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भारतके विगम्बर जैन तीर्थं
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अतिशय क्षेत्र
यहाँ भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमाके चमत्कारोंके सम्बन्धमें बड़ी ख्याति है । कहते हैं, इस प्रतिमा के भावसहित दर्शन करनेसे आये हुए समस्त विघ्न दूर हो जाते हैं । इसीलिए इसके दर्शन करने के लिए एवं मनौती मनानेके लिए यहाँ जैनोंके अतिरिक्त जैनेतर भी बड़ी संख्यामें आते हैं ।
इस मूर्ति के बारे में ऐसा कहा जाता है- एक बार महुआके सेठ डायभाई ओर कायभाई दोनों भाइयोंको स्वप्न आया । स्वप्नमें उन्होंने पार्श्वनाथकी इस मूर्तिको देखा । कोई दिव्य पुरुष उन्हें प्रेरणा कर रहा था कि भगवान् पार्श्वनाथको उक्त मूर्ति सुलतानाबाद ( पश्चिम खानदेश ) के तुलाania भूमिके अन्दर अमुक स्थानपर है । उस स्थानको खुदवानेका प्रबन्ध करें। प्रातः काल उठने पर दोनों भाई आवश्यक कृत्योंसे निवृत्त होकर देवदर्शन और पूजनको गये, वहाँसे लौटकर
स्वप्न में देखे हुए तुलावगाँव में पहुँचे और स्वप्न में यथानिर्दिष्ट स्थानकी खुदाई करायी । खुदाई करानेपर भगवान् पार्श्वनाथकी भव्य प्रतिमा निकली। उसे रथमें विराजमान करके महुआ लाये और वहाँके चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिरमें भट्टारक श्री विद्यानन्दजी द्वारा इसकी प्रतिष्ठा करायी गयी ।
मूर्ति प्रकट होनेके सम्बन्ध में एक अन्य किंवदन्ती भी प्रचलित है । कहते हैं, सुलतानाबाद गांवका एक किसान खेत जोत रहा था । अकस्मात् उसका हल किसी ठोस वस्तुसे रुक गया । तब उसने वहां खुदाई की तो यह मूर्ति प्रकट हुई। कुछ दिनों तक तो किसानने प्रतिमाको एक झोंपड़ी में रखा। जब जैनोंको ज्ञात हुआ तो वे उसे रथमें विराजमान करके ले चले। वह रथ यहाँ आकर ठहर गया । फलतः इस मन्दिर के भूगर्भगृहमें उस मूर्तिको विराजमान कर दिया गया।
विराजमान होते ही इस मूर्तिके चमत्कारों की ख्याति जनता में फैलने लगी । जनताके हर सम्प्रदाय और जाति के लोग उस ख्यातिसे आकर्षित होकर पार्श्व प्रभुके चरणों में पहुँचने लगे । कहते हैं, जो व्यक्ति मनमें कोई कामना लेकर भक्तिभाव के साथ पार्श्वनाथके दरबार में जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है ।
जिस प्रकार ३०-४० वर्षं पूर्वं श्री महावीरजी क्षेत्रपर भक्त मैना और गूजर भक्तिके अतिरेक में महावीर बाबाके लिए कढ़ी-चावल तक चढ़ाते थे, कुछ वैसा ही दृश्य यहाँ भी देखनेको मिलता है । अनेक भक्तजन तो यहां बैंगन-जैसे फल और सब्जी तक चढ़ाते हैं । कुछ भक्त जन मनौती मनाते हैं तो भगवान् के लिए मंगल कलश और गाजे-बाजे के साथ चढ़ावा चढ़ाने आते हैं । उनकी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । इसीलिए पार्श्वनाथको ये निष्कपट अवोध भक्तजन संकल्पसिद्धि के देवता कहते हैं । जिन लोगोंको पुत्र प्राप्तिकी कामना होती है, वे चांदीका पालना चढ़ाते हैं, नेत्र रोगी चाँदीके नेत्र, पंगु चाँदीकी वैशाखी, इसी प्रकार अन्य रोगी चाँदीकी कोई वस्तु स्वेच्छासे बनवाकर यहाँ चढ़ाते हैं । अनेक भक्तजन अपने आराध्य के लिए रुपये-पैसे भी चढ़ाते हैं । यहाँ सप्ताह में शनिवार और रविवारको विशेष भीड़ रहती है ।
क्षेत्रका माहात्म्य
इस क्षेत्रकी महिमाका वर्णन करते हुए ब्रह्म ज्ञानसागरजीने 'सर्वतीर्थं वन्दना' नामक अपनी रचनायें बताया है कि इस क्षेत्रपर मुनि-जनोंका विहार होता था और मुनिजन यहाँ ठहरकर ग्रन्थों का अभ्यास करते थे । उल्लेख इस प्रकार है
" मधुकर नयर पवित्र यत्र श्रावक घन वासह | मुनिवर करत बिहार बहुविध ग्रन्थ अभ्यासह |