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________________ १७४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है। लगता है, देदीप्यमान तारावलिके बीचमें पूर्ण चन्द्र चमक रहा हो। यह मन्दिर पर्याप्त प्राचीन है। इसमें नौ वेदियाँ बनी हुई हैं। ___मुख्य वेदीमें भगवान् शान्तिनाथ विराजमान हैं। शान्तिनाथ भगवान्की ३ फीट ६ इंच ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा वैशाख सुदी ५ संवत् १६८६ में मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुन्दकुन्दान्वयके भट्टारक सकलकीर्ति उनके शिष्य भुवनकीर्ति तच्छिष्य ज्ञानभूषण तच्छिष्य विजयकीर्ति तच्छिष्य शुभचन्द्र तच्छिष्य सुमतिकीर्ति तच्छिष्य गुणकीर्ति तच्छिष्य वादिभूषण तच्छिष्य रामकीर्ति तच्छिष्य भट्टारक पद्मनन्दिने करायी थी, जैसा कि इसके मूर्तिलेखसे ज्ञात होता है। इसके दोनों पार्यों में २ फोट ३ इंच ऊंची धातुको खड्गासन मूर्तियां हैं। ये चांदीकी वेदियोंमें हैं । बायीं ओर संवत् १९५९ में प्रतिष्ठित और १ फुट ९ इंच ऊँची नेमिनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। पार्श्वनाथकी १ फुट ७ इंच उन्नत श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। एक प्रतिमा १० इंच उन्नत श्वेतवर्णकी पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। इसके बगल बायीं ओरकी दीवारमें चन्द्रप्रभ भगवान्को ११ इंच उत्तुंग श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके आगे तीन पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं-प्रथम ७ इंचकी श्वेत वर्ण, दूसरी ५ इंच ऊँची कृष्ण वर्ण और तीसरी ७ इंच ऊंची श्वेत वर्ण। इनके बगलवाली वेदीमें संवत् १८६३ में प्रतिष्ठित २ फीट ६ इंच ऊँची अजितनाथ भगवान्की श्वेत पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके बगलवाले आलेमें पाषाणको पदमासन प्रतिमा है। दायीं ओरकी दीवारमें १ फुट अवगाहनामें शान्तिनाथ प्रभुको श्वेतवर्ण प्रतिमा है। इनके आगे तीन प्रतिमाएं विराजमान हैं-प्रथम ७ इंचकी श्वेत, दूसरी ५ इंचकी कृष्ण और तीसरी ६ इंचकी श्वेत। इससे आगेकी वेदीमें २ फीट ४ इंच ऊंची श्वेत वर्ण सुपार्श्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । पहले यह प्रतिमा मूलनायकके रूपमें विराजमान थी किन्तु पैरका अंगूठा खण्डित हो जानेसे इसे मुख्य वेदीसे हटाकर यहां विराजमान कर दिया है। इसके आगे पद्मावती देवी है। गर्भगृहके द्वारपर बायीं ओर एक वेदीमें धातुकी एक फुट ऊँची युधिष्ठिर अर्हन्तकी संवत् २०२५ में प्रतिष्ठित प्रतिमा है। इसी प्रकार दायीं ओर वेदीमें अर्जुन और भीमकी धातु मूर्तियां हैं। " सभामण्डपमें गर्भगृहकी बाह्य भित्तिमें सामनेकी ओर दोनों पार्यों में २ फुट उत्तुंग और संवत् १७३४ में प्रतिष्ठित पाश्वनाथकी पद्मासन धातु प्रतिमाएं हैं। मन्दिरके उत्तर द्वारपर दोनों ओर ऋषभदेव और सम्भवनाथके चरणचिह्न हैं। पश्चिम दीवारके आगे तीन मन्दरियोंमें ५ चरण-पादुकाएँ हैं। इसी प्रकार दूसरी ओर तीन मन्दरियोंमें ३ चरणयुगल हैं। इसके मध्यमें एक शिखरबद्ध मन्दरिया है। इसमें तीन पाण्डवोंके चरण-चिह्न विराजमान हैं। नगर-मन्दिर नगरके मध्य में एक दिगम्बर जैन मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर में भगवान् शान्तिनाथकी ढाई फीट ऊंची पद्मासन मूलनायक प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में हुई थी। बायीं ओर संवत् १९५१ में प्रतिष्ठित श्वेत पाषाणकी अरनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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