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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १५१ उल्लिखित मूर्ति वि. सं. की १४-१५वीं शताब्दी तक अवश्य विद्यमान थी। सम्भव है, मदनकोतिने उसके दर्शन भी किये हों। किन्तु इतना तो निश्चित ही है कि वह मूर्ति दिगम्बर थी और अत्यन्त आकर्षक थी। गिरनारको अम्बिका देवी _ गिरनारके दूसरे शिखरपर अम्बा या अम्बिका देवीका मन्दिर है। इस मन्दिरको मान्यता जैनों और हिन्दुओंमें दोनोंमें ही है। मन्दिरपर आजकल हिन्दुओंका अधिकार है। मि. बर्गेसने मूलतः इस मन्दिरको जैनोंका बताया है। अम्बिका देवीके कई नाम जैन शास्त्रोंमें मिलते हैं - कूष्माण्डी, कूष्माण्डिनी, आम्रा देवी, अम्बा देवी, अम्बिका देवी । यह देवी तीर्थंकर नेमिनाथकी शासन देवी कहलाती है । दिगम्बर जैन शास्त्रोंमें अम्बिका देवीका स्वरूप इस प्रकार का बताया है "सव्येकापगप्रियंकरसुतुकप्रीत्यै करे बिभ्रतीं, दिव्याम्रस्तवकं शुभंकरकरश्लिष्टान्यहस्तांगुलिम् । सिंहे भर्तृचरे स्थितां हरितभामाम्रद्रुमच्छायगां, वन्दारुं दशकार्मुकोच्छयजिनं देवीमिहाभ्रां यजे ॥२२॥" अर्थात् दस धनुष शरीरवाले नेमिनाथ भगवान्की शासन देवी आम्रा है। वह नीले वर्ण वाली, सिंहकी सवारी करनेवाली, आम्रछायामें रहनेवाली और दो भुजावाली है। बायें हाथमें प्रियंकर नामक पुत्रके प्रेमके कारण आमकी डालीको और दायें हाथमें अपने द्वितीय पुत्र शुभंकरको धारण करनेवाली है। ____श्वेताम्बर परम्परामें अम्बिका (कूष्माण्डो देवी) का रूप इस प्रकार बताया है-"तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां कूष्माण्डी देवी कनकवर्णां सिंहवाहनां चतुर्भुजां मातुलिंगपाशयुक्तदक्षिणकरां पुन्नाङकुशान्वितवामकरां चेति ॥" अर्थात् नेमिनाथके तीर्थमें कूष्माण्डी नामक देवो है। वह सुवर्णवाली, सिंहकी सवारी करनेवाली और चार मुखवाली है। दायें हाथमें बिजौरा और पाश है और बायें हाथमें पुत्र और अंकुश है। आचार्य जिनसेनने 'हरिवंशपुराण' ( सर्ग ६६, श्लोक ४४ ) में गिरनारकी अम्बिका देवीके सम्बन्ध में विशेष उल्लेख किया है जो इस प्रकार है "गृहीतचक्राप्रतिचक्रदेवता तथोजंयन्तालयसिंहवाहिनी। शिवाय यस्मिन्निह सन्निधीयते क्व तत्र विघ्नाः प्रभवन्ति शासने ॥" अर्थात् चक्रको धारण करनेवाली अप्रतिचक्रदेवता तथा गिरनार पर्वतपर निवास करनेवाली सिंहवाहिनी अम्बिकादेवी जिस जिनशासनमें सदा कल्याणके लिए सन्नद्ध रहती है, उस जिनशासन पर विघ्न अपना प्रभाव कहाँ जमा सकते हैं। अम्बिकादेवीकी मूर्तियां बहुसंख्यामें प्राप्त होती हैं। इस देवीका मुख्य चिह्न यह हैसिंहारूढ़ देवीकी गोदमें एक बालक होता है तथा एक बालक बगलमें खड़ा होता है। देवी आम्रवृक्षके नीचे बैठी होती है अथवा वृक्ष नहीं होता तो हाथमें आम्रस्तवक रहता है। देवीके शिरोभागपर भगवान् नेमिनाथकी पद्मासन प्रतिमा बनी होती है। १. Burgess, The Report on the Antiquities of Kathiawad and Kachha, p. 129. २. ठक्कुर फेरुकृत 'वास्तुसार प्रकरण' पृ. १९९
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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