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________________ १६४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसके पार्श्वमें एक छतरीमें कुन्दकुन्दाचार्यके १ फूट २ इंच लम्बे चरण श्वेत पाषाणके बने हुए हैं। सामने दीवारमें पंच परमेष्ठीकी ५ मूर्तियां बनी हुई हैं। ___ इस छतरीके पार्श्वमें एक मन्दिर है। वेदीपर कृष्ण पाषाणकी संवत् १७४५ में प्रतिष्ठित १ फुट ७ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पार्यों में इसी कालकी १ फुट ११ इंच ऊँची पार्श्वनाथकी श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इस अहातेके प्रांगणमें बड़ा मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिरमें गर्भगृह और सभामण्डप बने हुए हैं। वेदीपर मध्यमें कृष्णवर्ण पद्मासन १ फोट ४ इंच अवगाहनाकी संवत् १९२४ में प्रतिष्ठित नेमिनाथ भगवान्की प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर १ फुट ५ इंच और १ फुट ८ इंच ऊँची दो पार्श्वनाथ प्रतिमाएं तथा इसी आकारकी दो शान्तिनाथ प्रतिमाएँ हैं। दायीं ओर ८ इंच ऊँची कृष्ण वर्णको पाश्वनाथ और १ फुट ८ इंच ऊंची संवत् १७४९ में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण नेमिनाथकी प्रतिमाएं हैं। इनके अतिरिक्त १ फुट ऊंची संवत् १६६५ में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथकी प्रतिमा है। दिगम्बर मन्दिरसे थोड़ा आगे बढ़नेपर गोमुखी गंगा है। एक गोमुखसे जलधारा निकलती रहती है, जिसके जलसे कई कुण्ड बन गये हैं। गोमुखके पृष्ठ भागमें दीवारमें एक वेदीपर तीर्थंकरोंके चौबीस चरण-चिह्न बने हुए हैं। यह प्रथम टोंक कहलाती है। श्वेताम्बर इसे ज्ञानशिला कहते हैं। इस पवित्र कल्याणक स्थानपर हिन्दुओंने अधिकार कर रखा है। चरणों तक पहुंचनेके लिए एक कमरेमें होकर जाना पड़ता है। भक्त हिन्दू लोग उन कुण्डोंमें पैसे चढ़ाते हैं। इन कुण्डोंको देखनेपर उनके तलमें अनेक सिक्के पड़े हुए दिखाई पड़ते हैं। इस गोमुखी गंगाके निकट ही सहस्राम्रवनको मार्ग जाता है। किन्तु वहां यात्राको समाप्तिपर ही जाना चाहिए। यहाँसे कुछ आगे चलनेपर रा खंगारके दुर्गका द्वार मिलता है। द्वारके बायीं ओर नेमिनाथका विशाल और दर्शनीय मन्दिर है । यह मूलतः दिगम्बर आम्नायका था। लगभग १२५ वर्ष पूर्व दोनों सम्प्रदायोंने इस मन्दिरकी संयुक्त व्यवस्था कर रखी थी। इस मन्दिरकी व्यवस्थामें एक समय श्वेताम्बर समाजका बहुमत था। उन्होंने इसका लाभ उठाकर इस मन्दिरपर अधिकार कर लिया और नेमिनाथ भगवानकी दिगम्बर वीतराग प्रतिमाको आभरणादिसे मण्डित कर दिया। अन्य भी अनेक परिवर्तन किये। इस मन्दिरके निकट वस्तुपाल-तेजपाल, सम्राट् कुमारपाल, मन्त्री सज्जन आदिके बनवाये हुए ९ कलापूर्ण श्वेताम्बर मन्दिर हैं। द्वितीय टोंक-९०० सीढ़ियां चढ़नेपर द्वितीय टोंक मिलती है। बायीं ओर एक चबूतरेपर छतरीके नीचे अनिरुद्धकुमारके चरण हैं। अनिरुद्धकुमारने यहीं तप करके निर्वाण प्राप्त किया था। इसके निकट ही अम्बा देवीका ऊंची चौकीपर विशाल मन्दिर है। यह वही मन्दिर है जिसका उल्लेख इस लेखमें ऊपर आ चुका है । यह मूलतः दिगम्बर मन्दिर था। किन्तु आजकल यह हिन्दुओं के अधिकारमें है। तृतीय टोंक-आगे बढ़नेपर रास्तेके बायीं ओर शम्बुकुमारके चरण बने हुए हैं। यहींसे शम्बुकुमारको निर्वाण प्राप्त हुआ था। यहां भी हिन्दुओंने अपने मन्दिर बना लिये है। यह तीसरी टोंक कहलाती है। चौथी टोंक-तीसरी टोंकसे सीढ़ियाँ नीचेकी ओर जाती हैं। लगभग १५०० सीढ़ियाँ उतरने और चढ़नेपर चौथी टोंकका पर्वत मिलता है। इस पर्वतपर चढ़नेके लिए सीढ़ियोंकी
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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