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________________ गुजरात दिगम्बर जैन तीर्थ १६९ कोई चर्चा नहीं होती । अतः वहाँका वातावरण अत्यन्त शान्त और अध्यात्म रंजित रहता है । वहाँ जानेवाले व्यक्तिसे धनकी याचना नहीं की जाती, सबका समान आतिथ्य किया जाता है । वहाँके आर्थिक विनियोगकी अपनी पृथक् प्रभावशाली पद्धति है । उससे कानजी स्वामीको पृथक् रखा गया है। इन कारणोंसे सोनगढ़ एक तीर्थ- जैसा बन गया है । वह हजारों व्यक्तियोंकी श्रद्धाका भावनात्मक केन्द्र बन गया है। इसलिए हजारों व्यक्ति वहाँ यात्रा के निमित्त जाते हैं । वे उस स्थान ( तीर्थं ) की यात्रा इसलिए करते हैं क्योंकि उस तीर्थ में जंगम तीर्थ विराजमान है जो उनकी धार्मिक श्रद्धा और आध्यात्मिक आकांक्षाओंका केन्द्र है । यह हम पूर्व में निवेदन कर चुके हैं कि सोनगढ़ कोई तीर्थक्षेत्र नहीं है, न यह निर्वाण-क्षेत्र है, न कल्याणक क्षेत्र, न अतिशय क्षेत्र और न कलातीर्थं ही है । किन्तु हजारों व्यक्तियोंका श्रद्धाकेन्द्र अवश्य है । अतः इसे श्रद्धा-तीर्थंके रूपमें मानकर यहाँ उसका परिचय दिया जा रहा है । सोनगढ़-दर्शन यहाँपर श्री सीमन्धरस्वामी दिगम्बर जैन मन्दिर, मानस्तम्भ, समवसरण मन्दिर, श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, श्री महावीर कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन परमागम मन्दिर, भगवान् श्री कुन्दकुन्द प्रवचन मण्डप, स्वाध्याय मन्दिर, जैन अतिथि सेवा समिति, जैन विद्यार्थी गृह, श्री कहान राहत केन्द्र ट्रस्ट और श्री गोगीदेवी ब्रह्मचर्याश्रम नामक संस्थाएँ हैं । श्री सीमन्धरस्वामी दिगम्बर जैन मन्दिर - मूलनायक भगवान् सीमन्धरकी ३ फुट उत्तुंग श्वेत वर्ण पद्मासन मूर्ति है । यह यहाँकी मूलनायक मूर्ति है इसके दोनों पावोंमें पद्मप्रभ और शान्तिनाथ भगवान्की २ फुट ६ इंच ऊँची बादामी वर्णकी पद्मासन मूर्तियां हैं । इनके अतिरिक्त यहाँ धातुको ५ और स्फटिककी १ मूर्तियाँ है । सभामण्डपमें पौराणिक दृश्योंका सुन्दर चित्रांकन किया गया है । इसकी ऊपरी मंजिल में वेदी में कृष्ण वर्णं भगवान् नेमिनाथकी २ फुट ६ इंच ऊँची पद्मासन मूर्ति है । इसके बायीं ओर सीमन्धर और भगवान् पार्श्वनाथकी धातु-मूर्तियाँ हैं तथा दायीं ओर भगवान् महावीरकी श्वेत वर्ण पद्मासन मूर्ति है | समवसरण मन्दिरके सम्मुख ६३ फुट उत्तुंग मानस्तम्भ है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् २००९ में हुई थी। इसकी शीर्षं वेदीमें सीमन्धर स्वामी विराजमान हैं। मानस्तम्भको नोचेकी वेदी में भी सीमन्धर स्वामीकी चारों दिशाओं में मूर्तियाँ हैं ।. समवसरण मन्दिर - सीमन्धर मन्दिरके पृष्ठ भाग में समवसरण मन्दिर है । इसमें समवसरणकी रचना की गयी है । गन्धकुटी में चारों दिशाओंमें सीमन्धर स्वामी विराजमान हैं । एक ओर आचार्यं कुन्दकुन्द खड़े हुए हैं और भगवान्‌ के दर्शन करते हुए दिखाये गये हैं । रचना भव्य बनी है । स्वाध्याय मन्दिर - मन्दिरके एक ओर स्वाध्याय मन्दिर है । इसमें समयसार शास्त्र स्थापित किया गया है। पूरा शास्त्र चाँदी के पत्रोंमें उत्कीर्ण है । 'वन्दित्तु' शब्दमें सच्चा हीरा लगा है तथा 'ॐ' सच्चे माणिक्यसे बनाया गया है । श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन सरस्वती भवन - सोनगढ़ ट्रस्टके भूतपूर्वं प्रमुख श्री रामजी भाईको उनकी ८३वीं जन्म जयन्ती के अवसरपर मुमुक्षु मण्डलोंकी ओरसे ८३००० रुपये भेंट किये गये थे । वे रुपये उन्होंने आभारसहित लौटा दिये। उन रुपयोंसे इस सरस्वती भवनका २२
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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