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________________ १८० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पर्वतके ऊपर गढ़ बनाया गया। इस गढ़के कारण ही चांपानेर शताब्दियों तक सुरक्षित रहा और यह धन-धान्यसे सम्पन्न रहा। इस नगरके चारों ओर भी कोट बना हुआ था। अब भी इस नगरका कुछ भाग कोटसे घिरा हुआ है। इस कोटमें पूर्व और पश्चिमको ओर दो बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें पार करके नगरका बाजार मिलता है । फाटकोंपर पुरातत्त्व विभागको ओरसे सूचना-पट लगे हुए हैं। उनके अनुसार प्राचीन कालमें इस नगरको लम्बाई १२ कोसको बतायी जाती है। यह भी कहा जाता है कि यहाँपर ८४ चोउटा थे और यहाँ ५२ बाजार थे। यहाँ नगरमें और बाहर प्राचीन भवनोंके खण्डहर पड़े हए हैं। इनमें नौलक्खी कोठार, मकई कोठार और फतई रावलके महलोंके अवशेष भी पाये जाते हैं। यहां बहुत काल तक जैनोंका राज्य रहा था। इस कालमें किसी जैन राजाने ५२ जिनालय बनवाये थे। पर्वतके ऊपर भी जैन मन्दिर और भवन बनाये गये थे। चिमणा पण्डितने भी पावागढ़के ऊपर जैन मन्दिर निर्माण करानेकी सूचना 'तीर्थ वंदना' नामक अपनी रचनामें इस प्रकार दी है रामनंदन लहु अंकुस जाना । पावागिरि उभय गेले निर्वाना। पांच कोडि मुनि मुगति निवासी । गंगादासे चैत्यालि केली पुण्यासि ॥१५॥ इसमें बतलाया है कि गंगादासने पावागिरिके ऊपर चैत्यालयका निर्माण कराया था। पर्वतके मध्यमें खापरा नेवरीका सात खण्डका भवन अब तक खड़ा हआ है। इस भवनके चार खण्ड पृथ्वीके भीतर हैं तथा शेष तीन खण्ड पृथ्वीके ऊपर हैं। इसे लोग देखने जाते हैं। जैन राजाओंके पश्चात् यहाँपर तोमर वंशका शासन हो गया। संवत् १४८४ में अहमदाबादके मुहम्मद वेगड़ाने फतई रावल राजा जयसिंहको पराजित करके इस नगरपर अधिकार कर लिया। उसने पवंत और नगरके मन्दिरोंको करतापूर्वक विनष्ट कर दिया। जैन मन्दिरोंका विनाश भी इसीने किया था, जिनके भग्नावशेष अब तक मिलते हैं। पर्वतपर काली देवीका भी एक मन्दिर है। हिन्दू लोग वहां दर्शनार्थ जाते हैं। इस काली देवीके सम्बन्धमें कई अद्भुत किंवदन्तियां सुननेको मिलती हैं। एक तो यह कि मुनि विश्वामित्रने इस स्थानपर तपस्या की थी। कुछ लोग कहते हैं कि विश्वामित्र ऋषिने यहां तपस्या करते समय कालीदेवीको विराजमान करके उसकी पूजा की थी। एक और किंवदन्ती इस देवीके सम्बन्धमें सुननेमें आयी है। कहा जाता है कि फतई रावलके राज्य-कालमें नवदुर्गा ( नवरात्रि ) के उत्सवमें स्त्रियां गरवा नृत्य किया करती थीं। इन स्त्रियोंमें काली देवी भी सुन्दर स्त्री-वेषमें सम्मिलित होती थी। एक दिन राजाके नाईने क्षौर क्रिया करते समय स्त्रियोंके गरवा नृत्यमें एक यौवनवती सुन्दरीके आनेको चर्चा छेड़ दी। नापितने उस युवतीके रूप-सौन्दर्यका इतना सरस वर्णन किया कि राजा उसे देखनेके लिए अधीर हो उठा । वह वेष बदलकर वहाँ पहुंचा जहाँ नृत्य चल रहा था। राजाने उस सुन्दरीको देखा और कामविह्वल होकर उसने सुन्दरीका आंचल पकड़ लिया। देवीने राजाको बहुत समझाया। उन्होंने सांसारिक भोग-सामग्री देनेकी बात कही, किन्तु राजा नहीं माना, वह बराबर आग्रह करता रहा। इससे देवीको क्रोध आ गया। उसने शाप दिया-'तेरे वंशका नाश होगा, तेरी मृत्यु होगी और इस नगरका विनाश होगा।' शाप देकर देवी अन्तर्धान हो गयी। इसके कुछ समय पश्चात् ही राज्यपर मुसलमानोंने प्रबल वेगसे आक्रमण किया। इसमें राजा मारा गया, अनेक कुटुम्बी मार डाले गये, स्त्रियोंने अग्निमें कूदकर शील-रक्षा की। आततायियोंने नगरको लूट लिया। नगरमें विध्वंस-लीला मचा दी। मन्दिर और मूर्तियाँ नष्ट कर
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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