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________________ १८८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सीढ़ियां उतरकर भयरेमें एक वेदीपर श्यामवर्णकी चार फुट ऊंची एवं सप्त फणवाली श्री विघ्नहर पार्श्वनाथकी भव्य प्रतिमा विराजमान है । प्रतिमाको नाक और हाथ कुछ खण्डित हैं । बायीं ओर भगवान् चन्द्रप्रभको २ फुट २ इंच अवगाहनावाली श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है जो संवत् १६४८ को प्रतिष्ठित है तथा दायों ओर श्वेतवर्ण शान्तिनाथ विराजमान हैं। अवगाहना आदि पूर्व प्रतिमाके समान है। आगेकी पंक्तिमें भगवान् महावीरकी साढ़े सात इंचकी तथा उसके इधर-उधर साढ़े पांच इंच ऊँची पार्श्वनाथको धातु प्रतिमाएं हैं। गर्भगृहको छड़दार किवाड़ोंका अवरोध देकर सुरक्षित कर दिया गया है। एक अन्य कमरेमें २३ पाषाण प्रतिमाएं तथा २९ धातु प्रतिमाएं विराजमान हैं। मूर्तिलेखोंके अनुसार इनमें संवत् १३९०, १५२२, १५३५, १५४८, १६१४, १६६१, १६६५, १८२७ और १९११ को प्रतिमाएँ हैं। कुछ प्रतिमाओंके पीठासनपर लेख नहीं हैं। इनमें दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं-पहली है आदिनाथ भगवान्की और दूसरी है पद्मावतीको । साढ़े चार फुट ऊंचे एक शिलाफलकमें भगवान् आदिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। छत्रवाला भाग खण्डित है। सिरके दोनों ओर गन्धर्वयुगल माला लिये हुए हैं। मुख्य मूर्तिके दोनों पार्यो में ११-११ पद्मासन मूर्तियाँ तथा चरणोंसे अधोभागमें खड़गासन मतियां हैं। चरणोंके दोनों ओर भक्त हाथ जोडे हए बैठे हैं। इससे अधोभागमें बायीं ओर यक्ष तथा दायीं ओर यक्षी है। सिंहासनके सिंहों और गजोंके मध्यमें ललितासनमें एक देवी बैठी है। ___इस मूर्तिके पादपीठपर कोई लेख अंकित नहीं है। किन्तु शैलीके आधारपर यह ११-१२वीं शताब्दीको अनुमानित की गयी है। एक अन्य मूर्ति पद्मावती देवीकी है जो संवत् १८२७ की है। इसकी अवगाहना २ फुट १ इंच है। देवीके शीर्षपर तीन फणोंका मण्डप है। उसके ऊपर भगवान् पार्श्वनाथ विराजमान हैं। इस कमरेके निकट ही एक अन्य भोयरेमें भी कुछ मूर्तियाँ विराजमान हैं। धर्मशाला मन्दिरके निकट धर्मशाला है। इसके अधिकांश भागमें मन्दिरोंका सामान रखा हुआ है, जिसमें लकड़ीके कुछ ऐसे खण्ड भी हैं, जिनके ऊपर लेख अंकित हैं। ये खण्ड इन लेखोंके कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और बहुमूल्य कहे जा सकते हैं। इन्हें व्यवस्थित करके काँचके फ्रेममें रख देना चाहिए, जिससे कीड़ों आदिसे इनकी रक्षा हो सके। शिलाओं, भित्तियों आदिपर उत्कीर्ण लेखोंके समान ही इन दारु-लेखोंका भी अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। _____धर्मशालामें बिजलीकी व्यवस्था है। मन्दिरमें कुआं है, मन्दिरके निकट पूर्णा नदी है। आशा है, मन्दिरका निर्माण होनेपर धर्मशालामें यात्रियोंको सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। मेला यहाँ दिनांक ८ मई सन् १९७४ को निर्माणाधीन मन्दिरके शिलान्यास मुहूर्तके अवसरपर एक विशाल समारोह हुआ था । वार्षिक मेला यहां नहीं होता।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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