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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ चौबीसी, एक खड्गासन और एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा हैं, पंचधातुकी ९ प्रतिमाएं हैं और ३ चरण चिह्न विराजमान हैं। ___नगरमें श्वेताम्बरोंके भी तीन मन्दिर हैं-नवखण्ड पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ और जीरावाला पार्श्वनाथ । इन मन्दिरोंमें संवत् १२७६ से १३५९ तक मूर्तियां हैं। इस बीच गुजरातकी राजसत्ता चालुक्य वंशी भीमदेव द्वितीय, त्रिभुवनपाल और बघेल वंशके हाथोंमें रही थी। ये सभी प्रायः जैन धर्मानुयायी थे। धर्मशाला
मन्दिरके निकट १ धर्मशाला है। वर्तमानमें इसमें क्षेत्रका कार्यालय है। धर्मशालामें केवल एक ही कमरा है। यहां जो यात्री दर्शनार्थ आते हैं वे प्रायः दर्शन करके भावनगर वापस लौट जाते हैं।
नगरमें दिगम्बर जैनका कोई घर नहीं है। क्षेत्रका पता इस प्रकार हैमन्त्री, श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, हूमड़का डेला, घोघा जिला भावनगर ( गुजरात )
पावागढ़
निर्वाण-क्षेत्र
पावागढ़का प्राचीन नाम पावागिरि था। बादमें पर्वतपर दुर्ग बन जानेके कारण इसका नाम पावागढ़ हो गया। यह स्थान सिद्धक्षेत्र या निर्वाण-क्षेत्र है। यहाँपर रामचन्द्रके दो पुत्रोंअनंगलवण और मदनांकुशने घोर तप करके कर्मोंका नाश कर निर्वाण प्राप्त किया था। इनके अतिरिक्त लाट देशके पांच कोटि नरेशोंने भी यहाँपर तपस्या करके मुक्ति प्राप्त की थी। इस पवित्र निर्वाण-भूमिके सम्बन्धमें प्राकृत निर्वाणकाण्डमें बड़े गौरवपूर्ण शब्दोंमें निम्नलिखित उल्लेख प्राप्त होता है
"रामसुआ वेण्णि जणा लाउरिंदाण पंचकोडीओ।
पावागिरिवरसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥६॥" भट्टारक उदयकोतिने 'तीर्थवंदना में अपभ्रंश भाषामें पावागिरिके सम्बन्धमें निर्वाण-काण्डका ही अनुकरण करते हुए लिखा है
"पावइ लवणंकुस रामसुआ। पंचेव कोडि जहिं सिद्ध हुआ ॥९॥"
भट्टारक गुणकीतिने भी मराठीमें 'पावामहागढ़ि श्री लवांकुश मुख्य करोनि पांचकोडि सिद्धि पावले त्या सिद्धक्षेत्रासि नमस्कार माझा' लिखकर इस सिद्धक्षेत्रकी वन्दना की है। इसी प्रकार भट्टारक मेघराजने निर्वाण-काण्डका ही अनुसरण करते हुए गुजराती भाषामें इस क्षेत्रके सम्बन्धमें लिखा है-'पावागिरि पांचकोडि लहु अंकुस सिद्धि गयाए।' भट्टारक जिनसागरने लिखा है
"तेव्हा दोय कुमार राज्य करिता वैराग्यता पावले। घेती पंचमहाव्रतासि वरवे संबोधता लाधले।