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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १८९ व्यवस्था ____ मन्दिरकी व्यवस्थाके लिए 'श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महुआ प्रबन्धक समिति' है। पता मन्त्री, श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पो. महुआ ( जिला सूरत ), गुजरात । सरत मार्ग और अवस्थिति __ सूरत पश्चिमी रेलवेका प्रख्यात स्टेशन है। बम्बई नगरसे यह २६३ कि. मी. है। यह ताप्ती नदीके तटपर बसा हुआ है जबकि दूसरे तटपर रांदेर है। इसका अपरनाम सूर्यपुर भी मूर्तिलेखों और प्रशस्तियोंमें उपलब्ध होता है। प्राचीन काल में यह एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था और जलमार्ग द्वारा बड़े पैमानेपर व्यापार होता था। तबसे इस नगरकी समृद्धि निरन्तर बढ़ती गयी और अब यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र बन गया है। स्थापनाका इतिहास इसकी स्थापनाके सम्बन्धमें बताया जाता है कि पहले सूर्यपुर नामका एक छोटा-सा गाँव था। किन्तु बादमें एक हिन्दू गृहस्थ गोपीके प्रयत्नोंसे इस गांवकी काया पलट हो गयो। ब्राह्मणपुत्र गोपीने 'सूरज' की स्मृतिमें, जो एक प्रसिद्ध नतंकी थी, सन् १५२१ में तत्कालीन बादशाह मुजफ्फरशाहके द्वारा इस गाँवका नाम 'सूरत' रखाया और उसका विकास कराया। धीरे-धीरे गाँव लुप्त हो गया और उसका स्थान एक विकसित और वैभवशाली शहरने ले लिया। सन् १५२६ में गोपीने यहाँ एक तालाब बनवाया जो खेतरबाड़ीके पास गोपी तालाबके नामसे अब भी मौजूद है। सूरतपर तुगलकवंशने शासन किया। फिर गुजरातके बादशाह यहाँके शासक बने । गुजरातके तीसरे मुजफ्फरशाहने बादशाह अकबरके विरुद्ध बगावत कर दी। तव अकबर फौज लेकर स्वयं आया और सूरतपर अधिकार किया। मुगलोंके बाद यह अंगरेजोंके अधिकारमें चला गया। इसके व्यापारिक महत्त्वको देखते हुए अंगरेजोंने सन् १६१४ में मुगल बादशाह जहांगीरसे आज्ञा लेकर एक कोठी कायम की। उस समय मुगल दरबारमें सर टामस रो अंगरेज राजदूत था । औरंगजेब बादशाहके समय तारीख ५ जनवरी १६६४ को हिन्दू-कुल-गौरव छत्रपति शिवाजीने इस शहरको बुरी तरह लूटा। कहते हैं, इस लूटमें उन्हें तीस करोड़ रुपयेकी आय हुई। जैन मन्दिर - सूरतमें सात दिगम्बर जैन मन्दिर और ६ चैत्यालय हैं। नवापुरामें चार मन्दिर हैंमेवाड़ाका, गुजरातियोंका, चौपड़ाका और दांडियाका। एक दिगम्बर जैन मन्दिर गोपीपुरामें है, जिसमें भट्टारकोंकी गद्दी है । चन्दावाड़ीके पास दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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