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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १६५ व्यवस्था नहीं है । खड़ा पहाड़ है। मार्ग-दर्शनके लिए लाल रंगसे चट्टानोंपर तीरके संकेत चिह्न बना रखे हैं। चढ़ाई कठिन है। किन्तु युवक साहस और परिश्रमसे थोड़ा कष्ट सहकर चढ़ सकते हैं। पर्वतकी चोटीपर एक शिलामें चरण बने हुए हैं। ये चरण प्रद्युम्नकुमारके स्मारक हैं। यही वह स्थान है, जहाँसे श्रीकृष्ण-रुक्मिणीके पुत्र प्रद्युम्नकुमारने कर्मोका नाश करके मोक्ष प्राप्त किया था। चरणोंके निकट ही एक शिलामें एक फुट ऊंची मूर्ति बनी हुई है। पाँचवीं टोंक-वहाँसे उतरकर फिर सीढ़ियां कुछ दूरपर ऊपरको पाँचवीं टोंकके लिए जाती हैं। यहां मुख्य छतरीके नीचे भगवान् नेमिनाथके चरण बने हुए हैं। हिन्दू लोग इन्हें दत्तात्रेयके चरण कहते हैं। चरणोंके पीछे भगवान् नेमिनाथकी भव्य दिगम्बर प्रतिमा विराजमान है। यहां हिन्दुओंने बलात् अधिकार कर रखा है। यद्यपि, यह तथा अन्य टोंकें और नेमिनाथका मन्दिर सरकारके पुरातत्त्व विभागके अधिकारमें है। यहाँसे उसी मार्गसे वापस लौटते हैं, जिस मार्गसे गये थे। प्रथम टोंकके पास सहस्राम्रवनके लिए सीढ़ियां जाती हैं । यहाँ इस दीक्षा वनमें एक छतरीके नीचे चरण बने हुए हैं । यहाँसे एक कच्चा मागं धर्मशालाके लिए जाता है, किन्तु यह बहुत कष्टकर है। अतः सीढ़ियों द्वारा ही लौटकर मुख्य मार्गसे जाना चाहिए। ___लौटते हुऐ मार्गमें बायीं ओर एक शिलामें १-१ फुट ऊंची दो मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। बायों ओरको मूर्ति पद्मासन है । यह तीर्थंकर मूर्ति है। दायों ओर गोमेद यक्ष और अम्बिकाकी मूर्ति हैं तथा उनके शीर्षभागपर भगवान् नेमिनाथकी मूर्ति बनी हुई है। तलहटीके मन्दिर ___ दिगम्बर जैन धर्मशालामें एक जिनालय बना हुआ है। मन्दिरके सामने एक समुन्नत धवल मानस्तम्भ बना हुआ है। मन्दिरकी मुख्य वेदोके ऊपर भगवान नेमिनाथकी कृष्णवर्ण भव्य प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें श्वेत पाषाण कमलपर विराजमान है। मूर्तिको अवगाहना पीठासन सहित ४ फुटकी है। इसका प्रतिष्ठा काल विक्रम संवत् २०२९ वैशाख शुक्ला ८ है। पीठासनपर शंख लांछन बना हुआ है। भगवान्के सिरके पीछे ऊंची वेदीपर भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी कृष्णवर्णवाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह संवत् १५४८ में जीवराज पापड़ीवाल द्वारा प्रतिष्ठित हुई थी। यही मूलनायक प्रतिमा कहलाती है। इसीके कारण यह मन्दिर भी मुनिसुव्रतनाथ मन्दिर कहलाता है। शेष वेदियोंका ( बायींसे दायों ओर ) संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : वेदी नं. २-भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा १ फुट ७ इंच अवगाहनाकी, संवत् २००२ फागुन शुक्ला २ की प्रतिष्ठित है। बायीं ओर गुलाबी वर्णकी, संवत् २००२ में प्रतिष्ठित, भगवान् महावीरकी १ फुट ऊंची प्रतिमा है तथा दायीं ओर श्वेत वर्ण की, संवत् २००२ में प्रतिष्ठित, ११ इंच ऊँची, नेमिनाथ प्रतिमा है। वेदो नं. ३-भगवान् आदिनाथकी संवत् १९८७ में प्रतिष्ठित पद्मासन धातु प्रतिमा है। इसकी बायीं ओर भगवान् महावीर की, संवत् १९८९ में प्रतिष्ठित, पद्मासन धातु प्रतिमा तथा दायीं ओर नेमिनाथको, संवत् १९२६ में प्रतिष्ठित, पद्मासन धातु प्रतिमा है। इन तीनोंकी अवगाहना क्रमशः ८, ५ और ५ इंच है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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