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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
तिजारा
मार्ग और अवस्थिति
श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र देहरा तिजारा राजस्थानके अलवर जिलेका एक सुन्दर नगर है। यह अलवरके उत्तर-पूर्वमें ५० किलोमीटर तथा मथुराके उत्तर-पश्चिममें ९६ कि. मी. दूर है। इसके चारों ओर सघन वृक्षावली और उद्यान है। अनुश्रुतिके अनुसार इस नगरको स्थापना यदुवंशी राजा तेजपालने को थो । जब मुस्लिम बादशाह मुहम्मद बिन कासिमने बयाना और ताहनगढ़पर अधिकार कर लिया, तब राजा तेजपालने वहाँसे भागकर सरहटा ( तिजाराके पूर्वमें ४ मील दूर ) के राजाके यहाँ शरण ली। तभी उसने तिजारा नगर बसाया। तेजपालके महलोंके अवशेष तिजाराके मिोन मुहल्ले में अब भी दिखाई पड़ते हैं। मेवातके खानजादोंके समयमें तिजाराको बहुत प्रसिद्धि मिली और कुछ समय तक यह नगर उनकी राजधानी भी रहा । यहां जानेके लिए देहली, रेवाडी, अलवर, फिरोजपुर, झिरका और खैरथल स्टेशनसे बसोंकी व्यवस्था है। देहलीसे एक बस दिनमें प्रातः ७ बजकर ५० मिनटपर चलकर १२ बजे तिजारा पहुंचती है और तिजारासे १-४० पर चलकर ५|| बजे देहलो पहुँचती है। क्षेत्र स्थापनाका इतिहास
अतिशय क्षेत्रके स्थापनाकालसे पूर्व यह स्थान देहरा कहलाता था। अलवर राज्यके प्राचीन रिकार्डोंमें भी यह स्थान देहरा लिखा हुआ मिलता है। देहराका अर्थ है जैन देवालय । स्थानीय जैन समाजमें अनुश्रुतिके रूपमें भी यह बात प्रचलित थी कि यहां कभी जैन मन्दिर था और प्राचीन भवनके खण्डहरोंके टीलेको जैन मन्दिरके खण्डहरोंका टीला माना जाता था। वृद्धजनोंसे चली आ रही इस अनुश्रुतिपर सन्देह करनेका कोई कारण भी नहीं था। यहांपर लगभग १३-१४वी शताब्दीसे मुसलमानोका शासन रहा। अतः इस सम्भावनासे इनकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम शासनकालमें जैन मन्दिर तोड़ दिया गया हो। अतः इस टीलेकी खुदाई करानेका विचार जैन समाजमें कई बार उठा। एक बार सन् १९४४ में श्री धनपालजी ज्योतिषी लखनऊ (जो मूलतः खेकड़ा-मेरठके निवासी हैं और जन्मान्ध होते हुए भो ज्योतिषका जिन्हें अच्छा ज्ञान है ) यहां आये। उनसे जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वर्तमान राज्य परिवर्तन होनेके पश्चात् स्वयं ऐसे कारण बनेंगे जिनसे इस खण्डहरको खोदनेपर श्री जिनेन्द्र भगवान्की मूर्तियाँ प्रकट होंगी।
जुलाई सन् १९५६ में ऐसे कारण स्वयं ही बन गये। स्थानीय नगरपालिका छोटी और संकरी सड़कोंको चौड़ा कर रही थी। इस खण्डहरके निकट मजदूर देहरेसे मिट्टी खोदकर सड़कपर डाल रहे थे, तभी एक तहखाना दृष्टिगोचर हुआ। स्थानीय जैन समाजने ज्योतिषीकी उपर्युक्त भविष्य वाणीसे प्रोत्साहित होकर देहरेकी खुदाई करानेका निश्चय किया। इसके लिए राज्याधिकारियोंसे स्वीकृति ले ली गयी। नगरपालिकाने भी इस कार्यमें रुचि दिखलायी और इसके लिए उसने २५०) रुपये दिये। पुलिसकी देखरेख में खुदाईका कार्य आरम्भ हो गया। २-३ दिनकी खुदाईके फलस्वरूप भी कुछ नहीं निकला तो नगरपालिकाने इस कार्यसे अपना हाथ खींच लिया। तब समाजके द्रव्यसे खुदाईका कार्य चालू रखा गया। किन्तु फिर भी कोई सफलता नहीं मिली। इससे समाजमें निराशा छाने लगी। तब रात्रिमें नगीनावासी श्री झब्बूरामजीको स्वप्न हुआ। स्वप्नमें उस स्थानका स्पष्ट निर्देश था जहाँ खोदनेपर प्रतिमाएं मिल सकती हैं।