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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मार्ग और अवस्थिति तारंगा क्षेत्र उत्तर गुजरातके महसाणा जिलेमें अरावली पर्वतमालाओंकी एक मनोरम . टेकरीपर अवस्थित है। यहां जानेके लिए पश्चिमी रेलवेकी दिल्ली-अहमदाबाद लाइनपर महसाणा जाना पड़ता है। महसाणासे तारंगा हिलके लिए ५७ कि. मी. लम्बी रेलवे लाइन है। तारंगा हिल स्टेशनके निकट ही दिगम्बर जैन धर्मशाला है, जिसमें १४ कमरे हैं। धर्मशालामें चैत्यालय भी हैं। धर्मशालाके सामनेसे तारंगा क्षेत्रके लिए टीवां होते हुए बसें जाती हैं। पक्की सड़क है। तारंगा हिलसे तारंगा क्षेत्र ९ कि. मी. है। जबतक यहां सड़क नहीं बनी थी और बसों की व्यवस्था नहीं हुई थी, तबतक यात्री तारंगा हिलकी धर्मशालामें सामान रखकर पैदल ही यात्रा करते थे। यहाँसे क्षेत्रका पैदल मार्ग ६-७ कि. मी. पड़ता है । तारंगासे ईडर होते हुए केशरियाजी जा सकते हैं तथा तारंगासे महसाणा होकर गिरनार आदि तीर्थों की यात्राके लिए जा सकते हैं। यहाँका पता इस प्रकार है: मन्त्री, श्री तारंगा दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, पो. तारंगा हिल ( जिला महसाणा) उत्तर गुजरात । गिरनार सिद्धक्षेत्र गिरनार पर्वत सुप्रसिद्ध तीर्थ-क्षेत्र है। षट्खण्डागम सिद्धान्त-शास्त्रकी आचार्य वीरसेन कृत धवला टीकामें इसे क्षेत्र-मंगल माना है। क्षेत्र-मंगलकी परिभाषा करते हुए आचार्य वीरसेन लिखते हैं : तत्र क्षेत्रमंगलं गण-परिणतासन-परिनिष्क्रमण-केवलज्ञानोत्पत्तिपरिनिर्वाणक्षेत्रादिः। तस्योदाहरणम्, ऊजयन्त-चम्पा-पावा-नगरादिः ( १-१-१ पृ. २८-२९ ) । अर्थात् गुणपरिणत आसन क्षेत्र अर्थात् जहाँपर योगासन, वीरासन इत्यादि अनेक आसनोंसे तदनुकूल अनेक प्रकारके योगाभ्यास, जितेन्द्रियता आदि गुण प्राप्त किये गये हों ऐसा क्षेत्र, परिनिष्क्रमण क्षेत्र ( जहां किसी तीर्थकरने दीक्षा ली हो) और निर्वाण क्षेत्र आदिको क्षेत्र-मंगल कहते हैं। जैसे ऊर्जयन्त (गिरनार ), चम्पापुर, पावापुर आदि नगर क्षेत्र-मंगल हैं। ऐसे क्षेत्र मंगलकारी होते हैं, इसलिए इन्हें क्षेत्र-मंगल कहा जाता है। आचार्य यतिवृषभने भी 'तिलोयपण्णत्ती (प्रथम अधिकार, गाथा २१-२२ ) में इसी आशयको पुष्टि करते हुए ऊर्जयन्तको क्षेत्र-मंगल स्वीकार किया है। ऊर्जयन्त क्षेत्रपर बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ ) के तीन कल्याणक हए थेदीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण । जिस क्षेत्रपर किसी तीर्थंकरका एक ही कल्याणक हो, वह कल्याणक क्षेत्र या तीर्थक्षेत्र कहलाता है। जहां किसी तीर्थंकरके तीन कल्याणक हुए हों, वह क्षेत्र तो वस्तुतः अत्यन्त पवित्र बन जाता है । अतः गिरनार ( ऊजंयन्त ) क्षेत्र अत्यन्त पावन तीर्थभूमि है । भगवान् नेमिनाथका निर्वाण भी इसी क्षेत्रपर हुआ था, इसलिए यह निर्वाण-क्षेत्र या सिद्धक्षेत्र है। सिद्धक्षेत्र होनेके नाते इसे तीर्थराज भी कहा जाता है। तिलोयपण्णत्ती' शास्त्र में भगवान नेमिनाथकी दोक्षाके सम्बन्धमें ज्ञातव्य बातें इस प्रकार दी हैं
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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