________________
१९२
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ भट्टारक पीठ
सूरतमें मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणके भट्टारकोंका पीठ भट्टारक पद्मनन्दीके शिष्य भटारक देवेन्द्रकीतिने स्थापित किया था। चन्दाबाडीके पासवाले बडे मन्दिरमें मलनायक आदिनाथके पादपीठपर जो मूर्तिलेख अंकित है, उससे ज्ञात होता है कि इस परम्परामें निम्नलिखित भट्टारक हुए
देवेन्द्रकीति, विद्यानन्दी, मल्लीभूषण, लक्ष्मीचन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, वादीचन्द्र, महीचन्द्र, मेरुचन्द्र, जिनचन्द्र, विद्यानन्दी।
इनके पश्चात् निम्नलिखित भट्टारक हुएदेवेन्द्रकीर्ति, विद्याभूषण, धर्मचन्द्र, चन्द्रकीर्ति, गुणचन्द्र, सुरेन्द्रकीति ।
इन भट्टारकोंने धर्म-रक्षाके अनेक कार्य किये, अनेक स्थानोंपर मन्दिर निर्माण कराये, मूर्ति-प्रतिष्ठाएं करायीं। इन्होंने अनेक लोगोंको जैनधर्ममें दीक्षित किया। जिन नवदीक्षित लोगोंको रोटी-बेटी व्यवहारमें असुविधा अनुभव.हुई, उनकी एक पृथक् जातिका निर्माण कर दिया। इससे उन लोगोंकी समस्याका समाधान हो गया। इन्होंने अनेक ग्रन्थोंका निर्माण किया और ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियाँ करायीं।
देवेन्द्रकीर्तिजीने अवन्तिदेशमें अनेक प्रतिष्ठाएं करायीं । तथा सात सौ कुटुम्बोंको जैनधर्ममें दीक्षित करके 'रत्नाकरजाति' नामसे उनकी एक पथक जाति स्थापित कर दी। आपके एक शिष्य त्रिभुवनकीर्तिने बलात्कारगणकी जेरहट शाखाकी स्थापना की।
देवेन्द्रकीतिके पट्टशिष्य विद्यानन्दी हुए। आपने सुदर्शनचरित नामक संस्कृत काव्यकी रचना की। कर्नाटकके अनेक राजाओंने आपका सम्मान किया था। आपके शिष्य श्रुतसागर सूरिने ज्येष्ठ जिनवरकथा, षोडश कारण कथा, मुक्तावली कथा, मेरुपंक्ति कथा, लक्षणपंक्ति कथा, मेघमाला सप्त परमस्थान-रविवार, चन्दनषष्ठी, आकाश पंचमी, पुष्पांजलि, निर्दुःख सप्तमी, श्रवण द्वादशी, रत्नत्रय आदि व्रतोंकी कथाएं लिखीं। आपकी अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं-औदार्य चिन्तामणि नामक प्राकृत व्याकरण, ज्ञानावर्णके गद्यभागकी टीका. तत्त्वत्रय प्रकाशिका, महाभिषेक टीका तथा श्रुतस्कन्ध पूजा, पल्यविधान कथा, अक्षयनिधान कथा, यशस्तिलक चन्द्रिका, सहस्रनाम टीका, तत्त्वार्थवृत्ति, षट्प्राभृत टीका।
विद्यानन्दीके पट्टशिष्य मल्लिभूषण हुए। उन्होंने स्तम्भ तीर्थपर एक निषधिका बनवायी। मालवाके सुलतान ग्यासदीन अथवा गयासुद्दीनने आपका सम्मान किया था।
मल्लिभूषणके शिष्य लक्ष्मीचन्दका सम्मान कर्नाटकके १८ राजाओंने किया था। कारंजाके भट्रारक वीरसेन और भ. विशालकीर्तिने भी आपका सम्मान किया था।
लक्ष्मीचन्दके शिष्य वीरचन्दने बोधसताणू और चित्तनिरोध कथा लिखी। आपने नवसारोके शासक अर्जुनजीयराजसे सम्मान पाया।
वीरचन्दके पट्टशिष्य ज्ञानभूषण हए। आपने सिद्धान्तसार भाष्यकी रचना की तथा कर्मकाण्डपर टीका लिखी। आपके एक शिष्य सुमतिकीर्तिने चौरासी लक्ष योनि विनती, धर्मपरोक्षारास और त्रैलोक्यसार रासकी रचनाएं की। आपने शत्रुजयमें शान्तिनाथ मन्दिरका निर्माण कराया। आपने श्वेताम्बरोंके साथ शास्त्रार्थ भी किया था। ज्ञानभूषणके पट्टशिष्य प्रभाचन्द्र हुए। उन्होंने त्रेपन-क्रिया विनती लिखी।
प्रभाचन्द्रके पट्टपर वादिचन्द्र भट्टारक हुए। आपने पावपुराण, ज्ञानसूर्योदयनाटक, श्रीपालचरित, यशोधरचरित नामक ग्रन्थोंकी रचना की।