SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १८१ दिये गये और मन्दिरोंके स्थानपर बड़ी-बड़ी मसजिदें खड़ी की गयीं। पश्चिमकी ओर अब भी उस कालकी एक विशाल मसजिद खड़ी हुई है। उसके निकट निर्मल जलसे परिपूर्ण बावड़ी है। लगभग ११ मसजिदोंके अवशेष अब भी बिखरे पड़े हैं। क्षेत्र-दर्शन ___ धर्मशालासे निकलते ही सम्मुख पर्वतराजके दर्शन होते हैं। पर्वतपर चढ़नेके लिए सड़क बनी हुई है जो लगभग ढाई मील है । पर्वतकी चढ़ाई लगभग साढ़े तीन मील है। अतः एक मील कच्चा मार्ग है । इस पर्वतपर प्राचीन कालमें सत्रह गढ़ थे जिनके सात दरवाजे भग्नावस्थामें आज भी विद्यमान हैं। अन्तिम दरवाजा नगाड़खानेका दरवाजा कहलाता है। यहाँके पुरातन दिगम्बर जैन मन्दिर मुहम्मद वेगड़ा नामक नवाबने वि. सं. १५४० में प्रायः विनष्ट कर दिये थे। __ जहां तक पक्की सड़क बनी हुई है, वहां तक बसें, टैक्सी और कारें जाती हैं। वहांपर रैस्टोरैन्ट, लाज, खाने-पीनेके सामानकी दुकानें और सरकारी रैस्ट हाउस बने हए हैं। वहाँ जैनोंके समान हिन्दू भी विशाल संख्यामें आते हैं। पर्वतके ऊपरी शिखरपर कालीदेवीके मन्दिरको मान्यता हिन्दू समाजमें दूरके प्रान्तोंमें भी है। कहते हैं, इस मन्दिरका निर्माण ग्वालियर नरेशने कराया था तथा इसमें जेन मन्दिरोंकी सामग्री प्रयुक्त हुई थी। नगाड़खानेका दरवाजा पार करनेके बाद लगभग एक कि. मी. सीधा जानेपर पहाड़के शिखरपर बाजार बसा हआ है। वहाँपर निर्मल जलसे परिपूर्ण साँसिया नामक एक तालाब है। तालाबसे दायीं ओर कुछ आगे बढ़नेपर सर्वप्रथम तीन जैन मन्दिर और एक मन्दिरिया मिलते हैं। सभी मन्दिरोंका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है १. प्रथम मन्दिर सुपार्श्वनाथका है। इसमें मूलनायक भगवान् सुपाश्वनाथकी १३ फणावलियुक्त ३ फुट १० इंच ऊंची श्वेतवर्णकी एक पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। चरण-चौकीपर स्वस्तिक लांछन है । इसकी प्रतिष्ठा भट्टारक कनककोतिने माघ शुक्ला १३, संवत् १९३७ में करायी थी। बायीं ओर भगवान् ऋषभदेवकी २ फुट ऊंची संवत् १६४३ में प्रतिष्ठित श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है तथा दायीं ओर संवत् १६७८ में प्रतिष्ठित अजितनाथको २ फुट १ इंच ऊंची श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है । बगलमें १ फुट २ इंच ऊंची खड्गासन प्रतिमा है। मूलनायकके आगे २ फुट १ इंच ऊँची और संवत् १९३७ में प्रतिष्ठित पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर गुलाबी वर्णकी १ फुट ९ इंच अवगाहनावाली और संवत् १६६९ में प्रतिष्ठित सम्भवनाथ भगवानको पाषाण-मति है। इनके अतिरिक्त ३ पाषाण-मतियाँ संवत् १९३७ और १ पाषाण-मूर्ति संवत् १६६५ की भी है। गर्भगृहके दायीं ओर एक पाषाणमें दो चरण-चिह्न बने हुए हैं। मन्दिरके प्रवेशद्वारमें घुसते ही बायीं ओर एक वेदीमें २ फुट १० इंच उत्तुंग एक खड्गासन मूर्ति है। चरणोंके दोनों ओर दो खड्गासन मूर्तियां बनी हुई हैं। दोनों सिरोंपर इन्द्र खड़े हुए हैं। सिरके दोनों ओर पुष्पमालधारी गन्धर्व हैं। बायीं ओर १ फुट ३ इंचकी तथा दायीं ओर १ फुटकी खड्गासन मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां एक छोटे कमरे में चबूतरानुमा वेदीपर हैं। २. महावीर मन्दिर-सुपार्श्वनाथ मन्दिरके द्वारके सामने एक मन्दिरिया बनी हुई है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy