथ आदिको ५ तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं जिनमें २ खड्गासन और ३ पद्मासन हैं । इनसे आगे १ फुट ४ इंच ऊंची श्वेतवर्णकी पद्मासन मुद्रामें आदिनाथ भगवानकी मूर्ति है । तथा इससे आगे एक शिलाफलकमें दो स्तम्भोंके मध्य श्वेतवर्णकी एक खड्गासन प्रतिमा है। इसके ऊपर चिह्न और लेख नहीं हैं। ऊपरकी मंजिलमें एक वेदीमें ४८ धातु प्रतिमाएं विराजमान हैं। जिनमें चौबीसी, चैत्य, पंचबालयति, पंचमेरु आदि हैं । वेदीके ऊपर २ पाषाण प्रतिमाएं भी विराजमान हैं । वेदीके पीछे परिक्रमाकी दीवारमें १ फूट ११ इंच उत्तुंग श्यामवर्ण खड़गासन प्रतिमा है। इसके ऊपर कोई लेख और लांछन नहीं है । चरणोंके दोनों ओर गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षीका अंकन है । अतः यह प्रतिमा नेमिनाथ भगवान्की होनी चाहिए। भूकम्पके समय यह प्रतिमा दीवार-ताकमें-से गिर पड़ी थी, किन्तु प्रतिमाको कोई हानि नहीं पहुंची। २. नेमिनाथ मन्दिर–वेदीपर मध्यमें एक गन्धकुटीमें चारों दिशाओंमें पार्श्वनाथकी १ फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमाएं हैं, जो संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित हुई थीं। इनमें पूर्वको ओर संवत् १८६२ में प्रतिष्ठित और २ फुट ३ इंच ऊँची नेमिनाथकी कृष्णवर्णकी पद्मासन प्रतिमा है । वेदोकी कटनियोंपर चारों ओर धातु और पाषाणकी प्रतिमाएं रखी हैं। एक आलेमें धातुकी १० देवी मूर्तियाँ विराजमान हैं। ३ आदिनाथ मन्दिर-भोयरे में एक वेदीपर २ फुट ८ इंच उन्नत श्यामवर्ण आदिनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। पादपीठपर कोई लेख अंकित नहीं है किन्तु वृषभ लांछन है। बायीं ओर पद्मप्रभ भगवान्की २ फुट ४ इंच ऊँची श्याम वर्ण प्रतिमा है तथा दायीं ओर २ फुट ४ इंच ऊंची सुपार्श्वनाथकी प्रतिमा है । लेख नहीं है। इनके अतिरिक्त धातुको चौबीसी और पाश्वनाथकी ३ प्रतिमाएं और हैं। ऊपरके खण्डमें तीन कटनीवाली वेदीमें मूलनायक चन्द्रप्रभ भगवान्की १ फुट ६ इंच ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। लेख नहीं है । इसके अतिरिक्त वेदीके ऊपर संवत् १५४८ को
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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