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________________ १४२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्रतिमाको प्रतिष्ठा ज्येष्ठ वदी ५, संवत् १९०१ को और दूसरीकी प्रतिष्ठा फागुन सुदी २, संवत् १९२३ को हुई थी। इनके अतिरिक्त वेदीपर दो श्वेतवर्ण पाषाण-प्रतिमाएं हैं, जो मानस्तम्भकी खुदाईमें प्राप्त हुई थी तथा १६ धातु-प्रतिमाएं भी हैं । इस मन्दिरमें गर्भगृह, सभा-मण्डप और अर्ध-मण्डप हैं। तीनोंके ही ऊपर शिखर हैं। (११) एक चैत्यमें चारों दिशाओंमें बाहुबली स्वामीकी १ फुट २ इंच ऊंची श्वेत वर्ण खड्गासन प्रतिमाएँ हैं। १२. पद्मप्रभ मन्दिर-एक चबूतरेनुमा वेदीमें तीन प्रतिमाएं विराजमान हैं-पद्मप्रभ और उसके दोनों ओर कुन्थुनाथ और सुपार्श्वनाथ। तीनों ही १ फुट ५ इंच उन्नत हैं। इनकी प्रतिष्ठा संवत् १९२८ में हुई थी। १३. चन्द्रप्रभ मन्दिर-एक चबूतरेपर चन्द्रप्रभ भगवान्की २ फुट १ इंच उत्तुंग और संवत् १९२३ में प्रतिष्ठित प्रतिमा विराजमान है। बायीं ओर नेमिनाथ भगवान्को १ फुट ८ इंच ऊंची और संवत् १६६२ में प्रतिष्ठित प्रतिमा है तथा दायीं ओर अजितनाथ भगवान्की १ फुट ८ इंच ऊंची और संवत् १६३० में प्रतिष्ठित प्रतिमा है। १४. वासुपूज्य मन्दिर-भगवान् वासुपूज्यकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है जिसकी अवगाहना १ फुट ६ इंच है तथा जिसकी प्रतिष्ठा संवत् १९१८ में हुई थी। इसके दोनों बाजुओंमें १ फुट १ इंच ऊंची श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इनपर लेख और लांछन नहीं हैं। यहाँ मुनियोंके चार चरण भी विराजमान हैं। इन मन्दिरों और धर्मशालाके पृष्ठ भागमें पहाड़पर गुफाएँ हैं। एक गुफामें जैन शासनदेवीकी मूर्ति है। कहते हैं, इन गुफाओंमें एक सिह दम्पती निवास करता है किन्तु आज तक कभी कोई दुर्घटना सुनने में नहीं आयी। दिगम्बर धर्मशालाके निकट ही श्वेताम्बर समाजके ९ मन्दिर हैं। इनमें सम्राट् कुमारपाल द्वारा निर्मित विशाल मन्दिर है, जिसकी शिखर संयोजना और रथिकाओंमें देव-मूर्तियोंका अंकन दर्शनीय है। इस मन्दिरमें भगवान् अजितनाथकी १२ फुट ऊँची मूर्ति मूलनायकके स्थानपर विराजमान है। यहाँसे पूर्वकी ओर लगभग १ मील दूर पहाड़के ऊपर मोक्षवारी नामक स्थान है। यहाँ १ दिगम्बर समाजकी तथा १ श्वेताम्बर समाजको टोंक बनी हुई है। दोनोंमें चरण विराजमान हैं । इस स्थानके नामसे ऐसा प्रतीत होता है कि यह सिद्धभूमि है और यहाँसे मुनियोंने मोक्ष प्राप्त किया है। धर्मशालासे उत्तरकी ओर सिद्धशिला पर्वतपर जाते समय एक बावड़ी पड़ती है जिसमें पर्याप्त जल रहता है। इसके निकट ही क्षेत्रका उद्यान है । धर्मशाला ___ क्षेत्रपर एक धर्मशाला है, जिसमें ५४ कमरे हैं । यात्रियोंकी सुविधाके लिए २०० गद्दे, २०० रजाइयां, २०० तकिये, १०० छोटे गद्दे और बर्तनों आदिकी व्यवस्था है। जलके लिए धर्मशालासे उत्तरकी ओर बावड़ी बनी हुई है तथा दक्षिणकी ओर धर्मशालासे बाहर एक कुएंका निर्माण कराके उसमें मोटर फिट करके पाइपों द्वारा जल सप्लाई किया जाता है। प्रकाशके लिए बिजली और लालटेनोंकी व्यवस्था है ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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