SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ देवीके इस रूपके सम्बन्धमें जैन शास्त्रोंमें बड़ा रोचक आख्यान दिया गया है "सौराष्ट्र देशमें किसी गांवमें सोमशर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। अग्निला नामक उसकी स्त्री थी, बो बड़ी जिनधर्मपरायण थी। उसके दो पुत्र थे-शुभंकर और प्रीतिकर। सोमशर्मा वेदानुयायी था। एक दिन सोमशर्माने पिताका श्राद्ध किया। वह ब्राह्मणोंको बुलाने लगा। इधर मासोपवासी मुनि वरदत्त पारणाके लिए आये। अग्निलाने उनको पड़गाहकर विधिवत् आहार दिया। देवोंने ब्राह्मणीके इस कार्यकी सराहना की। किन्तु ब्राह्मणोंको यह कार्य रुचिकर न लगा। उन्होंने भोजन करनेसे इनकार कर दिया और उठकर चले गये । सोमशर्माको इस असह्य अपमानसे बड़ा क्रोध आया और वह क्रोधान्ध होकर ब्राह्मणीको पीटने लगा और उसे घरसे निकाल दिया। दुःखित होती हुई अग्निला अपने दोनों पुत्रोंको लेकर गिरनार पर्वतपर पहुंची। वहाँ उसने वरदत्त मुनिकी वन्दना की और पुत्रोंके साथ एक आम्रवृक्षके नीचे सहस्राम्र वनमें बैठ गयी। जब बच्चोंको भूख लगी, तब अग्निलाको चिन्ता हुई किन्तु तभी उसके पुण्य प्रभावमें आम्रवृक्षोंपर फल लहलहाने लगे। बच्चे पके आम्रफलोंको खाकर बड़े सन्तुष्ट हुए ।" ___"कभी-कभी अतर्कित घटनाएं हो जाती हैं। सोमशर्माके गांवमें आग लग गयी। सारा गांव जल गया, किन्तु अग्निलाका घर नहीं जला। लोगोंने इसे कोई दैवी चमत्कार समझा और सब अग्निलाके धर्म-प्रेमकी प्रशंसा करने लगे। सोमशर्माको भी अपनी भल अनुभव हई। वह अपनी पत्नीको लेनेके लिए गिरनार पर्वतपर गया। जब अग्निलाने अपने पतिको आते देखा तो वह बड़ी भयभीत हुई और एक ऊँचे शिखरसे नीचे कूद पड़ी। मरकर वह देवी बनी। सोमशर्मा भी अपनी पत्नीके पीछे शिखरसे कूद पड़ा और मरकर निम्नकोटिका देव बना और उस देवीकी सेवामें रहने लगा।" "अब देवी भगवान नेमिनाथको सेवामें रहने लगी। वह दीन-दुखियोंका कष्ट दूर करने लगी। लोग आदरसे उसे अम्बा या अम्बिका ( मा ) कहते थे। वह दयाकी साक्षात् मूर्ति थी। भगवान् नेमिनाथ और उनके शासनकी सेवा करने और उसकी प्रभावना करनेमें उसे बड़ा आनन्द मिलता था।" इस प्रकार अम्बिका नेमिनाथ तीर्थंकरकी सेविका शासनदेवी मानी गयी। अम्बिकाकी मान्यता लोकव्यापी हो गयी। उसकी मूर्ति बनाकर लोग पूजने लगे। गिरनार पर्वतपर भी अम्बिका देवीकी मूर्ति प्राचीन कालमें बनायो गयी थी। इस सम्बन्धमें शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख डॉ. वर्गेसको गिरनारके नेमिनाथ मन्दिरकी चहारदीवारोमें प्राप्त हुआ था। वह इस प्रकार पढ़ा गया है ___ "संवत् १२१५ वर्षे चैत्र सुदि ८ रवी अद्येह श्रीमदुजंयन्ततीर्थे जगत्यां समस्तदेवकुलिकासत्कछाजाकुबा लिसंविरणसंद्यविठ सालवाहण प्रतिपत्या सू. जसहड ठ. सावदेवेन परिपूर्णा कृता ।। तथा ठ. भरथसूत पण्डितसालिवाहेण नागजरिसिराया परितः कारित [भाग 1 चत्वारिबिंबीकृत कुंडकर्मातर तदधिष्ठात्री श्रीअम्बिकादेवीप्रतिमा देवकुलिका च निष्पादिता।" ___ अर्थ-संवत् १२१५, चैत सुदी ८, रविवारके शुभ दिन ऊर्जयन्त तीर्थ पर ठाकुर सालिवाहनकी सम्मतिसे राज ( मिस्त्री) जसहड और सावदेवने समस्त जैन देवताओंकी प्रतिमा बनाकर पूर्ण की तथा भरथके पुत्र पण्डित सालिवाहनने 'नागज (झ) रि सिरा' ( Elephar Fount ) के चारों ओर एक दीवाल खींच दी, जिसमें चार बिम्ब पधराये गये। कुण्ड बन जानेके १.जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, पृ. १०९ (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन )
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy