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________________ गुजरात के दिगम्बर जैन तीर्थ १७७ मन्दिर और जीरावाला पार्श्वनाथ मन्दिर । दोनों ही समाजोंके मन्दिरोंको देखनेसे ऐसा लगता है कि श्वेताम्बर मन्दिर उस कालमें बने थे, जब यहाँ चालुक्य वंशका शासन था और व्यापार अपने यौवनपर था। जबकि दिगम्बर मन्दिरोंको देखनेसे यह प्रभाव पड़ता है कि ये मन्दिर उसके उत्तरकालमें बने हैं, जब नगर में व्यापार क्षीणावस्था में पहुँच चुका था। यही कारण है कि श्वेताम्बर मन्दिरों में वि. संवत् १२७६ से संवत् १३७९ तककी मूर्तियां मिलती हैं, जबकि दिगम्बर मन्दिरों में संवत् १५११, १६४३ और १६७९ की मूर्तियां हैं। इनमें एक मूर्ति अवश्य ऐसी है, जिसके ऊपर लांछन और लेख नहीं है । लोगोंकी धारणा है कि यह मूर्ति चतुर्थ कालकी है । इस धारणाका एकमात्र आधार मूर्तिपर लांछन और लेखका अभाव है । इस प्रकारकी धारणा अनेक स्थानोंपर अनेक मूर्तियोंके सम्बन्ध में प्रचलित हैं । किन्तु रचना शैलीसे यह मूर्ति ११-१२वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है । सम्भवतः यह किसी अन्य मन्दिर में विराजमान थी और उस मन्दिरके नष्ट होनेपर वह इस मन्दिरमें विराजमान कर दी गयी । हमारा यह अनुमान मन्दिरके निर्माणकालपर आधारित है क्योंकि मन्दिर ५०० वर्षसे अधिक प्राचीन प्रतीत नहीं होता । क्षेत्र-दर्शन नगरके मध्य में आदिनाथ मन्दिर अवस्थित है । इसमें प्रवेश करते ही सामने पीतल के सहस्रकूट जिनालय के दर्शन होते हैं। इसकी ऊँचाई ३ फुट ६ इंच और चौड़ाई १ फुट ११ इंच है । इसका प्रतिष्ठाकाल संवत् १६११ है । दायीं ओर एक चबूतरानुमा वेदीमें भगवान् आदिनाथकी २ फुट ऊँची संवत् १६७९ में प्रतिष्ठित श्याम पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । बायीं ओर २ फुट ३ इंच ऊँची एक पद्मासन प्रतिमा कृष्णवणंकी है। पीठासनपर प्रतिष्ठाकाल संवत् अंकित नहीं है । इसी प्रकार दायीं ओर साढ़े नौ इंच ऊँचे एक फलक में श्वेत वर्णकी पद्मासन मूर्ति है। उसके दोनों ओर खड्गासन मूर्तियाँ हैं । यहाँ एक शिलापटमें चौबीसी बनी हुई है । आदिनाथ भगवान्‌ की उक्त मूर्ति अत्यन्त अतिशय सम्पन्न है । इस वेदीपर श्वेतवर्णकी २ फुट ७ इंच ऊँची एक पद्मासन मूर्ति विराजमान है। इसके पीठासन पर चिह्न और लेख नहीं है । इसे कुछ लोग चतुर्थं कालकी मानते हैं । इसकी रचना - शैलीको देखते हुए इसे ११-१२वीं शताब्दीकी माना जा सकता है । इन मूर्तियों अतिरिक्त समवसरण में २ श्वेत, ३ रक्त और १ कृष्णवणंकी पाषाण मूर्तियाँ तथा ३ धातु मूर्तियाँ हैं । Marat ओर एक दीवार ताकमें १ फुट ६ इंच आकारवाले पाषाणमें चोबीसी विराजमान है । इस मन्दिरके उपरिखण्ड में एक वेदीमें चन्द्रप्रभ भगवान्की २ फुट ६ इंच अवगाहनावाली श्वेत पाषाणक्री पद्मासन मूर्ति है । इसके समवसरणमें ४ पाषाणकी तथा ३८ धातुकी मूर्तियाँ हैं । पाषाण मूर्तियोंके ऊपर समुद्रकी क्षारयुक्त वायुका दुष्प्रभाव पड़ा है। मूर्तियों पर धब्बे पड़ ये हैं तथा पाषाण या पालिशकी चमक धुंधली पड़ गयी है । इस मन्दिरके कम्पाउण्ड में एक और दिगम्बर जैन मन्दिर है । इसमें मूलनायक प्रतिमा भगवान् आदिनाथकी है । यह श्वेत पाषाणकी है और पद्मासन मुद्रामें है । इसके समवसरण में धातुकी ३९ और स्फटिककी १ मूर्ति है । ऊपरी मंजिल में एक वेदी है। इसमें संवत् १९६४३ में प्रतिष्ठित साढ़े आठ इंच ऊँची भगवान् आदिनाथको श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसके अतिरिक्त पाषाणकी एक २३
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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