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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ व्यवस्था
यह क्षेत्र भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके अन्तर्गत है। इस क्षेत्रके दो ट्रस्टो हैं जो बम्बई रहते हैं। वे ही इस क्षेत्रको व्यवस्था करते हैं। क्षेत्रका पतामन्त्री, श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला
भैरवपुरा, पालीताना ( गुजरात )
घोघा
मार्ग और अवस्थिति
'श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र घोघा' भावनगर ( गुजरात ) से सड़क मार्ग द्वारा सम्बद्ध है तथा लगभग २३ कि. मी. है। भावनगरसे घोघा जानेके लिए बसोंकी सुविधा है। वर्तमान घोघा साधारण नगर है और यह खम्भातकी खाड़ीके तटपर अवस्थित है। नगरमें बिखरे हुए खण्डहरोंमें इसके समृद्धिशाली अतीतके दर्शन होते हैं। लगता है, यह अतीतमें पत्तन था और व्यापारिक केन्द्र था। यहाँसे सुदूर अरब देशोंको व्यापारिक मालका निर्यात और आयात होता था। अतिशय-क्षेत्र
यह एक अतिशय-क्षेत्र माना जाता है। यहां श्वेत पाषाणकी एक पद्मासन प्रतिमा है। इसके पादपीठपर लांछन और लेख नहीं है। किन्तु भक्त जनताने अपनी कल्पना द्वारा इन दोनों बातोंकी पूर्ति कर ली है। भक्त लोग इसे चतुर्थ कालको मानते हैं तथा लांछन न होते हुए भी इसे भगवान् शान्तिनाथकी प्रतिमा मानते हैं। यहांके अतिशयोंको इस प्रदेशमें विशेष चर्चा सुनी जाती है। कहते हैं, कभी-कभी मन्दिरमें रात्रिकी नीरवतामें घण्टोंकी आवाज सुनाई देती है। भक्त लोग यहाँ मनौतीके लिए आते हैं। पुरातत्त्व
प्राचीन काल में यह नगर विशाल और समृद्धिशाली रहा होगा, नगरमें बिखरे हुए भग्नावशेषोंसे ऐसा प्रतीत होता है । समुद्र मार्गसे यहां सुदूर देशों तक व्यापार होता था। भावनगरसे चले हुए पोत यहाँके पत्तनपर आकर रुकते थे और यहाँसे मालका लदान करते थे। इसी प्रकार अरब सागरसे आनेवाले पोत इस पत्तनपर माल उतारते थे। विविध प्रकारके आयात-निर्यातके कारण यहाँकी समृद्धि निरन्तर बढ़ती गयी। जब तक चालुक्य वंशके सोलंकी और बाघेला नरेशोंका यहांपर शासन रहा, यहाँका व्यापार फलता-फूलता रहा। किन्तु जब राज्यसत्ता मुसलमानोंके हाथमें आयो, उनके निरन्तर आक्रमणों और अत्याचारोंने यहांके व्यापार और समृद्धिको गहरा आघात पहुंचाया। धीरे-धीरे यहाँका पत्तन समाप्त हो गया, व्यापार समाप्त हो गया और नगरका वैभव समाप्त हो गया।
यहां दिगम्बर समाजके दो खण्डवाले दो जिनालय हैं, दोनों ही आदिनाथ जिनालय हैं। इन मन्दिरोंसे थोड़ी दूरपर तीन श्वेताम्बर मन्दिर हैं- नवखण्ड पाश्र्वनाथ मन्दिर, चन्द्रप्रभ