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गुजरात के दिगम्बर जैन तीर्थं
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पूज्यपादकाकाल पाँचवीं शताब्दी अनुमानित है । आचायं पूज्यपादने भी निर्वाण-भक्ति में भगवान् नेमिनाथ प्रसंग में उनका निर्वाण ऊर्जयन्त गिरिसे माना है । सम्बन्धित श्लोक इस प्रकार है
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यत्प्रायं शिवमयं विबुधेश्वराद्यैः पाखण्डिभिश्च परमार्थंगवेषशीलैः । नष्टाष्टकसमये तदरिष्टनेमिः संप्राप्तवान् क्षितिधरे बृहदूजयन्ते ॥ २२
इस प्रकार यह स्वीकार करनेमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती कि ऊर्जयन्त गिरिसे न केवल नेमिनाथ भगवान् ही मुक्त हुए हैं, अपितु वहाँसे अन्य भो अनेक मुनि मुक्त हुए हैं। इसका समर्थन हरिवंशपुराणसे भी होता है । इस सम्बन्ध में आचार्यं जिनसेनने मुनियोंके कुछ नाम देकर यह भी सूचित किया है कि इन मुनियों आदिके निर्वाणके कारण ही ऊर्जयन्तको निर्वाण क्षेत्र माना जाने लगा और अनेक भव्यजन तीर्थंयात्राके लिए आने लगे । वे लिखते हैं
'दशाह दियो मुनयः षट्सहोदरसंयुताः । सिद्धि प्राप्तास्तथान्येऽपि शम्बप्रद्युम्नपूर्वकाः ॥ ऊर्जयन्तादिनिर्वाणस्थानानि भुवने ततः । तीर्थयात्रागतानेकभव्यसेव्यानि रेजिरे ॥
- हरिवंशपुराण, सगं ६५, श्लोक १६-१७
अर्थात् समुद्रविजय आदि नौ भाई, देवकीके युगलिया छह पुत्र, शम्बु और प्रद्युम्नकुमार आदि अन्य मुनि भी ऊर्जयन्तसे मोक्षको प्राप्त हुए । इसलिए उस समयसे गिरनार आदि निर्वाणस्थान संसार में विख्यात हुए और तीर्थयात्रा के लिए भव्य लोगोंके आने से वे सुशोभित हुए ।
आचार्य गुणभद्रकृत उत्तरपुराण में प्रद्युम्न आदि मुनियोंके सम्बन्ध में ऊर्जयन्तगिरिसे निर्वाण प्राप्तिके साथ जिन कूटोंसे उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था, उसकी भी सूचना दी गयी है । इससे सम्बन्धित विवरण इस प्रकार है
द्वीपायननिदानावसाने जाम्बवतीसुतः । अनिरुद्धश्च कामस्य सुतः संप्राप्य संयमम् ॥ प्रद्युम्नमुनिना सार्थं मूर्जयन्ताचलाग्रिमम् । कूटत्रयं समारुह्य प्रतिमायोगधारिणः ॥ शुक्लध्यानं समापूर्य त्रयस्ते घातिघातिनः । कैवल्यनवकं प्राप्य प्रापन्मुक्तिमथान्यदा ॥
—–उत्तरपुराण, सर्ग ७२, श्लो. १८० - १८२
अर्थात् द्वीपायन मुनि द्वारा द्वारका दाहका निदान करनेपर जाम्बवती के पुत्र शम्बु और प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध संयम धारण कर लिया । वे दोनों प्रद्युम्न मुनिके साथ ऊर्जयन्तगिरि ऊँचे तीन शिखरों पर आरूढ़ होकर प्रतिमायोगसे स्थित हो गये । उन्होंने शुक्लध्यानको पूरा करके घातिया कर्मो का नाश किया और नौ केवललब्धियां पाकर मोक्ष प्राप्त किया ।
इसमें जिन तीन कूटों का संकेत आया है, उसके अनुरूप आज भी मान्यता प्रचलित है । द्वितीय कूटपर अनिरुद्ध कुमारके चरण-चिह्न बने हुए हैं। तीसरे कूटपर शम्बुकुमारके और चौथे कूटपर प्रद्युम्नकुमारके चरण-चिह्न उत्कीर्ण हैं ।
उदकीर्ति कृत अपभ्रंश निर्वाण-भक्ति में प्राकृत निर्वाण-काण्डके अनुरूप ही ऊर्जयन्तको भगवान् नेमिनाथ, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और ७७२ कोटि मुनियोंका निर्वाण स्थल माना है । उसका मूल पाठ इस प्रकार है
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