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________________ गुजरातके दिगम्बर जैन तीर्थ १४३ व्यवस्था इस क्षेत्रको व्यवस्था भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके उद्देश्यानुसार स्थानीय क्षेत्र कमेटी करती है। यह कमेटी श्री तारंगाजी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र प्रबन्धकारिणी कमेटी कहलाती है। ११-१२वीं शताब्दीसे ऐसे पूरातात्त्विक और साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध होते हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि इस क्षेत्रपर दिगम्बर जैन समाजका अधिकार रहा है। एक शिलालेखके अनुसार वैशाख सुदी ९ संवत् ११९२ को चक्रवर्ती ( सम्राट् जयसिंह ) के शासन-कालमें प्राग्वाट कुलके शाह लखनने तारंगा पर्वतपर बिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी। इस लेख तथा 'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक श्वेताम्बर ग्रन्थसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि सम्राट् कुमारपालके समय तक समूचे तारंगा क्षेत्रपर दिगम्बर जैन समाजका एकाधिकार था। दिगम्बर समाजकी सद्भावनाके कारण श्वेताम्बर समाजने तलहटीमें मन्दिरोंका निर्माण किया। वे दिगम्बर मन्दिरोंमें दर्शनोंके लिए भी जब-तब जाते रहते थे। धीरे-धीरे श्वेताम्बर समाजमें क्षेत्रपर अधिकार करनेकी भावना बढ़ती गयी और वह समूचे तीर्थपर अपने स्वामित्वका दावा करने लगी। श्वेताम्बर समाजके दुराग्रहपूर्ण और तर्कहीन व्यवहारके कारण यहाँ दोनों समाजोंमें मनोमालिन्य बढ़ता गया। यहाँ तक कि दोनोंमें मुकदमेबाजी चलने लगी। पश्चात् श्री मैजाम्बिक ( तत्कालीन पालिटिकल एजेण्ट महीकांठा एजेन्सी) के सत्प्रयत्नोंसे बम्बई सचिवालयमें दिनांक ९ अक्तूबर १९२७ को तारंगा क्षेत्रका मामला तय हुआ। निर्णयके अनुसार दिगम्बर समाजकी इमारतों, मन्दिरों, धर्मशालाओं, देहरियों और चबूतरोंपर दिगम्बर समाजका अधिकार रहा और श्वेताम्बर इमारतोंपर श्वेताम्बरोंका। तारंगा पर्वत टीवाँके जमींदारोंकी जमींदारीमें था। अतः इन जमींदारोंके साथ भी इसी समय एग्रीमेण्ट करा लिया गया। दोनों समाजोंके समझौतेमें यह भी तय किया गया कि कोटिशिला पर्वतके रास्तोंकी मरम्मत आदिका भार श्वेताम्बर समाजके ऊपर रहेगा और सिद्धशिला पर्वतके रास्तोंकी मरम्मत दिगम्बर समाज करती रहेगी। इस समझौतेके पश्चात् अब तक यही व्यवस्था चलती आ रही है। मेला कार्तिक शुक्ला १५ को भगवान् सम्भवनाथका पवित्र जन्म-दिवस है। अतः यहाँ प्रतिवर्ष भगवान् सम्भवनाथके जन्म कल्याणकके रूपमें समारोहपूर्वक यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन विशाल मेला भरता है जिसमें जैन और जैनेतर जनता हजारोंको संख्यामें सम्मिलित होती है। इस दिन सभी मन्दिरोंपर ध्वजारोहण, सामूहिक अभिषेक और पूजन होता है। सन्ध्याको जलयात्राका जलूस निकलता है । पाण्डुक शिलापर जाकर भगवान्का अभिषेक होता है। वर्ष में एक दूसरा मेला चैत्र सुदी १३ से १५ तक होता है। १५ को जलयात्राका विशाल जलूस निकलता है और पाण्डुक शिलापर अभिषेक होता है। एक विशाल मेला यहाँ संवत् २०१८ में हुआ था। उस समय मानस्तम्भका अभिषेक हुआ था। अतिशय ऐसा कहा सुना जाता है कि कभी-कभी यहां सम्भवनाथ भगवान्के मन्दिरमें रात्रिमें गीत, नृत्य, वादित्रकी ध्वनि सुनाई देती है। लगता है जैसे देवगण यहां पूजनके लिए आते रहते हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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