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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १७५ इसके बगल में संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित २ फीट २ इंच ऊंची आदिनाथकी श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है । दायीं ओर संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित १ फुट ८ इंच ऊँची अजितनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। इसके पार्श्वमें २ फोट ४ इंच ऊंची श्वेत वर्णवाली चन्द्रप्रभकी पद्मासन प्रतिमा है। इनके अतिरिक्त वेदीपर ३० धातु प्रतिमाएं हैं, जिनमें ५ चौबीसी, १ चैत्य और शेष तीर्थकर प्रतिमाएं हैं। मन्दिरका सभामण्डप अत्यन्त सुन्दर है। पर्वतके दिगम्बर मन्दिरको लेकर दिगम्बर और श्वेताम्बर समाजके बीचमें कुछ समय तक तनाव रहा है। परन्तु बादमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी और सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी अहमदाबादके मध्य सन् १९२८ में एक एग्रीमेण्ट हुआ। इसके अनुसार इस मन्दिरका सम्पूर्ण स्वत्व और स्वामित्व दिगम्बर समाजका रहेगा और श्वेताम्बर समाज उनकी पूजा और व्यवस्थामें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। पर्वतपर श्वेताम्बर मन्दिरोंमें आदीश्वर, कुमारपाल, विमलशाह, सम्प्रति नरेशके मन्दिर दर्शनीय हैं । एक आगम मन्दिर बनाया गया है, जिसमें सम्पूर्ण आगम पाषाण पर अंकित कराये गये हैं। करमुक्त ___ भारतको स्वाधीनतासे पूर्व यहाँ आनेवाले प्रत्येक यात्रीसे यहाँके ठाकुर साहबकी ओरसे कर लिया जाता था। बादमें श्वेताम्बर समाज और पालीताना दरबारके मध्य एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार श्वेताम्बर समाज ठाकुर साहबको ६० हजार रुपये एकमुश्त वार्षिक कर देने लगी। भारतकी स्वतन्त्रता और रियासतोंके विलयके बाद श्वेताम्बरोंको उस करसे मुक्ति मिल गयी। धर्मशाला पालीताना नगरका नाम है तथा शत्रुजय पर्वतका नाम है । पालीताना नगरके भैरवपुरा मुहल्लेमें दिगम्बर जैन धर्मशाला बनी हुई है। धर्मशाला काफी विशाल है। इसमें ४० कमरे हैं। नल और बिजलीकी व्यवस्था है। यात्रियोंकी सुविधाके लिए २५ रजाई, गद्दों और तकियोंकी व्यवस्था है । बरतन आदिकी भी व्यवस्था है । बोजार धर्मशालाके निकट ही है। मेला क्षेत्रपर कोई वार्षिक मेला नहीं होता। सात वर्ष पहले पर्वतपर अवश्य ही ध्वजारोहणका मेला हुआ था। मार्ग सड़क-मार्गसे यह सोनगढ़से २२ कि. मी. तथा भावनगरसे ५७ कि. मी. है। रेल-मार्गसे पश्चिमी रेलके महसानासे सुरेन्द्रनगर, सुरेन्द्रनगरसे सीहोर और सोहोरसे सोहौर-पालीताणा ब्रांच लाइनसे पालीताना पहुंच सकते हैं। किन्तु बसोंका चारों ओर जाल फैला हुआ है। महसानासे तारंगा, जूनागढ़-गिरनार, पालीताना सब स्थानोंके लिए बस-सेवा है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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