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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ "वंशेऽस्मिन् यदुनामकावरपतेरभ्युग्रशौर्यावलेरासीद्राजकुलं गुणोधविपुलं श्रीयादवख्यातिमत् । अत्राभून्नृपमण्डलीनतपदः श्रीमण्डलीक: क्रमात्
प्रासादं गुरुहेमपत्रततिभिर्योचीकरन्नेमिनः ॥" इस शिलालेखमें चूड़ासमास वंशकी वंशावली भी दी गयी है, जो ऐतिहासिक दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । यह वंशावली प्रथम नवधनसे प्रारम्भ होती है। नवघनका पुत्र महीपालदेव ( उसने प्रभासपट्टनमें सोमनाथका मन्दिर बनवाया ) उसका पुत्र खंगार प्रथम, उसका पुत्र जयसिंह देव, उसका पुत्र मोकल सिंह, फिर मेलगदेव, महीपालदेव और माण्डलिक द्वितीय हुए।
प्रथम नवघनने दसवीं शताब्दीमें अहीरोंकी सहायतासे यहाँका राज्य प्राप्त किया था। प्रथम माण्डलिकने बारहवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें शासन किया था।
श्री नेमिनाथ मन्दिरके सहनमें एक शिलाफलकपर निम्नलिखित लेख अंकित है। यहां चरण-चिह्न भी बने हुए हैं
"हर्षकीर्तिजी पादुका"
"संवत् १६९२ श्री मूलसंघे श्री हर्षकीर्ति श्री पद्मकीर्ति श्री भुवनकीति ब्र. अमर सिभाणमनजी पं. वीर जैयन्त माइदासदयाला तेसां ९ नेमियात्रा सफलास्तु ।"
इस शिलालेखसे यह सिद्ध होता है कि इन दिगम्बर भट्टारकोंने यहाँकी ९ यात्राएं की थीं और इस अन्तिम यात्रामें हर्षकीर्तिजी भट्टारकके चरण-चिह्न विराजमान कराये।
गिरनारका सम्बन्ध नेमिनाथ तीर्थकरके साथ रहा है। उनके दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाणके कारण ही यह पर्वत तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध हुआ। ऐसे शिलालेख और ताम्रपत्र मिले हैं, जिनमें नेमिनाथके निर्वाणका उल्लेख मिलता है अथवा उन्हें गिरनार (रैवतक पर्वत ) का देव कहा गया है। यहाँ केवल दो शिलालेखों या ताम्रपत्रोंका उल्लेख करना पर्याप्त होगा। एक शिलालेख कल्लूरगुड्डू ( शिमोगा परगना ) में सिद्धेश्वर मन्दिरकी पूर्व दिशामें पड़े हुए पाषाणपर उत्कीर्ण है जो शक संवत् १०४३ ( सन् ११२१ ई०) का है। उसका सम्बन्धित अंश इस प्रकार है
"हरिवंशकेतुः नेमीश्वरतीर्थवति सुत्तगिरे गंगकुलांवर भानु पुट्टिदं भा-। सुरतेज विष्णुगुप्तनेम्ब नृपालम् । आ-धराधिनाथं साम्राज्यपदवियं कैकोण्डहिच्छत्र-पुरदोलु सुखमिर्दु नेमितीर्थंकरपरमदेव-निर्वाणकालदोळ् ऐन्द्रध्वजवेम्बपूजेयं माडे देवेन्द्रनोसेदु अनुपम दैवावतयं । मनोनुरागदोळे विष्णुगुप्तंगित्तम्। जिनपूजेयिन्दे मुक्तिय । ननध्यमं पडेगुसेन्दोडुलिदुट्ठ पिरिदे ।।
-जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ. ४०८-९ अर्थ-जब नेमीश्वरका तीर्थ चल रहा था, उस समय राजा विष्णुगुप्तका जन्म हुआ। वह राजा अहिच्छत्रपुरमें राज्य कर रहा था। उसी समय नेमि तीर्थंकरका निर्वाण हुआ। उसने ऐन्द्रध्वज पूजा की । देवेन्द्रने उसे ऐरावत हाथी दिया।
विष्णुगुप्त गंग वंशका एक ऐतिहासिक व्यक्ति हुआ है। नेमिनाथ भगवान्का निर्वाण उसके शासन कालमें हुआ था। इससे नेमिनाथकी ऐतिहासिकता असन्दिग्ध हो जाती है।
इस विषयमें प्रभासपट्टनसे बेबीलोनियाके बादशाह नेवुचडनज्जरका ताम्रपट लेख सर्वाधिक प्राचीन है । डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकारने उसका अनुवाद इस प्रकार किया है