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गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ
१९३ वादिचन्द्रके पट्टपर महीचन्द्र भट्टारक बने। इन्होंने संस्कृतमें पंचमेरु पूजा बनायी। महीचन्द्र के शिष्य मेरुचन्द्रने षोडशकारण पूजा. नन्दीश्वर पूजा-विधान बनाया।
___मेरुचन्द्रके पट्टपर जिनचन्द्र भट्टारक बने। जिनचन्द्रके बाद विद्यानन्दी पट्टाधीश हुए। इनके बाद देवेन्द्रकीर्ति हुए। इन्होंने पादरा तथा आमोदमें मन्दिर बनवाये । देवेन्द्रकीतिके पट्टपर विद्याभूषण भट्टारक हुए। इन्होंने महुआ, सूरत, अंकलेश्वर, सजोद और सोजित्रामें मन्दिर बनवाये । इनके बाद धर्मचन्द्र, चन्द्रकीर्ति, गुणचन्द्र और सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक हुए ।
भट्रारक गणचन्द्र के साथ एक ऐसी घटना घटित हई जिससे उनके मन्त्रबलका पता चलता है। संवत् १९१९ में बम्बई निवासी सेठ सौभाग्यचन्द्र मेघराजजी भट्टारक गुणचन्द्रको लेकर सपरिवार पालीताणा गये। वहां भट्टारकजीने कोई विधान किया। जलयात्राके समय जब उनकी पालकी बाजारमें पहुँची तभी पालकी में मन्त्रप्रेषित नीबू और उड़द आदि आकर गिरे। पालकी स्तम्भित होने लगी। भट्टारकजीने तत्काल नीबू, उड़द आदि मन्त्र पढ़कर सभी दिशाओंमें फेंके । फलतः पालकी पूर्ववत् चलने लगी। ___इस प्रकार सूरतमें बलात्कारगणके भट्टारकोंने धर्म-प्रभावनाके अनेक कार्य किये। इन भट्टारकोंकी समाधियाँ सूरतके निकट कतारगाँवमें विद्यानन्दि क्षेत्रमें बनी हुई हैं। यहां भट्टारक विद्यानन्दिके चरण-चिह्न बने हुए हैं। विद्यानन्दि बड़े प्रभावशाली और चमत्कारी व्यक्ति थे। इस स्थानपर प्रथम समाधि इन्हींकी बनायी गयी थी। इसलिए इस स्थानका नाम ही विद्यानन्दि क्षेत्र हो गया।
सूरतके मन्दिरोंमें विराजमान मूर्तियोंके लेखोंसे ज्ञात होता है कि उपर्युक्त भट्टारकोंमें-से अधोलिखित भट्टारकोंने यहाँ मूर्ति-प्रतिष्ठा करायी। विभिन्न मूर्तियोंपर इन भट्टारकोंके नाम अंकित हैं
__ विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, वादिचन्द्र, महीचन्द्र ।
सूरतमें काष्ठासंघके भट्टारकोंका भी पीठ रहा है। गोपीपुराके दिगम्बर जैन मन्दिर और नवापुराके मेवाड़ जातिके मन्दिरमें काष्ठासंघी भट्टारकोंका प्रभाव रहा है। इन मन्दिरोंमें जो मूर्तियां हैं, उनके मूर्तिलेखोंके अध्ययनसे ज्ञात होता है कि वे काष्ठासंघो भट्टारकों द्वारा प्रतिष्ठित की गयी थी, किन्तु या तो वे अन्य किसी मन्दिर से लायी गयी हैं अथवा अन्य स्थानपर प्रतिष्ठित कराकर यहाँ लायी गयी हैं, ऐसा लगता है।
___ यहाँके मूर्तिलेखोंसे काष्ठासंघके निम्नलिखित भट्टारकोंके सम्बन्धमें जानकारी मिलती है
विशालकीर्ति, विश्वसेन, विद्याभूषण, श्रीभूषण, चन्द्रकीति, राजकीर्ति, लक्ष्मीसेन, देवेन्द्रभूषण, सुरेन्द्रकीर्ति ।
दर्शनसारके अनुसार काष्ठासंघको स्थापना कुमारसेनने नन्दीतट ग्राम ( वर्तमान नादेड़) में की थी। अतः गच्छका नाम स्थानके नामपर नन्दीतटगच्छ रखा गया। मूर्तिलेखोंमें विद्यागण भी आता है, जो सरस्वतीगच्छका केवल अनुकरण मात्र है। इन लेखोंमें रामसेनान्वय भी मिलता है। इन्हीं रामसेनने नरसिंहपुरा' जातिको स्थापना की थी और जिस नरसिंहपुराने
१. रामसेनोति विदितः प्रतिबोधनपण्डितः ।
स्थापिता येन सज्जातिर्नरसिंहाभिधा भुवि ॥ दानवीर माणिकचन्द्र., पृ. ४७ ।
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