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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसी कविके एक अन्य ग्रन्थ 'जसहर चरिउ' में योगिनीपुर ( दिल्ली) निवासी अग्रवाल वंशी साहू कमलसिंह और उनके पुत्र साहू हेमराज और उनके वंशकी प्रशंसा करते हुए बताया है कि उक्त साहू परिवारने गिरनारकी तीर्थयात्रा के लिए संघ चलाया था । इस कविके 'यशोधर चरित' की प्रशस्तिसे भी ज्ञात होता है कि लाहण या लाहड़पुरके निवासी साहू कमलसिंहने संघ निकालकर गिरनारकी यात्रा की थी । इस प्रकारके उल्लेख बहुसंख्या में प्राप्त होते हैं । १६२ 'उपदेश तरंगिणी' नामक ग्रन्थमें वस्तुपाल मन्त्री द्वारा गिरनारकी यात्रा के लिए निकाले गये संघका वर्णन मिलता है । यह संघ संवत् १२८५ में निकला था । इस संघ में २४ दन्तमय देवालय, १२० काष्ठ देवालय, ४५०० गाड़ियाँ, १८०० डोलियाँ, ७०० सुखासन, ५०० पालकियाँ, ७०० आचार्य, २००० श्वेताम्बर साधु, ११०० दिगम्बरी, १९०० श्रीकरी, ४००० घोड़े, २००० ऊँट और ७ लाख मनुष्य थे । इस विवरण से निष्कर्ष निकलता है कि उस समय तक दिगम्बर और श्वेताम्बरकी मूर्तियों में अन्तर नहीं था । मूर्तियां दिगम्बर ही होती थीं, दोनों ही उन्हें पूजते थे । यही कारण था कि इस संघ में श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्मिलित थे । इससे यह भी प्रतीत होता है कि उस समय तक मन्दिरों और मूर्तियों को लेकर दोनों समाजोंमें इतनी अधिक कटुता नहीं थी, जितनी अब है | क्षेत्र-दर्शन श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र गिरनार पर्वतके ऊपर पांच टोंकें हैं तथा पहली टोंकके पाससे सहस्राम्रवनको मागं जाता है । सहस्राम्रवन में भगवान् नेमिनाथने दीक्षा ली थी, यहींपर मनुष्यों और देवोंने भगवान्का दीक्षा कल्याणक मनाया था । भगवान्का केवलज्ञान कल्याणक भी यहीं मनाया गया था । यहाँ भगवान् नेमिनाथके चरण-चिह्न बने हुए हैं। पाँचों टोंकों और सहस्राम्रवनके लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। सीढ़ियोंकी कुल संख्या ९९९९ है । पहली टोंक तक ४४००, पहली दूसरी टोंक तक ९००, दूसरीसे तीसरी टोंक तक ७००, तीसरीसे पाँचवीं टोंक तक २५०० तथा पहली टोंक से सहस्राम्रवन तक १४९९ सीढ़ियां हैं। चौथी टोंक के लिए सीढ़ियोंकी व्यवस्था नहीं है । अनगढ़ पत्थरों पर चढ़कर जाना पड़ता है । यहाँ चढ़ना स्त्री- बालक और वृद्धों के लिए अत्यन्त कठिन और जोखम भरा है । अतः प्रायः लोग इस टोंकपर नहीं चढ़ते, न यहाँ डोलीवाले हो जाते हैं । सहस्राम्रवनको जानेके लिए जो सीढ़ियां बनी हुई हैं, उन्हींसे वापस लौटना पड़ता है क्योंकि सहस्राम्रवन से धर्मशाला के लिए कच्चा मार्गं जाता है । वह बहुत असुविधाजनक है। सीढ़ियोंका मार्ग ही सुविधाजनक है । यहाँ अन्य क्षेत्रोंकी अपेक्षा डोलीका भाड़ा बहुत अधिक है । भाड़ा भारके अनुसार है । सूचनार्थं तालिका निम्न प्रकार है - ९५-०० ५५ किलो तक ५५ किलोसे ८० किलो तक ८० किलोसे १०० किलो तक २५०-००, १५५-००, बच्चोंका चार्ज १ माह से ५ वर्ष तक १८-००, सहसावन के ४०-०० - कुल १३५-०० ५०-०० = कुल २०५-०० ७०-०० = कुल ३२० -०० " 23 सहसावन ४-०० = • कुल २२-००
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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