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________________ १८२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसमें महावीर स्वामीकी श्वेत पाषाणको १ फुट ६ इंच ऊंची और वीर नि. संवत् २४७७ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । पीठासनके सामने दो चरणचिह्न बने हुए हैं। ३. शान्तिनाथ मन्दिर-मन्दरियाके सामने एक ऊँचे चबूतरेपर यह मन्दिर बना हुआ है। इसमें केवल गर्भगृह है । एक ऊंचे चबूतरेपर १ फुट ७ इंच ऊंची वी. नि. संवत् २४७७ में प्रतिष्ठित भगवान् शान्तिनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर १ फुट ४ इंचकी सलेटी वर्णकी खड़गासन प्रतिमा है। उसके बगलमें १ फट ३ इंच अवगाहनावाली २१ खड्गासन प्रतिमाएं हैं। दायीं ओर सलेटी वर्णकी १ फूट ९ इंच ऊँची खड़गासन प्रतिमा है। बगलमें १ फुट २ इंचको खड्गासन प्रतिमा है। इनके अतिरिक्त १० प्रतिमाएँ और हैं। यहाँसे कालीदेवीके मन्दिरके लिए मार्ग जाता है। यह एक ऊँची टेकरीके ऊपर है। इन जिनालयोंके दर्शन करके लौटना चाहिए। लौटते हुए लगभग दो फलांग चलनेपर दायीं ओर चन्द्रप्रभ मन्दिर मिलता है। ४. चन्द्रप्रभ मन्दिर -- इस मन्दिरमें गर्भगृह और सभामण्डप बने हुए हैं। वेदीपर मूलनायक भगवान् चन्द्रप्रभकी संवत् १९६७ में प्रतिष्ठित २ फुट ३ इंच उत्तुंग श्वेत वणं पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर १ फूट ९ इंच ऊँची कृष्णवर्ण नेमिनाथकी और दायीं ओर १ फुट १० इंच ऊँची कृष्णवणं मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा है। ये दोनों ही प्रतिमाएं संवत् १९६७ में प्रतिष्ठित हुई थीं। इस मन्दिरके सामने तेलिया तालाब है। इसके किनारेपर एक ऊंची चौकीपर प्राचीन मन्दिर भग्नावस्थामें खड़ा है। मन्दिरमें कोई मूर्ति नहीं है। मन्दिरकी बाह्य भित्तियोंपर तीर्थंकरों और शासन-देवताओंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मन्दिरके शिल्पको देखनेसे यह मन्दिर ११-१२वों शताब्दीका प्रतीत होता है । इसके निकट कई जिनालयोंके भग्नावशेष पड़े हुए हैं। इन अवशेषोंमें अलंकृत स्तम्भ, तोरण आदि बहुमूल्य पुरातन सामग्री बिखरी हुई है। यह सामग्री पुरातत्त्व विभागके संरक्षणमें है। ५. भग्न मन्दिरके निकटसे एक कच्चा मार्ग अन्य प्राचीन मन्दिरोंको जाता है। सर्वप्रथम मल्लिनाथ मन्दिर मिलता है। इस मन्दिरमें गर्भगृह, सभामण्डप और अधमण्डप बने हुए हैं। गर्भगृहमें वेदोपर मूलनायक मल्लिनाथको २ फुट १० इंच ऊंची श्वेतवर्णको पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। चरण-चौकीपर कोई लेख नहीं है। बायीं ओर पद्मप्रभ भगवान्की श्वेतवर्णकी और दायीं ओर ऋषभदेवकी कृष्णवर्णकी पद्मासन प्रतिमाएं हैं। दोनोंकी अवगाहना १ फुट १० इंच है तथा ये संवत् १९१८ में प्रतिष्ठित इस मन्दिरके निकट दो मन्दिर और हैं। यहां चारों ओर प्राचीन मन्दिरोंके भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। सम्भवतः प्राचीन कालमें एक कम्पाउण्डके अन्दर ये मन्दिर बने हुए थे। मन्दिरोंकी आधार चौकियोंको देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि पहले यहाँ मध्यमें कोई विशाल मन्दिर होगा और उसके चारों ओर अन्य मन्दिरोंका गुच्छक होगा। ६. पाश्वनाथ मन्दिर-पार्श्वनाथको यह प्रतिमा चिन्तामणि पार्श्वनाथ कहलाती है। यह प्रतिमा सप्तफणावलिसे मण्डित है। यह कृष्ण पाषाणकी ३ फुट ४ इंच ऊंची है और पद्मासन मुद्रामें है। इसकी प्रतिष्ठा वैशाख सुदी ३, रविवार संवत् १६६० को बलात्कारगणके भट्टारक वादिभूषणके द्वारा हुई थी।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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