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________________ गुजरातके विगम्बर जैन तीर्थ १७९ केला भव्यजनासि बोध बहुधा पावापुरी लाधले । गेले मोक्षपदासि भव्य कवि ते श्रोत्या जना दाविले ॥" -लहु अंकुश कथा, श्लोक ७७ इसी प्रकार श्रुतसागर, ज्ञानसागर, चिमणा पण्डित आदि अनेक लेखकोंने भी इस क्षेत्रको सिद्धक्षेत्र माना है। पावागढ़की अवस्थिति निर्वाणकाण्डमें तीन पावाओंका उल्लेख आया है। (१) प्रथम पावाके सम्बन्धमें उसमें लिखा है-'पावाए णिव्वुदो महावीरो' अर्थात् एक पावा वह थी, जहाँसे महावीर मुक्त हुए थे। (२) दूसरी पावाका नाम पावागिरि था जहांसे रामके दो पुत्र और पांच कोटि लाट नरेश मुक्त हुए थे, जैसा कि तत्सम्बन्धी उपर्युक्त गाथासे स्पष्ट है। (३) तीसरी पावा भी पावागिरि कहलाती थी और वहाँसे सुवर्णभद्र आदि चार मुनि मुक्त हुए थे। यह पावागिरि चेलना नदीके तटपर अवस्थित थी। यथा "पावागिरिवरसिहरे सुवण्णभद्दाइ मुणिवरा चउरो। चलणाणई तडग्गे निव्वाणगया णमो तेसिं ॥१२॥" इन तीनों पावाओंमें वह पावा कौन-सी है जहाँसे रामके पुत्र मुक्त हुए थे। इसका उत्तर भट्टारक श्रुतसागरने बोधप्राभृतकी गाथा नं. २७ की टीकामें तीर्थक्षेत्रोंके नामोल्लेख करते हुए दिया है। उसमें इन तीन पावाओंमें अन्तर बतानेके लिए लाटदेश पावागिरि, पावापुरी और चलनानदी-तट इस प्रकार नामोल्लेख किया है। अर्थात् लाटदेशकी पावागिरि रामपुत्रोंकी निर्वाणभूमि, पावापुरी महावीरकी निर्वाण-भूमि और चलनानदी-तट (पर स्थित पावागिरि) सुवर्णभद्रादिकी निर्वाण-भूमि । इससे सिद्ध होता है कि राम-पुत्रोंकी निर्वाण-भूमि लाटदेशमें थी। भट्टारक ज्ञानसागरने 'सर्वतीर्थवंदना' में इस क्षेत्रके लिए वर्तमान नाम पावागढ़ ही प्रयुक्त किया है और इसका दो बार वर्णन किया है। उन्होंने इस क्षेत्रको गुज्जर देश (गूर्जर, गुजरात) में बताया है। यथा 'पावागढ़ सुपवित्र देश गुज्जर मुख मंडन । सुन्दर जिनवर भुवन पाप संताप विखंडन । विघन टलत सवि दूर दर्शन बहुसुखकारी। वंदत नरवर खचर दुखदारिद्र निवारी ॥ भावसहित नर जे भजत तस मन इच्छित सवि फले । ब्रह्मज्ञानसागर वदति सुख संपति वेगे मले ॥१९॥' इसी प्रकार एक अन्य पद्यमें भी पावागढ़को गुज्जर देशमें ही बताया है। यथा-'गुज्जर देश पवित्र पावागढ़ अतिसारह।' लाटदेश सौराष्ट्रको कहा जाता था और गुज्जर गुजरातको । दोनों प्रदेश प्रायः सम्मिलित रहे हैं, अतः दोनों एक माने जाते हैं। इसलिए पावागढ़ लाटमें था या गुर्जर देशमें, एक ही बात है। पावागढ़का इतिहास अतिप्राचीन कालसे पावागिरि तीर्थभूमि रहा है। किन्तु यह सैनिक सुरक्षाको दृष्टिसे भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा प्रतीत होता है। इसीलिए इसकी तलहटीमें चांपानेर शहर बसाकर
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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